सेठ जी की बात : बनस्थली डायरी
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दिल्ली में आजकल बड़ा पुस्तक मेला चल रहा है और हम लोग चाह कर भी वहां नहीं जा पा रहे पर ये सोचकर ही हम लोग ख़ुश हैं कि जो बच्चा किताब को ही सबसे बड़ी पूँजी और धरोहर मानता रहा वो है न दिल्ली में फिर अपणे क्या ज़रूरी है जाना , न सही .
ये सब सोचते सोचते एक पुरानी बात याद हो आई वो ही बात आज छेड़ता हूं .
बात पिछली शताब्दी की बनस्थली की है . लोकायत प्रकाशन वाले शेखर जी हर साल अपनी वैन लेकर आते और कई दिनों तक परिसर में रहकर अपनी टीम की मदद से पुस्तक प्रदर्शनी लगाते . इस क्रम में प्रदर्शनी के दो पड़ाव होते - १. उच्च शिक्षा प्रभाग और २. स्कूल प्रभाग . अच्छे साहित्य के चयन में शेखर जी का वाक़ई कोई मुक़ाबला नहीं पर वो बात अभी नहीं . अभी स्कूल प्रभाग में लगी उनकी प्रदर्शनी का एक छोटा सा क़िस्सा .
ख़ास बात :
--------- छोटा वाला याने मिहिर तब स्कूल में पढ़ता था और बाल साहित्य जो कभी उसको माँ पढ़कर सुनाया करती थी अब ख़ुद पढ़ने लगा था . स्कूल आते जाते वो भी पुस्तक प्रदर्शनी में चला जाता , किताबें देखता और घर भी ले आता . अपने यार दोस्तों को भी किताबों के बारे में बताता रहता . अब सुणो एक शिकायत की बात . उसके साथ पढ़ने वाली और छात्रावास में रहने वाली लड़कियाँ तो मोल चुकाकर किताबें लेतीं और इस लड़के को किताबें बिना मोल चुकाए ही मिल जातीं , अब थी तो शिकायत की बात . एक भोली लड़की ने शेखर जी से पूछा :
“ ये क्या बात हमको तो आप पैसे लेकर ही किताब देते हो और इसको वैसे ही दे देते हो , हम को क्यों नहीं देते ?”
अब उस लड़की को तो पता नहीं था शेखर जी से हमारे पारिवारिक सम्बन्धों का सो वो ऐसा पूछ बैठी थी .
अब शेखर जी बोले :
“ इनकी क्या बात , ये तो हमारे सेठ जी हैं …”
कितनी तो पुरानी बात हो गई पर मैं आज भी याद करता हूं तो हंसी आ जाती है , शेखर जी ने इसे सेठ जी बणा दिया था .
सराहाना के साथ स्मरण Lokayat Prakashan
नमस्कार 🙏
प्रातःक़ालीन सभा स्थगित .......
सुमन्त पंड़्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी
शनिवार १४ जनवरी २०१७ .
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