बनस्थली में शिक्षक दिवस : Banasthali Pariwar. #बनस्थलीडायरी
सहयोग और अनुमति : मंजु पंड्या .
कैसे कैसे साथी थे बनस्थली में उन दिनों जो अवस्था में मुझसे बड़े लेकिन हास परिहास में बराबरी पर उतारू होते थे ये फरक मिट जाता था . इसी सब को याद करता हूं तो कई बातें याद आने लगती है . पिछली शताब्दी की एक छोटी सी बात बताता हूं . शिक्षक दिवस पर क्लास में लड़कियों ने मुझसे कह दिया :
" सर , आज आप एक गाना सुनाइए . " बात को मानते हुए मैंने भी एक गाना सुना दिया ,जहां तक मुझे याद है बहादुर शाह ज़फर का कलाम गाया " न किसी की आंख का नूर हूं न किसी के दिल का करार हूं ..... ." गाना मुझे क्या था उस अवसर पर लड़कियों की बात रखनी थी सो गा दिया . यहां यह कहना और भी जरूरी है कि मेरे साथी और विभागाध्यक्ष माथुर साब बहुत अच्छा गाते थे मुझमें तो वैसी योग्यता न थी . ख़ास मौका था बात हो गई . लड़कियों में क्लास के बाद और छात्रावास में आपस में बातें तो होती ही हैं . ये बात संगीत विभाग की लड़कियों के जरिए संगीत के विभागाध्यक्ष नादकर्णी जी तक पहुंच गई . हो सकता है उनसे भी गाने की फरमाइश की गई हो , आखिर संगीत के अध्यापक से तो ज्यादा उम्मीद होगी ही इस विषय में . लेकिन इस सब का नतीजा बिल्कुल फरक निकाला . मुझे पता लगा कि बजाय कोई गाना सुनाने के उन्होंने पूरे एक घंटे तक क्लास में भारत के राष्ट्रपति के अधिकारों पर चर्चा चलाई . वो इस प्रकार राजनीतिशास्त्र के पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप करना चाहते थे . इस बाबत जानकारी मिलने पर जब मैंने उनसे कुछ पूछा तो ये और बोले : " मेरे पेट पर लात मारोगे तो यही करूंगा और क्या करूंगा अब ? "
आज जब माथुर साब भी इस दुनियां में नहीं रहे नाडकर्णी जी भी नहीं रहे मुझे वो दिन बहुत याद आते हैं जो इनके साथ बिताए . गुजराती की एक कहावत है " लाम्बा न साथें ओछूं पड़ै , मरै न तो माँदूं पडै ." अर्थात लंबे के साथ ओछा चलेगा तो बीमार पड़ेगा . अब तो जफ़र की यही गजल कहूंगा :" लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में . "
सहयोग और समीक्षा : Manju Pandya .
सुप्रभात
Good morning .
सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
24 जनवरी 2015 .
#बनस्थली के दिन .
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