Friday, 1 December 2017

बाई का फूल ... एक :  बनस्थली डायरी .


कबाड़ में जा रही थी ये पोस्ट , सहेजने को ब्लॉग पर दर्ज कर रहा हूं . 

आज शुरुआत है  , बात और आगे चलेंगीं .

बाई का फूल ...भाग एक : बनस्थली डायरी 


बाई का फूल …। : बनस्थली डायरी

---------------- ----------------- ये पिछली शताब्दी की बनस्थली की बातें हैं जब टोंक सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक की विद्या मंदिर विस्तार शाखा में हमारा महीने का वेतन चढ़ता था . वहां लक्ष्मी नारायण नाम का एक युवा अधिकारी बैठता था लैज़र और कैश लेकर . मुझ पर बहुत भरोसा करता उसकी एक बानगी :

“ साब आप बैठे हो थोड़ी देर , मैं थोड़ी देर बाहर हो आवूं ? “

अपना बिखरा कैश मेरे भरोसे छोड़कर चला जाता . ख़ैर , उस बख़त की एक आध छुटपुट बातें बताता हूं आज .


१. 

कोई दस बीस हज़ार की एफ डी करवाई मैंने और अगले दिन लक्ष्मी नारायण ने एफ डी रसीद बनाकर दे दी , निर्देश रहे “ पेएबल टू आइदर ऑर सरवाइवर “ . जीवन संगिनी का नाम साथ में .

रसीद घर भी ले गया . ध्यान से देखा तो पाया कि जीवन संगिनी का नाम लिखा था ‘ माया पंड़्या ‘.

वापिस गया विस्तार शाखा में और ग़लती सुधारने को बोला . लक्ष्मी नारायण क्या कहता है :

“ साब , क्या फरक पड़ता है ? “

और मैं बोला :

“ तेरे तो कोई फरक नहीं पड़ता , मेरे तो पड़ता है , घर पर सवाल नहीं उठेगा ये महा ठगिनी म’ माया ‘ कौण आ। गई बीच में ?”

और मैं बोला आगे :

“ रद्द कर इस रसीद को और ठीक से नई बना के दे .”

ख़ैर अपनी ग़लती सुधारी उस दिन लक्ष्मी नारायण ने …

जैसा शीर्षक दिया था वो बात तो आगे आएगी पर वो कल आएगी .

समयाभाव ..🔔

प्रातःक़ालीन सभा स्थगित 


आशियाना आँगन से नमस्कार 🙏 


सुमन्त पंड़्या 

@ भिवाड़ी 

रविवार १९ फ़रवरी २०१७ .

#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी

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आज क़िस्सा ब्लॉग पर प्रकाशित :

जयपुर 

शुक्रवार १ दिसम्बर २०१७ .

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1 comment:

  1. पोस्ट की अगली कड़ी अभी प्रकाशित करने जा रहा हूं . बात अभी और आगे चलेंगीं .

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