बड़ी ई की मात्रा ✍🏼🌹
---------------- ये अस्सी के दशक की बनस्थली की बात है और इस बात का सिलसिला बनस्थली की सबसे छोटी कक्षाओं के अध्ययन स्थल बाल मंदिर और सरस्वती मंदिर से शुरु होता है . इन कक्षाओं में अधिकतर परिसर के घरों के बच्चे ही पढ़ा करते थे उसी दौर की एक बहुत छोटी सी बात बताता हूं .
मिकी ( शांति जी का बेटा ) और अनुज ( ब्रदर का बेटा ) सहपाठी थे . अनुज कुछ दिनों के लिए जयपुर गया हुआ था उस दौरान मिकी स्कूल जा आ रहा था नियमित रूप से . एक दिन मिकी अपने दोस्त अनुज के बारे में उसके घर पूछने आया और तब वो बोला :
“ अनुज कब आएगा ? इधर कित्ता कोर्स हो गया ! ...अब तो बड़ी “ ई “ की मात्रा भी सिखा दी .”
सही बात है छोटे बच्चे के लिए ये ही बड़ा कोर्स है , और नहीं तो क्या .
अब बात चली है तो प्रसंगवश एक और बात यहां जोड़ूं . हिमांशु जब माणक चौक स्कूल , जयपुर में पढ़ने गया , ये उसकी कक्षा नौ की बात है , तो वहाँ वो शिक्षक दिवस पर मंच पर बोलने को खड़ा हुआ . उसका भाषण तो उसके काका ने तैयार करवाया था . उधर एक साथी दोस्त ने अपने लिए हिमांशु से भाषण लिखवा लिया और उसके आधार पर वो भी बोला . यहां उस साथी दोस्त ने लिखी इबारत के संकेताक्षर को न समझकर बात ऐसे शुरु की :
“ डाक्टर राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर अठारह सौ सत्यासी बड़ी ई को हुआ था ……”
अब वो बड़ी ई तो बड़ी ई ही रही उस साथी दोस्त के लिए , ऐसी हुई बात .
ख़ैर अब उस पीढ़ी के बच्चे तो ज़माने को पछाड़ रहे हैं जिसका ऊपर ज़िक्र आया है पर जब मैं असीम को स्कूल से घर लौटकर होमवर्क करने को तत्पर देखता हूं तो बरबस वो बातें याद आ जाती हैं .
बहरहाल बच्चे के लिए तो “ बड़ी ई “ ही बड़ा कोर्स है ये जान लीजिए .
नमस्कार 🙏
सुमन्त पंड़्या
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
शनिवार २१ जनवरी २०१७.
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