देखा सुना : गांव के स्कूल का किस्सा : बतर्ज भास्कर .
गांव के स्कूल का परीक्षा कक्ष:
माट साब कस्बे से चल कर परीक्षा में ड्यूटी करने आए है स्कूल में . हो गई कक्ष में परीक्षा शुरु . कापी पेपर बांट दिए और अब कमरे के दरवाजे के पास कुर्सी लगाकर डटे बैठे हैं माट साब . दरवाजे के पास कुछ हवा तो लगे , कमरे में तो कोई पंखा भी नहीं है . छोरे कर रहे हैं अपना काम सुविधा देखकर . अगर कोई सामग्री साथ लाए हैं तो उसको भी बरत रहे हैं अब माट साब तो अपनी जगह से उठकर आने से रहे , छोरे माट साब की इज्जत भी करते हैं और लिबर्टी भी लेते हैं . अब एक छोरे ने जब काफी कुछ सामग्री बरत ली तो माट साब हरकत में आए और बोले :
“ छोरा ! करै मन्नै ! न त रै देख आवूं छूं देख ! Q“
छोरा , इत्ते कहे से कब मानने वाला था छोरा वो भी जिद्दी , करता रहा अपनी मन मानी और माट साब को झुल्ला देता रहा :
” माट साब ! थोड़ो सो और कल्लेबा द्यो ! अजी माट साब .”
थोड़ी देर और हो गई , फिर लगाई हांक माट साब ने और फिर बोले :
” देख छोरा करै मन्नै ! न त रै देख आवूं छूं देख ! “
अब आप पूछे बिना न मानोगे ,” फिर क्या हुआ ? “
होना क्या था , माट साब ने उठ के जाने का श्रम नहीं किया , छोरा माना नहीं , और छोरों को लाइसेंस और मिल गया .
ऐसे ही चली परीक्षा.
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