Tuesday, 17 January 2017

झूंथ्या द ग्रेट 💐

  झूंथ्या  की बात :

यदा कदा मेरी बातों में इस झूंथ्या नाम के पात्र का उल्लेख आ जाता है  . झूंथ्या की कार्य शैली के चलते  वह न केवल एक ऐतिहासिक पात्र के रूप में जाना जाता है , एक कहावत भी बन गई है  :
       झूंथ्या वाळी  करी कै ?
      हा ,  झूंथ्या वाळी करी .
झूंथ्या एक विचारधारा और  कार्य शैली के साथ एक कहावत  का नायक कैसे बन गया उसी की गाथा आज की मेरी पोस्ट की विषयवस्तु है . जीवन के विविध क्षेत्रों में विविध अवसरों पर इस  झूंथ्या  टेक्नीक  को आजमाया जा सकता है , इसकी सफलता  आजमाने वाले की समझ और  सूझबूझ पर निर्भर करती है .

कहानी और  कहावत का  उद्गम :

झूंथ्या उस पुराने जमाने में  लोकायत  विचारधारा से  प्रभावित  और अपने सीमित आर्थिक संसाधनों में  गृहस्थी की  गुजर बसर करने वाला  प्राणी था . वह  श्राद्धपक्ष में भी आम लोगों की तरह कोई भोज का आयोजन नहीं करता था  या कहें कि नहीं कर पाता था . अपनी इस अवस्था से झूंथ्या को तो कोई कष्ट नहीं था पर आडम्बरी समाज के ठेकेदारों को कष्ट अवश्य था . लोगों ने उसपर दबाव बनाया कि  पितृ  पक्ष में  वह भी उसी प्रकार का आयोजन करे जैसा समाज के अन्य लोग करते हैं , उस आयोजन का पुण्य  झूंथ्या के पितरों को मिलेगा .
लोगों की बात  को मानते हुए  झूंथ्या ने जो समाधान के रूप में उपाय किया  वही *झूंथ्या वाळी  *  कहावत बन गया .

झूंथ्या एक बाग़ में पहुंचा जहां  सैंकड़ों लोगों की गोठ  चल रही थी , लोग भोजन कर रहे थे , झूंथ्या का इस से कोई सरोकार   नहीं था कि आयोजन  किसकी और से था उसे तो सहभोज का पुण्य अपने पितरों के लिए चाहिए था जिसके लिए वह प्रतिबद्ध था .
अब झूंथ्या ने बगैर आगा पीछा सोचे अंजलि में जल लेकर इस आशय का  संकल्प  बोल दिया कि ये जो सैंकड़ों लोग अन्न ग्रहण कर रहे हैं उसका पुण्य उसके पितरों को मिले .
यह उपलब्धि  झूंथ्या के लिए गया  श्राद्ध से कमतर नहीं  थी .

आयोजन किसी और का हो और संकल्प बोलकर पुण्य कोई और ले जाए तो यह कहलाती है * झूंथ्या वाळी *
समीक्षा :  Manju Pandya .

सुप्रभात
Good morning

सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
  18 जनवरी 2015 .

2 comments:

  1. Bahut sunder. Zhoontya ki vichardhara se poorna sahmat.
    Vasudha Nanawati

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    1. आभार वसुधा , ब्लॉग पर कमेंट इसको लोकप्रिय बनाएगा ।

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