बाईं का फूल -चार : बनस्थली डायरी
----------------- -------------- इस शीर्षक से तीन कड़ी पहले लिखी थी और बात मजबूरी में रोकनी पड़ीं थी . कौन थे एम डी साब ? यहीं बात अटकीं थी . सीधे सीधे कह देता कि मेरे सहपाठी थे और इसलिए घर मिलने आए थे पर इत्ता कहने से मन भरता नहीं इसलिए उस दिन रोकी बात , शायद आज बात पूरी हो जावे .
४.
ये एम डी थे राजस्थान कोआपरेटिव सर्विस के ज्वाइंट डायरेक्टर हैसियत के राम अवतार जैन जो उस समय डेपूटेशन पर बैंक में लगे हुए थे और राजस्थान विश्वविद्यालय में एम ए कक्षाओं में मेरे सहपाठी रहे थे . पर यादों का सिलसिला और पीछे तक जाता है वो भी आज बताए देता हूं .
नवम्बर १९६७ में बिट्स , पिलानी में गांधी स्मारक बाद विवाद प्रतियोगिता थी , जैनेंद्र कुमार सभा की अद्यक्षता करने आए हुए थे . उस बड़े हाल में बोलना मेरा तो पहला ही अनुभव था , मैं विश्वविद्यालय राजस्थान कालेज का प्रतिनिधित्व करने गया था . ऐसा कम होता है पर उस दिन तो ऐसा ही हुआ कि एक प्रतियोगी के रूप में मैं जब बोल चुका तो सभाध्यक्ष ने भी ताली बाजाई . और लोगों ने मुझे ख़ास तौर से ये बात बताई .
उस प्रतियोगिता के परिणाम में एक ख़ास बात ये हुई कि एक तरफ़ तो मुझे प्रथम प्रथम पुरस्कार मिला और दूसरी तरफ़ टीम के प्राप्तांकों के आधार पर राजऋषि कालेज , अलवर के दो छोरे ट्राफ़ी ले गए . अब ये सब होनहार की बात उन दो लड़कों में से एक थे ये राम अवतार . कोई डेढ़ बरस बाद जब जयपुर में एम ए कक्षाओं में साथ पढ़ने आए तो हमारी वो यादें ताज़ा हो गईं ….
इसके अलावा और भी कई बातें हमें आपस में जोड़ने वाली थीं …..
एम ए का रिज़ल्ट निकलने के बमुश्किल दो हफ़्ते बाद मैं तो बनस्थली में काम करने लग गया था और ये शहर के साथी जयपुर में ही छूट गए थे . फिर मिले हम कन्वोकेशन के दिन जयपुर में , इस दिन राम अवतार भी डिग्री लेने आए थे . उसके छह दिन पहले इनके ही एक टीचर की बेटी से मेरा विवाह हो चुका था .
इस प्रकार कितने ही सूत्र थे हमें आपस में जोड़ने वाले …..
अब एम डी साब बनस्थली आए तो मेरे घर कैसे नहीं आते भला ? वो मेरे हबीब भी थे रक़ीब भी थे .
उस अच्छे समय को याद करते हुए प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ….
सुप्रभात , नमस्कार 🙏 .
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ब्लॉग पर प्रकाशित :
जयपुर
सोमवार ४ दिसम्बर २०१७ .
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