पोरम्परा है : भाग एक . मर्दाना धोती की बात : बनस्थली डायरी .
कहा गया शब्द वास्तव में परम्परा है पर इसे ऊपर इस प्रकार इसलिए लिखा गया है ताकि यह लगे कि यह किसी बांग्ला भाषी द्वारा कहा गया है । इस परम्परा को बताने के लिए पहले मैं आपको अपनी कहानी सुनाऊं । मैं और मेरा छोटा भाई विनोद हवामहल के नीचे कैंची और चाकुओं पर धार लगवाने गए हुए थे जो ऐसे उपकरणों से लगाईं जाती है जो फौलाद की बनी चीजों को भी पैना कर देते हैं । ये वो कारीगर था जो कभी तलवारों को धार लगाता था , अब घरेलू उपकरणों पर धार लगाने लगा था जो बरतते बरतते भोंथरे हो जाते हैं । इस काम की लागत की बात चली , जमाने की बात चली ,रुपये पैसे की बात चली तो एक रोचक संवाद हो गया । उसने एक सुन्दर और लठ्ठ जनता धोती पहन रखी थी । उसका एक सिरा झोली की तरह फैलाकर वो बोला :
“ या म्हारी बीस रिप्या की धोती छै , ईं मैं मैं धोण भर नाज बांध अर ल्या सकूं छूं ।”
अर्थात ये मेरी बीस रुपये की धोती है ,इसमें मैं आधा मण याने बीस सेर अनाज बांध कर ला सकता हूं ।
इसके बाद उसने मेरी पतलून का एक पायचा नींचे से पकड़ कर एक झटका दिया और बोला :
“ या थां की कित्ताक की होली ? याने ये आपकी किस कीमत की है ? “
मैं जवाब में पतलून की लागत बोला । जो कुछ भी मैं जवाब में बोला उसे तो जाने दीजिये , बल्कि मुझे याद भी नहीं कि तब पतलून कितने में बन जाती थी पर इतना याद है कि उसकी धोती की लागत और मेरी पतलून की लागत में जमीन आसमान का अन्तर था , और उसने जो पूछा वो मुझे आज तक याद है :
“ ईं मैं कित्तोक नाज बांध ल्यावोला .......? “
अर्थात : इसमें कितनाक अनाज बांध लावोगे.....?
मुझे इस कारीगर ने निरुत्तर कर दिया था । धोती के प्रति आसक्ति शुरू हो गई थी । धोती के महत्त्व को कारीगर ने बहुत अच्छे से समझा दिया था । वे मेरे जयपुर प्रवास के दिन थे । मैं सारे जयपुर में धोती ही पहन कर घूमता । यह और सब को भी मैंने सुनाया , अनुयायी भी बनाये । उस समय के अध्ययन में विवेकानंद के लेख ' मॉडर्न इण्डिया ' और अरविन्द ( sri Aurobindo ) की कृति फाउंडेशन्स ऑफ़ इन्डियन कल्चर ने भी मेरी इस धारणा को मजबूत किया कि धोती के भारतीय पहनावे का कोई मुकाबला नहीं । बनस्थली लौटा तो भी धोती पहनने की अपनी आदत और प्रतिष्ठा साथ लेकर लौटा । ऊपर जिन कृतियों का उल्लेख आया है उनकी कुछ बात भी बताऊंगा और आज की पोस्ट को जो शीर्षक दिया है उसके साथ न्याय करने का भी प्रयास करूंगा । पर अभी के लिए ये एक भूमिका तो बन ही गई है । सेव करना मुझे आता नहीं इसलिए मैं इसे आपकी नजर के लिए पोस्ट करता हूँ।..........
पिक्चर अभी बाकी है .... यह केवल अंतराल है..........
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ब्लॉग पर प्रकाशित .
जयपुर
रविवार ३ दिसम्बर २०१७ .
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