Monday, 30 January 2017

सरवणी बाई की याद : बनस्थली डायरी 🔔🔔

  सरवणी बाई की याद आ जाती है : #बनस्थलीडायरी .
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बनस्थली से हम लोग आए उससे थोड़े दिनों पहले तक सरवणी बाई हमारे घर में काम करने आया करती थी  . भोली और ग्रामीण महिला की अपनी समझ थी . उसके घर में कारपेंटरी का व्यवसाय तो चलता ही था जिस में उसके पति और बेटा राम अवतार  लगे थे , कुछ खेती की जमीन भी थी .
44 रवींद्रनिवास में एक अस्थाई अहाता बनवा कर कुछ फूल पौधों की परवरिश हम भी किया करते थे . दो नीम के पेड़ और एक गुड़हल का पेड़ तो आज भी वहां है जिनसे मेरा तो आज भी लगाव है . जीतू भैया इस बात की तस्दीक करेंगे जो अब  वहां रह रहे हैं .
एक दिन की बात .
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इसी अहाते में कुछ निराई गुड़ाई चल रही थी और प्रसंग कोई  ऐसा पौधा रोप देने का था जो दरख़्त बन जावे तो अनायास ही सरवणी बाई बोल पड़ी और मुझे समझाने लगी  , सुनिए उस की बात :
“ माट साब  ! अशान बात छै क  आम खा अर ऊं की  गुठली बो देवै न  तो ऊं सैं भी पेड़ ऊग्यावै छै .”
अर्थात :
“माट साब ऐसी बात है कि आम खाकर उसकी बची हुई गुठली को बो दिया जाए तो उस से भी पेड़ उग आता है .”
मैंने उसकी बात मान ली , एक दम सही बात जो थी .
वैसे तो वो मुझे मान देती थी पर मेरी समझ को उसने क्या माना . भोली महिला समझी कि शहर में पला बड़ा  हुआ यह व्यक्ति पेड़ कैसे बनता है ये बात तो क्या ही जानता होगा . खैर उसने एक समझदारी की बात बताई और मैंने मान ली थी .

अब क्यों आई ये बात याद ?
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जब से सोशल मीडिया से जुड़ा हूं मेरे कई शुभ चिंतकों को देखकर मुझे सरवणी बाई की सहसा याद हो आती है . इस बात को और ज्यादा खोलकर समझाने की आवश्यकता शायद नहीं है .
आज के लिए भोर की सभा स्थगित .
आप को आज की जगार मुबारक .
सुप्रभात .
टी टाइम विद :  Manju Pandya
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया . बापू नगर जयपुर .
रविवार 31 जनवरी 2015 .

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