निहां ही की कर लो ! बनस्थली से जयपुर : #बनस्थलीडायरी
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वार त्योंहार कितनी बार बनस्थली से जयपुर और जयपुर से बनस्थली की यात्राएं की अपने सेवा काल के दौरान वो आज भी बहुत याद आती हैं . शुरु शुरु में रोड़वेज की कुल तीन बसें जयपुर से बनस्थली को आया जाया करती थीं , उन्हीं से यात्रा करते थे . निवाई , मूंडिया गुनसी , कोथून , चाकसू , श्योदासपुरा और सांगानेर के नाम हमें बहुत अच्छी तरह याद हो गए थे. निवाई के बस स्टैंड पर एक आदमी अपनी प्रायवेट जीपड़ी खड़ी कर आवाज लगाता :" खटकड़ा कै पैली जैपर चालै तो आ जा ." मैं जानना चाहता कि कि ये कैसा हाल है कि राष्ट्रीकृत रूट पर ये निजी वाहन चला रहा है और रोडवेज की बस को खटकड़ा कह कर धिक्कार रहा है ? मुझे बताया गया कि ये ट्रांसपोर्ट महकमे के लोगों के ही चलाए निजी वाहन हैं जो इस रूट पर कमाई कर रहे हैं , इन्हें कोई नहीं टोकता . ये धड़ल्ले से चलते हैं . इन यात्राओं के कई अनुभव हैं जो फिर कभी सुनाऊंगा . अभी बनस्थली से रवानगी का ही किस्सा बयान करूँ .
दीपावली से पहले 44 रवींद्रनिवास को हम लोगों ने रंगवाया पुतवाया लेकिन दीपावली मनाने जयपुर जाने लगे . हमें सामान निकालकर बाहर आया देख 45 नंबर से अम्मा भी बाहर आयीं और बोलीं :" निहां की ही कर लो ." अर्थात यहां ही त्योंहार मनाओ और बाहर जाओ ही मत . वह आग्रह तो मैं आज तक नहीं भूल पाता और यदा कदा मेरी जबान पर आज भी आ जाता है :" निहां की ही कल लो." पर जाना तो था ही जयपुर में भी तो अम्मा के पास दीपावली से पहले पहुंचना था . ऐसे में जब हम जाने ही लगे तो शर्मा जी ने तो एक और सवाल खड़ा कर दिया :" आपने इतना सुन्दर घर का रंग रोगन करवाया , पीछे से लक्ष्मी जी आएंगी और ताला बंद देखकर पूछेंगी तो हम क्या जवाब देंगे ? मैं ने शर्मा जी से कहा : आप लक्ष्मी जी को ऐसा कहदेना " वे लोग तो जयपुर गए हैं और कह गए हैं कि आप विद्यामंदिर चली जाओ और वहीं बिराजो ." उन दिनों बनस्थली विद्यापीठ के प्रबंध मुख्यालय विद्यामंदिर में ही आ गए थे जो पहले किसी समय शांताकुंज में हुआ करते थे . आगे लौटकर आने पर मुझे पता चला कि मेरी शुभेच्छा के अनुरूप लक्ष्मी जी आयीं भी और विद्यामंदिर में ठहरीं भी . एक बार तो बैंकों में भी होड़ लग गई अपने अपने काउंटर विद्यामंदिर में खोलने की .
आज के लिए चर्चा स्थगित करूं . ... इति .
सुप्रभात .
Good morning
सुमन्त .
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
10 जनवरी 2015 .
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10 जनवरी 2016 . साझा और समीक्षा Manju Pandya
आज इस पोस्ट को फिर से प्रसारित करने का मन किया . वो दिन और वो लोग बहुत याद आते हैं , इसी में मेरे तकिया कलाम की कहानी छुपी है जो है .
#निहांईकीकल्लो
सुमन्त पंड्या .
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
साझा #बनस्थलीडायरी के अंतर्गत संशोधित और सम्मिलित .
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