Tuesday, 5 December 2017

पोरंपरा  ... दो  : बनस्थली डायरी .

पोरम्परा......भाग----2****


सुबह फुरसत प्रसंग में उलझ गया था अतः इस प्रसंग को आगे न बढ़ा पाया था । अब कुछ फुरसत निकाल कर इस बाबत लिखने बैठा हूँ । बनस्थली की एक अपराह्न मेरे अभिन्न मित्र सेठजी 44 रवीन्द्र निवास में आये । फ्रैंच के सुयोग्य प्राध्यापक प्रदीप सेठ वैसे रहते तो अरविन्द निवास में थे पर शाम को उधर उनका मन नहीं लगता और इधर रवीन्द्र निवास में हम लोगों के पास चले आते ।दुनियां जहान की बातें होतीं । स्थानीय से लेकर प्रान्तीय , राष्टीय और अंतरराष्ट्रीय प्रसंगों पर मैं अपनी समझ जैसी बात कहता । मेरा भी जी हल्का हो जाता ,मोहल्ले के और लोग भी बात में बात मिला देते और इस तरह शाम बीत जाती । ऐसी शामों के लिए ही शायद गजल की पंक्तिया कही गई थी : कट गई वस्ल की शब और कोई आहट न हुई , वक्त इसी तरहा दबे पांव गुज़र जाता है ! सिलसिला.... *

       

खैर , आज सेठजी एक सुखद निमित्त से आये थे । विद्यापीठ का दीक्षांत समारोह होने जा रहा था और उन्हें पी एच डी की उपाधि मिलने वाली थी । वे यहां अधोवस्त्र धारण करने आये थे । धोती कुर्ता उत्तरीय लेकर आये थे , मुझे उन्हें धोती पहनानी थी । आदत के मुताबिक़ मैंने बाहरवाला कमरा खाली करवाया , दोनों कमरों को जोड़ने वाला दरवाजा बंद किया और सेठ जी से कहा : उतारो ये पतलून और हो जावो खुल्लमखुल्ला । सेठ जी को धोती पहनाई ,कुर्ता उन्होंने खुद पहन लिया , दुपट्टा लगाया और इस प्रकार एक दीक्षार्थी के रूप में सेठ जी को 44 रवीन्द्र निवास से विदा किया । कितने सुन्दर लग रहे थे सेठ जी यह तो आप मेरी आंखों से ही देख सकते हैं ।

   बात वैसे तो यहां आकर ठहरती है कि कभी यहीं कमरे में टाई लगाईं थी आज धोती पहनाई थी पर इस प्रसंग से जुड़ा हुआ एक लंबा इतिहास है जो किसी अगली पोस्ट में आ ही जाएगा । आज वह बात बताकर बात समाप्त करूं जो सेठ जी से हुई थी ।

       मैंने सेठ जी से पूछा : आप यहां तक चलकर क्यों आये ? अरविन्द निवास में भी कोई न कोई आप को धोती पहना देता ।

      इस बात पर सेठ जी जो बोले वो बोल कर मेरे ह्रदय सम्राट बन गए , वो बोले :


           पोरम्परा है ! ( परंपरा है ! )

***********************

ब्लॉग पर प्रकाशित :

जयपुर .

बुधवार  ६ दिसम्बर २०१७.

******************************

No comments:

Post a Comment