Saturday, 2 December 2017

सी डी के विशेषज्ञ  : बनस्थली डायरी  📕

सी डी के विशेषज्ञ  💐


बनस्थली की वह शाम रवीन्द्र निवास में ..........


बनस्थली में वह परिवर्तन का दौर था । विभागों का विस्तार हो  रहा था  । इसी विस्तार के तहत होम सायन्स में पहला एम एस सी कोर्स शुरू हुआ था । पेड़ के  नीचे से स्टाफ रूम उस कक्ष में आ गया था  जो कभी प्रिंसिपल का कक्ष  हुआ करता था । होम सायन्स में कभी बी एस सी तक की ही पढ़ाई होती थी  , अब आगे की पढ़ाई होने को थी । सुधा नारायणन  सन्यास लेकर चली गयी थीं और नई नई प्राध्यापिकाएं  आ गयी थीं । एम एस सी की पढ़ाई के लिए अधिक स्टाफ जो चाहिए था । मेरा विभाग  बहुत पहले से था । ब्रदर डॉक्टर शिव बिहारी माथुर  हमारे सिरमौर थे ,  मैं उनके वहां पहुंचने से पांच वर्ष बाद इस विभाग , राजनीति शास्त्र , से जुड़ा था । अरुणा वत्स और पांच वर्ष बाद  इस विभाग से जुड़ी थीं  ।   बहरहाल जो बात हमें जोड़ने वाली थी वह ये कि हम तीनों एक ही जगह के प्रोडक्ट थे  , राजस्थान विश्वविद्यालय राजनीतिशास्त्र विभाग ।  दो विभागों का काम चलाऊ परिचय हो गया , अब आगे की बात :


      दोपहर का समय मैं स्टाफ रूम में बैठा था  और  सामने होम सायन्स की एक टीचर बैठी थी  जिसने बमुश्किल पढाना शुरु किया  होगा यह अवस्था देखकर लगता था । युवती से परिचय हुआ  , उसने अपना सुन्दर सा नाम भी  बताया जिसे मैं यहां दोहराऊंगा नहीं । थोड़ी सी देर बातचीत हुयी  , कक्षा का समय हो गया दोनों अपने अपने गन्तव्य को चले गए  । जो थोड़ी सी बात हुई वो इस प्रकार -------


~ आपका स्पेशलाइजेशन क्या है  ?


*    सी . डी .


~  मायने बताइये ?


*    चाइल्ड   डेवलपमेंट  ( बाल विकास ).


~ साइंस सब्जेक्ट है तो  इसमे प्रैक्टीकल भी करवाते होंगे  ?


*  जी हां  वो भी होता है  ।


~  तब  अब  आप मुझे  जरा सा ये बताइये कि  सी डी की विशेषज्ञ आप हैं  या मैं हूं   ?

   विभाग में किसी का भी लगन नहीं हुआ , बच्चे बड़े करने का  कोई  अनुभव नहीं  और आप लोग सी डी के विशेषज्ञ  कहलाते हैं ।  मैंने दो बड़े कर दिए  , खड़े कर दिए सो  कोई बात ही नहीं .... स्पेशलिस्ट तो आप हैं । मैं समझा बात हो गयी  , पर ये तो इंटरेक्शन की शुरुआत थी ये बात आगे तक गई  जो मैं अगली बैठक में  जोड़ूंगा..........


शुभ प्रभात


good morning .

दूसरी पारी :


जो बात स्टाफ रूम में हुई थी  वह वहां खतम नहीं हुई  , बात  दूसरे विभाग से होते हुए  कार्यशील  महिला आवास तक चली गई  और उसका जो परिणाम  निकला  :


  उसके लिए मेरी तैयारी बहुत कमजोर थी  जो आगे मैं बताने जा ही रहा हूं  ।   हमारे विभाग , राजनीतिशास्त्र , में साधना अस्थाई नियुक्ति पर  काम कर रही थी और कार्यशील महिला आवास में ही रह रही थी ।  साधना जो कि दयालबाग , आगरा  से आई थी उसका अन्य विभागों की शिक्षिकाओं से  सह आवास के कारण संपर्क था  और विभाग में हम लोगों से तो खैर संपर्क था ही । साधना के  माध्यम से सूचना आई कि कार्यशील महिला आवास  में रहने वाली छह   प्राध्यापिकाएं मुझसे मेरे घर आकर मिलना चाहती हैं  । मेरे लिए अजीब संकट  न समय दूं तो  घमंडी कहलावूं  और समय दूं तो झेलूं कैसे ?  हालात ने मुझे अकेला रख छोड़ा था । जीवन संगिनी का साथ हो तो मैं बरात झेल लूं  , और आगे  ऎसा हुआ भी पर उस दिन , या यों कहें कि उन दिनों तो घर की हालत ये थी  कि एक कमरा तो मय कुर्सियों के बन्द पड़ा था उसमे धूल भरी थी  । सारा जरूरत  का सामान मय किताबों कागजों के मेरे बिस्तर के इर्द गिर्द आ गया था  । आगंतुकों के लिए बहुत जगह नहीं थी । खैर अब समय तो देना  ही था , हालांकि ये भी  लग रहा था कि एक को चुनौती दी , जवाब  देने को छह आ  रही हैं  । मैंने साधना के ही  जरिए समय  दे दिया  । हारे के हरिनाम  विभाग में  उन दोनों से मदद मांगी जिनका ऊपर ज़िक्र किया है   । ब्रदर ने कहा ,  तुमको उस होम सायन्स वाली   से अटकने की क्या जरूरत थी ?   

ब्रदर अब तो हो गया  , आप  शाम को आ जाना  और सभा की अध्यक्षता करना ,  मैं बोला । खैर वो आये थे और स्थिति को सम्हाला शाम को । 


अरुणा जी को भी कहा , वे हमेशा  की तरह मेरे दुःख सुख में साथी थीं  और उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि उनका पूरा सहयोग  मुझे मिलेगा ।  तत्काल मैं 44 नम्बर को बैठने लायक बनाने में जुट गया । जब शाम आई और मेहमान आये तब तक मैं गुजराती ढोकला    बना चुका था  और अरुणा जी मसाले दार  मूंगफली तैयार कर लायीं थीं   जो  वो हमेशा बहुत बढिया बनाती थीं  । हम लोगों ने उन सब का ख़ुशी से स्वागत किया , जब कॉफी बनाने की बारी आई तो  इन मेहमानो  ने हम तीनो को न उठने दिया ।  हालांकि ब्रदर ने आदतन यह भी कहा : मेहमां  जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है  ।  पर साब अब तो  मेरी रसोई उनके हवाले थी । बहुत बढ़िया   कॉफी  उनलोगों ने बनाकर पिलाई ।


मुख्या बात तो  छूट ही गई उन लोगों के आने से बाल मनो विज्ञान और बाल व्यवहार पर  लंबी चर्चा हुई । शास्त्र सम्मत  बातें  हमें भी जानने को मिलीं  , जीवन अनुभव की बातें मैंने भी कहीं । लंबी बैठक तब तक चली जब तक कार्यशील  महिला    आवास     के दरवाजे  रात भर के लिए बंद हो जाने का समय  नजदीक न आ     गया    जब मेहमान चले गए तो ब्रदर बोले :  देखो सब की सब ऐसे  तैयार होकर आईं थीं जैसे किसी पार्टी में आई हों !


#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #sumantpandyaसी डी के विशेषज्ञ  💐


बनस्थली की वह शाम रवीन्द्र निवास में ..........


बनस्थली में वह परिवर्तन का दौर था । विभागों का विस्तार हो  रहा था  । इसी विस्तार के तहत होम सायन्स में पहला एम एस सी कोर्स शुरू हुआ था । पेड़ के  नीचे से स्टाफ रूम उस कक्ष में आ गया था  जो कभी प्रिंसिपल का कक्ष  हुआ करता था । होम सायन्स में कभी बी एस सी तक की ही पढ़ाई होती थी  , अब आगे की पढ़ाई होने को थी । सुधा नारायणन  सन्यास लेकर चली गयी थीं और नई नई प्राध्यापिकाएं  आ गयी थीं । एम एस सी की पढ़ाई के लिए अधिक स्टाफ जो चाहिए था । मेरा विभाग  बहुत पहले से था । ब्रदर डॉक्टर शिव बिहारी माथुर  हमारे सिरमौर थे ,  मैं उनके वहां पहुंचने से पांच वर्ष बाद इस विभाग , राजनीति शास्त्र , से जुड़ा था । अरुणा वत्स और पांच वर्ष बाद  इस विभाग से जुड़ी थीं  ।   बहरहाल जो बात हमें जोड़ने वाली थी वह ये कि हम तीनों एक ही जगह के प्रोडक्ट थे  , राजस्थान विश्वविद्यालय राजनीतिशास्त्र विभाग ।  दो विभागों का काम चलाऊ परिचय हो गया , अब आगे की बात :


      दोपहर का समय मैं स्टाफ रूम में बैठा था  और  सामने होम सायन्स की एक टीचर बैठी थी  जिसने बमुश्किल पढाना शुरु किया  होगा यह अवस्था देखकर लगता था । युवती से परिचय हुआ  , उसने अपना सुन्दर सा नाम भी  बताया जिसे मैं यहां दोहराऊंगा नहीं । थोड़ी सी देर बातचीत हुयी  , कक्षा का समय हो गया दोनों अपने अपने गन्तव्य को चले गए  । जो थोड़ी सी बात हुई वो इस प्रकार -------


~ आपका स्पेशलाइजेशन क्या है  ?


*    सी . डी .


~  मायने बताइये ?


*    चाइल्ड   डेवलपमेंट  ( बाल विकास ).


~ साइंस सब्जेक्ट है तो  इसमे प्रैक्टीकल भी करवाते होंगे  ?


*  जी हां  वो भी होता है  ।


~  तब  अब  आप मुझे  जरा सा ये बताइये कि  सी डी की विशेषज्ञ आप हैं  या मैं हूं   ?

   विभाग में किसी का भी लगन नहीं हुआ , बच्चे बड़े करने का  कोई  अनुभव नहीं  और आप लोग सी डी के विशेषज्ञ  कहलाते हैं ।  मैंने दो बड़े कर दिए  , खड़े कर दिए सो  कोई बात ही नहीं .... स्पेशलिस्ट तो आप हैं । मैं समझा बात हो गयी  , पर ये तो इंटरेक्शन की शुरुआत थी ये बात आगे तक गई  जो मैं अगली बैठक में  जोड़ूंगा..........


शुभ प्रभात


good morning .

दूसरी पारी :


जो बात स्टाफ रूम में हुई थी  वह वहां खतम नहीं हुई  , बात  दूसरे विभाग से होते हुए  कार्यशील  महिला आवास तक चली गई  और उसका जो परिणाम  निकला  :


  उसके लिए मेरी तैयारी बहुत कमजोर थी  जो आगे मैं बताने जा ही रहा हूं  ।   हमारे विभाग , राजनीतिशास्त्र , में साधना अस्थाई नियुक्ति पर  काम कर रही थी और कार्यशील महिला आवास में ही रह रही थी ।  साधना जो कि दयालबाग , आगरा  से आई थी उसका अन्य विभागों की शिक्षिकाओं से  सह आवास के कारण संपर्क था  और विभाग में हम लोगों से तो खैर संपर्क था ही । साधना के  माध्यम से सूचना आई कि कार्यशील महिला आवास  में रहने वाली छह   प्राध्यापिकाएं मुझसे मेरे घर आकर मिलना चाहती हैं  । मेरे लिए अजीब संकट  न समय दूं तो  घमंडी कहलावूं  और समय दूं तो झेलूं कैसे ?  हालात ने मुझे अकेला रख छोड़ा था । जीवन संगिनी का साथ हो तो मैं बरात झेल लूं  , और आगे  ऎसा हुआ भी पर उस दिन , या यों कहें कि उन दिनों तो घर की हालत ये थी  कि एक कमरा तो मय कुर्सियों के बन्द पड़ा था उसमे धूल भरी थी  । सारा जरूरत  का सामान मय किताबों कागजों के मेरे बिस्तर के इर्द गिर्द आ गया था  । आगंतुकों के लिए बहुत जगह नहीं थी । खैर अब समय तो देना  ही था , हालांकि ये भी  लग रहा था कि एक को चुनौती दी , जवाब  देने को छह आ  रही हैं  । मैंने साधना के ही  जरिए समय  दे दिया  । हारे के हरिनाम  विभाग में  उन दोनों से मदद मांगी जिनका ऊपर ज़िक्र किया है   । ब्रदर ने कहा ,  तुमको उस होम सायन्स वाली   से अटकने की क्या जरूरत थी ?   

ब्रदर अब तो हो गया  , आप  शाम को आ जाना  और सभा की अध्यक्षता करना ,  मैं बोला । खैर वो आये थे और स्थिति को सम्हाला शाम को । 


अरुणा जी को भी कहा , वे हमेशा  की तरह मेरे दुःख सुख में साथी थीं  और उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि उनका पूरा सहयोग  मुझे मिलेगा ।  तत्काल मैं 44 नम्बर को बैठने लायक बनाने में जुट गया । जब शाम आई और मेहमान आये तब तक मैं गुजराती ढोकला    बना चुका था  और अरुणा जी मसाले दार  मूंगफली तैयार कर लायीं थीं   जो  वो हमेशा बहुत बढिया बनाती थीं  । हम लोगों ने उन सब का ख़ुशी से स्वागत किया , जब कॉफी बनाने की बारी आई तो  इन मेहमानो  ने हम तीनो को न उठने दिया ।  हालांकि ब्रदर ने आदतन यह भी कहा : मेहमां  जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है  ।  पर साब अब तो  मेरी रसोई उनके हवाले थी । बहुत बढ़िया   कॉफी  उनलोगों ने बनाकर पिलाई ।


मुख्या बात तो  छूट ही गई उन लोगों के आने से बाल मनो विज्ञान और बाल व्यवहार पर  लंबी चर्चा हुई । शास्त्र सम्मत  बातें  हमें भी जानने को मिलीं  , जीवन अनुभव की बातें मैंने भी कहीं । लंबी बैठक तब तक चली जब तक कार्यशील  महिला    आवास     के दरवाजे  रात भर के लिए बंद हो जाने का समय  नजदीक न आ     गया    जब मेहमान चले गए तो ब्रदर बोले :  देखो सब की सब ऐसे  तैयार होकर आईं थीं जैसे किसी पार्टी में आई हों !


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