टाइम खत्म : जवाहर कलाकेन्द्र . #जेकेके
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जवाहर लाल नेहरू मार्ग , जयपुर का जवाहर कला केंद्र स्थापत्य का तो एक बेजोड़ उदाहरण है ही वहां एक इण्डियन कॉफी हाउस भी है . बापू नगर में आ बसने के बाद से वो एक स्थान है जहां बच्चा लोग ज्यादा और हम लोग यदा कदा वहां जाया करते हैं .
पहले तो मैं समझता भी नहीं था जब बात होती थी “ चलो कल जे के के में मिलते हैं “ तो ये जे के के क्या है पर अब समझता हूं .
मेरी समझ का क्या कीजिएगा मैं तो ईलू का का मतलब भी बहुत बाद में समझा था , खैर जाने दीजिए उस दिन की बात बताने से रह जाएगी जो बताना मैंने सोचा है .
उस दिन जीवन संगिनी ने कहा था कि जवाहर कलाकेन्द्र चलेंगे और रात के खाने का लोकाचार वहीँ पूरा करेंगे . घर में बच्चे कोई थे नहीं और कोई भी साथ देने वाला नहीं था . खाना घर में खाया जाए या बाहर इस पर हम दोनों लोग प्रायः दो सम्प्रदायों में विभाजित हो जाते हैं खैर उस दिन पारस्परिक सहमति और सौहार्द्र के चलते इन्डियन कॉफी हाउस के दर पर पहुंच ही गए थे और पैड़ियों के ऊपरी हिस्से पर खड़े होकर ये ताड़ने का प्रयत्न कर रहे थे कि अभी समय है या समय नहीं है . कुछ ग्राहकी और हलचल कम ही दीख रही थी . रात के साढ़े आठ और नौ के बीच का समय था उस समय वहां समेटा समेटी शुरु होने लगती है . वहां कैफेटेरिया में कुछ सीढियां उतरनी पड़ती हैं सो हम इस सोच में थे कि उतरें या न उतरें . तभी नीचे एक वेटर दिखाई दिया अपने अदल पिछाण लिबास में और उसका ध्यान भी चला गया ठिठके खड़े हम लोगों पर . मैं तो लगभग निरपेक्ष खड़ा था इस भाव से कि जो होना होगा हो जाएगा पर जीवन संगिनी उससे पूछ बैठी :
“ टाइन ख़तम हो गया क्या ? “
और इस सवाल के जवाब में वेटर जो बोला वो ही था उस दिन का “ की नोट “ और सनातन मूल्यवान उद्गार . वो बोला :
“ अगर वहीँ खड़े खड़े पूछते रहोगे तो तो हो गया टाइम ख़तम ! “
संकेत साफ़ था और हम लोग सीढियां उतर कर नीचे चले गए थे .
झेल लिए गए , आव भगत हो गई .
सीख की बात यही है कि खड़े खड़े पूछते रहोगे तो टाइम तो ख़तम हो ही जाएगा .
सुप्रभात .
सुमन्त पंड्या
घटना साक्षी : Manju Pandya
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@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
27 जनवरी 2016 .
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