लिफ़्ट के इर्दगिर्द : भाग पांच : भिवाड़ी डायरी 🌻🌻
------------------ --------- --------------
बातें कुछ आगे पीछे अलबत्ता हो गईं हैं और इन बातों को समेटने में ही चार बैठकें हो गईं , चार पोस्ट लिखी हैं मैंने जो उपलब्ध हैं ही इससे पहले . जिस तरह आप सबने रूढ़िवादी सोच को लेकर मेरे आकलन की तस्दीक़ की उसके लिए आप सब का आभार व्यक्त करता हूं और इस चर्चा को आगे बढ़ाता हूं ताकि इसे विराम दिया जा सके . जिस दिन पाँचूलाल जी हमारे साथ यहां आए थे उसी दिन बहुत सी बातें हुई थीं उनसे उन्हीं को अब समेटने का प्रयास करूंग़ा : इनमें सब से रोचक है बच्चों की गिनती का क़िस्सा . ये मैं कुछ कुछ पहले से भी जानता था पर उस दिन इस इस बात की फिर से पुष्टि हुई थी .
अब बातें बिंदुवार :
१० .
उस दिन हमसे पूछा गया कि हमारे बच्चे कितने हैं और हम दोनों ने ये संख्या ‘ तीन ‘ बताई . ये सवाल आने से पहले बेटी से तो परिचय करवा ही चुके थे जो सामने थी और उसने ही अतिथि के आने पर आव भगत भी की थी . हमने बताया ‘ एक इससे बड़ा ‘ और ‘ एक इससे छोटा ‘ . जब उन्होंने अपना अनुमान बताया कि किसी कम्पनी में काम करते होंगे तो बात को साफ़ करने के लिए ये भी बताया कि किसी कम्पनी में काम नहीं करते , क्या करते हैं ये भी बहुत सादगी से बताया . उनका पूछना अपनी जगह सही था कि इस ज़माने में किसी कम्पनी में काम मिल जाना ही बड़ी बात होती है , ख़ैर . ये बात तो हो गई पर इतनी सूचना से उनकी संतुष्टि नहीं हुई और एक सवाल फिर भी बच रहा इस बाबत . उन्होंने पूछा :
“ और तीसरा ?”
अब ये क्या बात हुई भला !
सवाल बच्चों की बाबत था और हमारी बताई गई बातें ठीक से उनके ज़ेहन में दर्ज नहीं हुईं तभी तो पूछ रहे थे ,” और तीसरा ?”
इस बात पर हम दोनों ये कहने पर मजबूर हुए :
“ तीसरा बच्चा ये है तो सही जिसके घर में अभी हम बैठे हैं .”
इस बात पर एक पुरानी बात याद हो आई मुझे , केवल सवाल जवाब ही आपके सामने रख देता हूं :
सवाल : बच्चे कितने हैं ?”
जवाब : बच्चा तो एक ही है साब , बाक़ी तो लड़कियाँ हैं .
यही गफ़लत यहां हो रही थी . अतिथि ने लड़कों को तो बच्चों में गिन लिया था और लड़की को सामने देखकर भी गिनती में नहीं जोड़ पा रहे थे .
यही रूढ़िवादी सोच है जो आज २०१७ तक भी बच रहा है - लड़का असेट है और लड़की लायबिलिटी है . इसी सोच से ऐसी बातें उपजती हैं जो इस चर्चा में मैंने छेड़ीं .
११.
मात खाई :
किसने ? मैंने और किसने . अल्प अवधि की मुलाक़ात में अतिथि ने सामान्य ज्ञान की कई और बातें भी मुझसे पूछीं पर उस मामले में मैं अनभिज्ञ और अज्ञानी ही सिद्ध हुआ . जैसे यहां आस पास सम्पत्ति के मोल भाव क्या हैं , दोहितों की फ़ीस क़ित्ती चुकानी पड़ती है स्कूलों में इत्यादि . मुझे मेरे एक साथी का कथन याद आया .
“ मोहे नाय पतो। “
जितनी बातें याद रहीं वो तो सामने लाया मैं . अब इस चर्चा को विराम देता हूं .
नमस्कार 🙏
सुमन्त पंड़्या .
@ आशियाना आँगन भिवाड़ी .
सोमवार ९ जनवरी २०१७ .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी #sumantpandya
No comments:
Post a Comment