Monday, 9 January 2017

निहांई की कल्लो 😊

 

निहां ही की कर लो  ! बनस्थली से जयपुर :  #बनस्थलीडायरी


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वार त्योंहार कितनी बार बनस्थली से जयपुर और जयपुर से बनस्थली की यात्राएं की अपने सेवा काल के दौरान  वो आज भी बहुत याद आती हैं .  शुरु शुरु में  रोड़वेज की  कुल तीन बसें  जयपुर से बनस्थली को आया जाया करती थीं , उन्हीं से यात्रा करते थे . निवाई ,  मूंडिया  गुनसी , कोथून , चाकसू  , श्योदासपुरा और सांगानेर के नाम हमें बहुत अच्छी तरह याद हो गए थे.  निवाई के बस स्टैंड पर एक आदमी अपनी  प्रायवेट जीपड़ी  खड़ी कर आवाज लगाता :"  खटकड़ा कै पैली  जैपर चालै  तो आ जा ."  मैं  जानना चाहता कि कि ये कैसा हाल है कि राष्ट्रीकृत  रूट पर  ये निजी वाहन चला रहा है और  रोडवेज की बस को खटकड़ा कह कर धिक्कार रहा है  ? मुझे बताया गया कि ये  ट्रांसपोर्ट महकमे के लोगों के ही चलाए निजी वाहन हैं जो इस रूट पर कमाई कर रहे  हैं , इन्हें कोई नहीं टोकता . ये धड़ल्ले से चलते हैं .  इन  यात्राओं के कई अनुभव हैं जो फिर कभी सुनाऊंगा . अभी बनस्थली से रवानगी का ही किस्सा बयान करूँ .

दीपावली से पहले 44 रवींद्रनिवास को हम लोगों ने  रंगवाया पुतवाया लेकिन दीपावली  मनाने जयपुर जाने लगे . हमें सामान निकालकर  बाहर आया देख  45 नंबर से अम्मा भी बाहर आयीं  और बोलीं :"  निहां  की ही कर लो ." अर्थात यहां ही त्योंहार मनाओ और बाहर जाओ ही मत . वह आग्रह तो  मैं आज तक नहीं भूल पाता और यदा कदा मेरी जबान पर आज भी आ जाता है :" निहां  की ही कल लो."  पर जाना तो था ही जयपुर में भी  तो अम्मा के पास दीपावली से पहले पहुंचना था . ऐसे में जब हम जाने ही लगे तो शर्मा जी ने तो एक और सवाल खड़ा कर दिया :"  आपने इतना सुन्दर घर का रंग रोगन करवाया , पीछे से लक्ष्मी जी आएंगी और ताला बंद देखकर  पूछेंगी तो हम क्या जवाब देंगे ?  मैं ने शर्मा जी से कहा  :  आप लक्ष्मी जी को ऐसा कहदेना  " वे लोग तो जयपुर गए हैं और कह गए हैं  कि आप विद्यामंदिर चली जाओ और  वहीं बिराजो ."    उन दिनों  बनस्थली  विद्यापीठ के प्रबंध  मुख्यालय  विद्यामंदिर में ही आ गए थे  जो पहले किसी समय शांताकुंज में हुआ करते थे .  आगे लौटकर आने पर मुझे पता चला कि मेरी शुभेच्छा के अनुरूप लक्ष्मी जी आयीं भी और  विद्यामंदिर में ठहरीं भी . एक बार तो बैंकों में भी होड़ लग गई अपने अपने काउंटर  विद्यामंदिर में खोलने की .


आज के लिए चर्चा स्थगित करूं . ... इति .

सुप्रभात .


Good morning


सुमन्त .


आशियाना आँगन , भिवाड़ी .


10 जनवरी 2015 .


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10 जनवरी 2016 .  साझा और समीक्षा   Manju Pandya


आज इस पोस्ट को फिर से प्रसारित करने का मन किया . वो दिन और वो लोग बहुत याद आते हैं , इसी में मेरे तकिया कलाम की कहानी छुपी है जो है .


#निहांईकीकल्लो


सुमन्त पंड्या .


@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .


साझा #बनस्थलीडायरी के अंतर्गत संशोधित और सम्मिलित .

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