बाईं का फूल - तीन : बनस्थली डायरी
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बात चली थी और सारा प्रसंग द टोंक सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक और उसकी विस्तार शाखा के इर्द गिर्द घूम रहा था , जिसमें लक्ष्मी नारायण का विशेष उल्लेख आया था . पहली कड़ी में ख़ास जुमला ये था कि माया मेम साब का नाम मेरे साझे में जुड़ गया था और दूसरी कड़ी में इस राजस्थानी कहावत की पुनर्स्थापना थी : “ बाई का फूल बाई कै ही लाग जायला .” इसके पीछे मेरी वही धारणा पुत्री संतान को मज़बूत बनाना . ख़ैर वो बातें हुईं , अब चूँकि बात की शुरुआत लक्ष्मी नारायण से जुड़ी है तो आज तीसरी बात कहकर इस चर्चा का समापन करूंग़ा जिसकी पूरक बातें लक्ष्मी नारायण की ही बताई हुई हैं .
३.
एक बार की बात द टोंक सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के एम डी साब बनस्थली दौरे पर आए साथ में उनकी पत्नी भी आई हुई थी . एक तीर से दो शिकार , सरकारी दौरा भी हो जाएगा और ये लोग विद्यापीठ भी देख जाएँगे ये विचार रहा होगा . जब वे प्रधान शाखा में आकर बैठे उसके बाद उन्होंने मेरा नामोल्लेख किया और इच्छा प्रकट की कि वो मुझसे भी मिलना चाहेंगे , बैंक का दौरा तो ख़ैर अपनी जगह था ही .
उधर कच्चे क्वार्टर की तरफ़ थी तब बैंक की प्रधान शाखा , मैनेजर गुप्ता साब और लक्ष्मी नारायण दोनों ने ही सुनी थी एम ड़ी साब की बात पर बात सुनकर लक्ष्मी नारायण ने कुछ ज़्यादा ही फुर्ती दिखाई और वो टेबिल पर से स्कूटर की चाबी उठाकर बाहर जाने लगा . पूछा एम ड़ी साब ने तो बोला :
“ साब को यहीं लियाता हूं .”
तब बोले एम ड़ी साब :
“ मैंने कहा क्या उनको लेकर आने के लिए ? न न मुझे उनके घर जाकर मिलना है .”
ख़ैर वो हो गई बात बैंक से फ़ारिग़ होकर ये टीम चवालीस रवीन्द्र निवास आई और प्रोटोकाल में दोनों बैंक अधिकारी भी साथ आए . एक बात और हुई इस आने में कि साब ने सरकारी गाड़ी घर से दूर खड़ी करवा दी और बोले :
“ …..आगे पैदल पैदल ही ज़ाएंगे उन के घर के बाहर .”
ये सब बात लक्ष्मी नारायण ने ही बताई मुझे क्योंकि उस दिन उसे लगा कि ‘ माट साब ‘ का ओहदा ‘ एम डी साब ‘ से ऊँचा है .
कौन थे एम डी साब ?
ये बात भी आएगी पर अब बज गई घंटी ।🔔🔔
प्रातःक़ालीन सभा स्थगित …..
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ब्लॉग पर प्रकाशित :
जयपुर
रविवार ३ दिसम्बर २०१७ .
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इस पोस्ट की चौथी कड़ी भी देखिएगा ।
ReplyDeleteचौथी कड़ी में सस्पेंस दूर होगा कि मेरे घर क्यों आए एम डी साब ।
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