Monday, 11 December 2017

गांव के स्कूल में : बतर्ज भास्कर

देखा सुना : गांव के स्कूल का किस्सा : बतर्ज भास्कर .

गांव के स्कूल का परीक्षा कक्ष:

माट साब कस्बे से चल कर परीक्षा में ड्यूटी करने आए है  स्कूल में  . हो गई कक्ष में परीक्षा शुरु . कापी पेपर बांट दिए और अब कमरे के दरवाजे के पास कुर्सी लगाकर डटे बैठे हैं माट साब . दरवाजे के पास कुछ हवा तो लगे , कमरे में तो कोई पंखा भी नहीं है . छोरे कर रहे हैं अपना काम सुविधा देखकर . अगर कोई सामग्री साथ लाए हैं तो उसको भी बरत रहे हैं  अब माट साब तो अपनी जगह से उठकर आने से रहे  , छोरे माट साब की इज्जत भी करते हैं और लिबर्टी भी लेते हैं . अब एक छोरे ने जब काफी कुछ सामग्री बरत ली तो माट साब हरकत में आए और बोले :

 “ छोरा ! करै  मन्नै ! न त रै देख आवूं छूं देख ! Q“

छोरा  , इत्ते कहे से कब  मानने वाला था  छोरा वो भी जिद्दी , करता रहा अपनी मन मानी  और माट साब को झुल्ला देता रहा :

” माट साब ! थोड़ो सो और कल्लेबा द्यो ! अजी माट साब .”

थोड़ी देर और हो  गई , फिर लगाई हांक माट साब ने  और फिर बोले :

” देख छोरा करै मन्नै  ! न त रै देख आवूं छूं देख ! “

अब आप पूछे बिना न मानोगे ,” फिर क्या हुआ ? “

होना क्या था  , माट साब ने उठ के जाने का श्रम नहीं किया , छोरा माना नहीं  , और छोरों को लाइसेंस और मिल गया .

ऐसे ही  चली परीक्षा.

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