आशियाना से नमस्कार 🙏
अब ऐसे अच्छे दिनों की इंतज़ार है जब क्या क्या होवेगा :
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१.
ए टी एम में घुसकर पहले की तरह वक़्त ज़रूरत को पैसा निकाल पावेंगे .
२.
किसी बैंक में जावेंगे तो बरोबर से वो ही सीनियर सिटीज़न सम्मान पाएँगे जो मौजूदा आफ़त के दौर से पहले पाया करते थे .
३.
बाज़ार जाएँगे तो ज़रूरत की चीज लेकर ये नहीं सोचना पड़ेगा कि अब भुगतान की कैसे जुगत बैठे , विकल्प खुले होंगे कि ऐसे चाहो तो ऐसे और वैसे चाहो तो वैसे .
४.
आजकल की तरह बच्चों के सामने मंगत्यापणा नहीं दिखाना पड़ेगा कि मेरे लिए ये कर दो और मेरे लिए वो कर दो .
५.
या तो अपण पूरम पट्ट डिजिटल हो जाएँगे और न तो अंटी में ऐसा पैसा होगा जो झिलेगा बाजार में . वो पैसा धातु का हो , काग़ज़ का हो या प्लास्टिक का अब महाराज वो तो जैसी राज की मर्ज़ी होगी वो ही तो मुद्रा चलेगी .
६.
और किसी ऐरे ग़ैरे की ये हिम्मत न होवेगी कि वो अपण से ये बोल देवे कि फ़लाँ जगह लाइन में लग सकते हो तो यहां क्यों नहीं ? और तब लाइन में लगे थे तो अब क्यों नहीं .
७.
ऐसी ताक़त बनाए रखना प्रभु कि अपण पलट कर पूछ सकें :
" तुम से मतलब .. ?...चोप !"
आज इन स्फुट विचारों को सूत्रबद्ध करने में समय बीत गया , आगे आएगी अपणी " एथिकल स्ट्राइक " की बात , देखें कैसी बण पड़ती है .
भरोसा है ऐसे दिन आएँगे . और फिर मेरा वो ही तकिया कलाम :
" ये तो बार की बात छै माट सांब ..... फेर तो थे जाणो !"
प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ....
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सच्ची बात ये है कि ये गए बरस का लेख है , मेरी जो मनोदशा तब थी वो ही अब है . आप जाणो मैं जो मन में आता है कह देता हूं . आज अपने मित्रों से प्रोत्साहन पाकर इसे ब्लॉग पर दर्ज कर रहा हूं , देखिएगा .
जयपुर
सोमवार ४ दिसम्बर २०१७ .
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ब्लॉग पोस्ट को आज फिर चर्चा के लिए खोला है ।
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