Tuesday, 19 December 2017

“सो यू हैव ऑल्सो ज्वाइंड सुमन्त ?”:जयपुर डायरी

सो यू हैव आल्सो ज्वाइंड सुमन्त ?”:मेरे विद्यार्थी जीवन की वो याद .

  

 आज उस घडी को याद करता हूं तो भाव विभोर हो जाता हूं जब मैं राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में पढ़ने गया था .जुलाई 1968 :मैंने विभाग में एम ए में दाखिला ले लिया था और विभिन्न कक्षाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगा था . बी ए कक्षाओं में पढ़ते हुए इस विभाग में भी मेरा आना जाना रहा था उसी का परिणाम और प्रभाव बताता हूं जो इस प्रश्न वाक्य में परिलक्षित होता है .

विभाग का थियेटर नंबर वन : थियेटर की बैठक व्यवस्था कुछ इस प्रकार की थी कि किसी भी पेपर की क्लास में सबसे आगे की बैंच को छोड़ कर अगली तीन बेंचें तो लड़कियों से भरी होती थीं , ऐसी लड़कियां जो मुख्य रूप से जयपुर के महारानी कालेज और कानोड़िया से पढ़कर आई हुई होती थीं और उसके बाद की बैंचों पर लड़कों का नंबर आता . ये लडके मुख्य रूप से राजस्थान कालेज , जो आर्ट्स के लिए जाना जाता था और अन्य जिलों के कॉलेजों से पढकर आए हुए होते बैठते इन्हीं में मेरा भी स्थान था . इतना मुझे याद आता है कि इनमें लड़कियों का अनुपात ज्यादा ही होता था . लड़कों के लिए तब तक साइंस पढ़ने का चलन ज्यादा था .फिर भी काफी कुछ संख्या लड़कों की भी होती थी इनमें बाहर गांव से शहर में पढने आए लड़के भी होते थे . तब आज की तरह छोटी छोटी जगहों पर पी जी कॉलेज नहीं होते थे .

ये वो दिन था जब सब दाखिले मुकम्मल हो जाने के बाद राजनीतिशास्त्र विभाग के संस्थापक विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर एस पी वर्मा क्लास पढ़ाने आए थे और एम ए प्रीवियस में दाखिल विद्यार्थियों के नाम अपने हाजिरी रजिस्टर में दर्ज कर रहे थे . मुझे बताया गया था कि किसी जमाने में तो वो ये काम नहीं करते थे उनके लिए पहले आकर रत्नानी बाबू ये हाजिरी का काम कर जाया करता था . पर अब तो सब लड़का लड़की से परिचय पूछकर वर्मा साब खुद नाम दर्ज कर रहे थे . बारी बारी से सब कोई अपना नाम लिखवा रहे थे . ऐसे में कोई तीसरी चौथी पंक्ति पर वर्मा साब की निगाह पहुंची तो मेरी भी बारी आई और मेरे तमाम सहपाठी ये देखकर चकित थे कि वर्मा साब ने मुझसे कोई सवाल नाम , गाँव बाबत नहीं पूछा और वो बोले :

   “ सो , यू हैव आलसो ज्वाइंड सुमन्त . .? “

 मानो मेरे यहां पढ़ने आने की तो उन्हें बाट ही थी .

मेरे सहपाठी इस बाबत रश्क करने लगे कि मेरे विभाग में आने के पहले से ही वर्मा साब मुझे इतने अच्छे से कैसे जानते थे . 

इसकी भी एक लंबी कहानी है जो अगली किसी कड़ी में लिखूंगा .


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