Tuesday, 28 February 2017

टेस्टीमोनियल : जयपुर डायरी

प्रिय सुमन्त पंड्या के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ - 

  ब्रह्म मुहूरत जाग कर कुछ ये पंड्या लोग। रोज लगाते स्वयं को निज काँफी का भोग।। फिर संदेसे भेजते इधर -उधर सब ओर। जो पल भर में नापते इस पृथ्वी के छोर।।

धन्य धन्य निस्सन्देह ही यह पंड्या परिवार । इनकी किरपा प्राप्त कर हम भी हो गये पार।। ~~~~ जीजाजी * का वाट्सएप से आया सन्देश जिसे पाकर आज मैं नतमस्तक हुआ . सुमन्त पंड्या एवं मंजु पंड्या . ( Manju Pandya. ) @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . मंगलवार 1 मार्च 2016 . ~~~~~ प्रणाम जीजाजी और जीजी Moolchandra Pathak Padma Pathak

#sumantpandya

सर , अब तो मान जाइए ...: बनस्थली डायरी

सर , अब तो मान लीजिए ..... #sumantpandya  #बनस्थलीडायरी
~~~~~~

एक पुराना प्रसंग याद हो आया वही आज कहता हूं .
ये तब की बात है जब मेरा कालेज राजस्थान विश्वविद्यालय  से जुड़ा था और मैं साझे में डिग्री कक्षा को ' मॉडर्न गवर्नमेंट्स ' का पेपर पढ़ाता था . परीक्षा से पहले  कुछ जरूरी सवाल तैयार करने को बता दिए लड़कियों को और ताकीद भी कर दी :

अगर इससे इतर पेपर में सवाल आ जाएं तो मुझे मत कोसना और अगर ऐसा ही पेपर आ जाय तो ये मत समझना कि पेपर मैंने  बनाया है .

पेपर बनाने वाले तंत्र से मेरा तो कुछ लेना देना नहीं था पर पेपर कैसे बनते हैं इतना तो मैं भी समझने लगा था  . एक बारी तो विश्वविद्यालय ने कार्यशाला करके  ' प्रश्नबैंक ' ही बनवा डाला था . ये भी कुछ आगे पीछे उसी जमाने की बात है . खैर ..

पेपर के दिन  परीक्षा समाप्त होने के बखत मैं  कालेज चला गया यह देखने कि  बच्चों ने किला फ़तेह  कर लिया कि नहीं .  लड़कियां प्रसन्नचित्त बाहर आयीं और उनमे से एक तो बड़े आत्म  विशवास से जो बोली वो मुझे आज तक याद है :

" सर , अब तो मान जाइए कि पेपर आपने ही  बनाया था  ? "

अब इस भोले  विश्वास पर मैं भला क्या कहता . मैंने तो  खंडन ही किया और मन में कहा " बावळी , पेपर बनाता तो क्या ऐसे  क्लास में पेपर बताता ? "
पर उसको मेरी आखिरी बात  कुछ जची नहीं थी .
#पेपर

#बनस्थली

सहयोग : Manju Pandya

सुप्रभात

सुमन्त .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
1 मार्च 20015 .

आज इस पोस्ट को पढकर बीते दिनों की याद आ गई .
कितनी बातें याद आने लगती हैं उस बखत की जब पढ़ता था और जब पढ़ाता था .
अब तो लगता है फेसबुक पर ही मेरी क्लास चलती है .

आज का अपडेट
-----------
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी
पुरानी पोस्ट को आज ब्लॉग पर भी जोड़ने का प्रयास किया है . कमेंट बॉक्स में लिंक भी जोड़ूंगा .

@ गुलमोहर कैम्प , जयपुर
१ मार्च २०१७

मार्च २०१७ .

Saturday, 25 February 2017

युवा शक्ति का साथ

कल शाम एक युवा भी बैठे पाए गए वरिष्ठ जन सभा में , सायंकालीन सभा में , उसी समय मैंने छानै छानै तिकड़ी की फ़ोटो ली थी . बाद में तो अरूप भट्टाचार्य ने एक फ़ोटो सेशन भी किया जो यादगार एल्बम बना कल शाम का . रही सही कसर एक और तिकड़ी की फ़ोटो। से पूरी हुई जिसमें हुआ मैं  भी शामिल . रोचक संवाद हुआ इस युवा से जब मैंने पूछा इस युवा से :

" आप कैसे आए इधर , आप तो सीनियर सिटीज़न नहीं हो ? "

बोले  : " अब हो जाऊँगा ."  " जैसे आप आए मैं भी आ गया ,"

मैं एक दिन पहले ब्यूटीशियन के जाकर आया था जो उस झोंक में कह बैठा , " मैं तो ख़ैर अभी जवान हूं ."

और कित्ता सुंदर उत्तर दिया नौजवान ने :

" जैसे आप जवान वैसे मैं भी जवान  !"

बहरहाल लुब्बो लुबाब ये कि आशियाना आँगन की ये सभाएँ लोकप्रिय हो रही हैं और युवा भी जुड़ रहे हैं इससे .

" मे आवर ट्राइब इनक्रीज़ !"

पहली  फ़ोटो में अपण हैं  , दूसरी फ़ोटो में एक युवा भी बैठा दीख रहा है - ये थी फ़ोटो  छानै छानै  पहली फ़ोटो तो अल्टीमेट है ही , उसके तो ख़ैर क्या ही कहने ! .

Tuesday, 21 February 2017

मेरा यार राम निवास -भाग दो :बनस्थली डायरी

बनस्थली डायरी : मेरा यार राम निवास - भाग दो . #बनस्थली  #रामनिवास

ये उस जमाने की बातें हैं जब न तो आज की तरह बोतल बंद पानी का चलन हुआ था और न आज की तरह बनस्थली में कैंटीन संस्कृति का प्रचलन हुआ था . उस जमाने में पानी से श्रेष्ट कोई पेय नहीं था और न था राम निवास जैसा कोई दोस्त . तभी की बात है मैंने अखबार में पहली बार पाउच बंद पानी का विज्ञापन देखा  था जो आने वाले समय में बदलाव का सूचक था .  मेरी तब से यह कह बैठने की आदत है , " आई नैवर से नो फॉर ए ग्लास ऑफ़ वाटर ." मैंने कभी ज्यादा पानी पीकर किसी को जान  गंवाते नहीं देखा , हां पानी की कमी से डी हाइड्रेशन जरूर देखा है . ये तो बहुत बाद की बात है जब मैंने यह भी कहना शुरु कर दिया था कि क्या मैं सतीश अग्रवाल * हूं जो एक  गिलास पानी के लिए  मने करूं .

(* सतीश अग्रवाल जनता पार्टी के नेता थे जिनके सामने सभा में भाषण देते कोई व्यक्ति पानी का गिलास लेकर आया था और उसे परे हटाते हुए वो बोले थे ,' जिसके सर पर लोक नायक जय प्रकाश नारायण का हाथ हो उसे कौन पानी पिला सकता है ?")

मैं तो अपने यार राम निवास के लिए कहूंगा कि उसने अच्छे अच्छों को पानी पिला दिया . कल मेरे बच्चों में से किसी ने रामनिवास का जयकारा लगाया . अब साथ में जय बोलो भगवान् देव नारायण की जो उसके  समुदाय के लोक देवता हैं . देव नारायण मंदिर बनस्थली के परिसर से थोड़ी ही दूरी पर कितना सुरम्य स्थान है , ट्रैक्टर ट्रॉली से जाने कितनी बार उस मंदिर की यात्रा की  होगी . रास्ते भर देबू जी महाराज की जय लोक अभिवादन का कितना सुन्दर तरीका होता है उस यात्रा में . एक बार की बात मैंने राम निवास को गीत प्रेस गोरखपुर की छपी  भगवद्गीता का हिंदी  अनुवाद बांचते देखा , ये उन दिनों की बात है जब इंडियन थॉट के दायरे में इन कृतियों और विभिन्न टीकाओं को मैं भी पढने का प्रयास कर रहा था . लगा राम निवास की आस्था लोक देवता तक ही सीमित नहीं है . मेरे समझ के दायरे में उससे बात भी हुई . लगभग मेरा समवयस्क राम निवास मेरे आगे पीछे ही सेवा प्रभार  से मुक्त हुआ . ऐसे दोस्त सब को मिलें इसी कामना के साथ ,

देबू जी महाराज की जय.  इति. समर्थन : Manju Pandya

सुप्रभात Good morning.

सुमन्त आशियाना आंगन , भिवाड़ी . 10 अप्रेल  2015 .

आज खोजकर ये दूसरी कड़ी प्रकाशित की है  .

@ भिवाड़ी 

२२ फ़रवरी २०१७ .

Sunday, 19 February 2017

संध्या वंदन  🔔🔔। : भिवाड़ी डायरी ✍🏼

संध्या वंदन : भिवाड़ी डायरी आज ब्लॉग लेखन की ट्रेनिंग आगे बढ़ीं अपनी और ये सम्भव हुआ  मिहिर  सुमन के भिवाड़ी आने से  . सुमन्त पंड़्या  @ आशियाना आँगन  , भिवाड़ी . रविवार १९  फ़रवरी  २०१७ . --------------------------

Saturday, 18 February 2017

क्या सीखा मेरे पढ़ाए से : खेंच दिया भाई साब !

क्या सीखा मेरे पढ़ाए से  : "  खेंच दिया भाई साब " #sumantpandya  जयपुर डायरी

एक  सहपाठी दोस्त  पढ़ाई के बाद शोध के काम में लग गए थे  और मैं लग गया था पढ़ाने के काम में . दोस्त के भाई डिग्री कक्षाओं में पढ़ते थे . मेरा विषय भी पढ़ते थे . दोस्त आकर मिलवा गए  और परीक्षा के पहले मेरे सुपुर्द कर गए कि मैं उनको तैयारी करवा दूं . छोटे भाई नियमित रूप से आते , मैं अपना विषय उन्हें पढ़ा देता , आखिर काम भी यही था मेरा . रोज की चर्चा के बाद छोटे भाई कहते , " भाई साब इसका एक जिस्ट भी बनवा दीजिए . " मैं हर दिन के पढ़ाए का जिस्ट भी बनवा देता और अगले दिन के लिए ये पढ़ाई स्थगित हो जाती . डिग्री कक्षा के दोनों साल वो  पढ़ने आए परीक्षा के बाद कभी बताने नहीं आए कि पेपर कैसे हुए  , पर दोस्त से ही पूछा तो पता चला कि मेरा पढ़ाना सफल रहा , छोटे भाई के आशा के अनुरूप अच्छे नंबर भी आए . मुझे भी गर्व हुआ कि मेरा पढ़ाना सफल रहा .साल दर साल यह क्रम चलता रहा .फिर तो बी ए का तीसरा और आखिरी साल पूरा होना ही था .

बी ए फाइनल की परीक्षा के बाद एक दिन ये छोटे भाई रास्ते में मिल गए और मैंने जानना  चाहा  कि पेपर कैसे हुए तो बताने लगे कि  एक पेपर बहुत बढ़िया नहीं हुआ  और पेपर बिगड़ने की  बड़ी ' वाजिब '  वजह भी बता दी उन्होंने : "  सैकिण्ड पेपर  के दिन करीब डेढ़ घण्टा खराब हो गया भाई साब , फ़्लाइंग मेरे कमरे में ही रही , फिर तो मैंने खेंच दिया भाई साब . " अब मुझे ये 

तो समझ में आ गया था कि छोटे भाई जिस्ट बनवा देने को क्यों कहा करते थे , पर ये समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी इस साफगोई पर कुर्बान जाऊं या अपना करम  पीट लूं  ! सहयोग : Manju Pandya

सुप्रभात

सुमन्त

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . 19 फरवरी 2015 .

#flying #khenchdiyabhaisab

#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी।       

Thursday, 16 February 2017

मेरी ही मति मारी गई थी ...:  भिवाड़ी डायरी ✍🏼

  1. मेरी ही मति मारी गई थी 
    ----------------------- जो जाने क्या लेने को ट्रेन से उतर गया , प्लेटफ़ार्म पर इधर उधर नज़र डाली कोई ज़्यादा आमद रफ़्त भी नहीं थी . वैसे आजकल ऐसे सूने प्लेटफ़ार्म होते नहीं हैं पर उस दिन तो तो ये ही हाल था , शायद किसी छोटे स्टेशन का प्लेटफ़ार्म था . ज़रा दूरी पर ही पीने के पानी का नल दीख गया वहाँ जाकर पानी पी लिया हालांकि ये अपने आप से पूछता रहा कि आजकल तो बोतल बंद पानी डब्बे में ही मिल जाया करता है फिर पानी की खोज क्यों की प्लेटफ़ार्म पर जाकर पर आगे जो चक्कर होना था वो ही मुझे लिवा ले गया शायद बाहर .
    लौटने पर फिर एक संकट का सामना करना पड़ा , उतरा कौनसे डिब्बे से था ये न समझ आवे बात और दिमाग़ पर बोझ बढ़ता जावे . यात्रा में साथ कौन कौन थे ये सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डालूँ पर समझ न आवे बात . इतना याद आया कि काला सूटकेस था उसकी खोज में भटकता रहा , एक जगह कुछ रेल यात्रियों ने माना कि यहां रखा था काला सूटकेस पर कोई अन्य यात्री उठा ले गया ऐसा वो बोले . अब ये तय हो गया कि जगह तो मिल गई पर सामान का कुछ अता पता नहीं है , अब आख़िरी उम्मीद बची थी जेब में रखे बटुए से पर उसका भी अंजाम बताता हूं .
    चलती गाड़ी में एक हाथ से ऊपर की बर्थ की ज़ंजीर पकड़ी और पैंट की जेब में दूसरा हाथ डाला तो जेब भी ख़ाली थी . कुछ आइ ड़ी के बतौर कार्ड और डेबिट कार्ड थे उस बटुए में उनके बिना क्या बनेगी बात ये दिक़्क़त दरपेश थी . क़मीज़ की जेब में टिकिट अलबत्ता था पर उसको मैं बाँच नहीं पा रहा था . आधार कार्ड अभी तक बनवाया नहीं था नहीं तो वो भी चला गया होता ऐसे में . अब ऐसे में चलती का नाम गाड़ी , मैं बैठ भी नहीं पा रहा था , झोटे खा रहा था और चले जा रहा था . स्थिति कठिन थी और इस स्थिति से निबटना अब तो बूते से बाहर लग रहा था . पर अब ऐसे में भी कुछ न कुछ तो करना ही है यही संकल्प था मन में .
    ऐसी नौबत पहले कभी आई नहीं नहीं थी कि यात्रा के बीच में ऐसा साधन विहीन और अकेला हो गया होवूं पर उस दिन तो ऐसा ही हो गया , अब क्या तो करो आप ! क्या करो और क्या न करो , झेलो हालात को और क्या .
    पर इसी बीच तक़दीर ने साथ दिया , उधर शायद इंजन ड्राइवर ने ब्रेक लगाया , इधर मेरी गर्दन ने झटका खाया और मैं वर्तमान में लौट आया , भिवाड़ी की ही बात है सब कुछ इंटैक्ट है ये घोड़ा बेच नींद से बाहर आकर समझ आया पर ये झंझावात भी बहुत कुछ सीख दे गया ये आगे कभी बात साफ़ करूंग़ा , आप तो बाँचे जाओ .
    आशियाना आँगन से नमस्कार 🙏
    बज गई घंटी 🔔
    नोट : क़िस्सा ब्लॉग पर भी डालूँगा , आप राय देवें क्या इस लायक है ?
    सुमन्त पंड़्या 
    @ भिवाड़ी 
    शुक्रवार १७ फ़रवरी २०१७.
    #स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी#स्मृतियोंकेचलचित्र मेरी ही मति मारी गई थी ----------------------- जो जाने क्या लेने को ट्रेन से उतर गया , प्लेटफ़ार्म पर इधर उधर नज़र डाली कोई ज़्यादा आमद रफ़्त भी नहीं थी . वैसे आजकल ऐसे सूने प्लेटफ़ार्म होते नहीं हैं पर उस दिन तो तो ये ही हाल था , शायद किसी छोटे स्टेशन का प्लेटफ़ार्म था . ज़रा दूरी पर ही पीने के पानी का नल दीख गया वहाँ जाकर पानी पी लिया हालांकि ये अपने आप से पूछता रहा कि आजकल तो बोतल बंद पानी डब्बे में ही मिल जाया करता है फिर पानी की खोज क्यों की प्लेटफ़ार्म पर जाकर पर आगे जो चक्कर होना था वो ही मुझे लिवा ले गया शायद बाहर .
लौटने पर फिर एक संकट का सामना करना पड़ा , उतरा कौनसे डिब्बे से था ये न समझ आवे बात और दिमाग़ पर बोझ बढ़ता जावे . यात्रा में साथ कौन कौन थे ये सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डालूँ पर समझ न आवे बात . इतना याद आया कि काला सूटकेस था उसकी खोज में भटकता रहा , एक जगह कुछ रेल यात्रियों ने माना कि यहां रखा था काला सूटकेस पर कोई अन्य यात्री उठा ले गया ऐसा वो बोले . अब ये तय हो गया कि जगह तो मिल गई पर सामान का कुछ अता पता नहीं है , अब आख़िरी उम्मीद बची थी जेब में रखे बटुए से पर उसका भी अंजाम बताता हूं . चलती गाड़ी में एक हाथ से ऊपर की बर्थ की ज़ंजीर पकड़ी और पैंट की जेब में दूसरा हाथ डाला तो जेब भी ख़ाली थी . कुछ आइ ड़ी के बतौर कार्ड और डेबिट कार्ड थे उस बटुए में उनके बिना क्या बनेगी बात ये दिक़्क़त दरपेश थी . क़मीज़ की जेब में टिकिट अलबत्ता था पर उसको मैं बाँच नहीं पा रहा था . आधार कार्ड अभी तक बनवाया नहीं था नहीं तो वो भी चला गया होता ऐसे में . अब ऐसे में चलती का नाम गाड़ी , मैं बैठ भी नहीं पा रहा था , झोटे खा रहा था और चले जा रहा था . स्थिति कठिन थी और इस स्थिति से निबटना अब तो बूते से बाहर लग रहा था . पर अब ऐसे में भी कुछ न कुछ तो करना ही है यही संकल्प था मन में . ऐसी नौबत पहले कभी आई नहीं नहीं थी कि यात्रा के बीच में ऐसा साधन विहीन और अकेला हो गया होवूं पर उस दिन तो ऐसा ही हो गया , अब क्या तो करो आप ! क्या करो और क्या न करो , झेलो हालात को और क्या . पर इसी बीच तक़दीर ने साथ दिया , उधर शायद इंजन ड्राइवर ने ब्रेक लगाया , इधर मेरी गर्दन ने झटका खाया और मैं वर्तमान में लौट आया , भिवाड़ी की ही बात है सब कुछ इंटैक्ट है ये घोड़ा बेच नींद से बाहर आकर समझ आया पर ये झंझावात भी बहुत कुछ सीख दे गया ये आगे कभी बात साफ़ करूंग़ा , आप तो बाँचे जाओ . आशियाना आँगन से नमस्कार 🙏 बज गई घंटी 🔔 नोट : क़िस्सा ब्लॉग पर भी डालूँगा , आप राय देवें क्या इस लायक है ? सुमन्त पंड़्या  @ भिवाड़ी  शुक्रवार १७ फ़रवरी २०१७. #स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरीमेरी ही मति मारी गई थी  ----------------------- जो जाने क्या लेने को ट्रेन से उतर गया , प्लेटफ़ार्म पर इधर उधर नज़र डाली कोई ज़्यादा आमद रफ़्त भी नहीं थी . वैसे आजकल ऐसे सूने प्लेटफ़ार्म होते नहीं हैं पर उस दिन तो तो ये ही हाल था , शायद किसी छोटे स्टेशन का प्लेटफ़ार्म था . ज़रा दूरी पर ही पीने के पानी का नल दीख गया वहाँ जाकर पानी पी लिया हालांकि ये अपने आप से पूछता रहा कि आजकल तो बोतल बंद पानी डब्बे में ही मिल जाया करता है फिर पानी की खोज क्यों की प्लेटफ़ार्म पर जाकर पर आगे जो चक्कर होना था वो ही मुझे लिवा ले गया शायद बाहर . लौटने पर फिर एक संकट का सामना करना पड़ा , उतरा कौनसे डिब्बे से था ये न समझ आवे बात और दिमाग़ पर बोझ बढ़ता जावे . यात्रा में साथ कौन कौन थे ये सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डालूँ पर समझ न आवे बात . इतना याद आया कि काला सूटकेस था उसकी खोज में भटकता रहा , एक जगह कुछ रेल यात्रियों ने माना कि यहां रखा था काला सूटकेस पर कोई अन्य यात्री उठा ले गया ऐसा वो बोले . अब ये तय हो गया कि जगह तो मिल गई पर सामान का कुछ अता पता नहीं है , अब आख़िरी उम्मीद बची थी जेब में रखे बटुए से पर उसका भी अंजाम बताता हूं . चलती गाड़ी में एक हाथ से ऊपर की बर्थ की ज़ंजीर पकड़ी और पैंट की जेब में दूसरा हाथ डाला तो जेब भी ख़ाली थी . कुछ आइ ड़ी के बतौर कार्ड और डेबिट कार्ड थे उस बटुए में उनके बिना क्या बनेगी बात ये दिक़्क़त दरपेश थी . क़मीज़ की जेब में टिकिट अलबत्ता था पर उसको मैं बाँच नहीं पा रहा था . आधार कार्ड अभी तक बनवाया नहीं था नहीं तो वो भी चला गया होता ऐसे में . अब ऐसे में चलती का नाम गाड़ी , मैं बैठ भी नहीं पा रहा था , झोटे खा रहा था और चले जा रहा था . स्थिति कठिन थी और इस स्थिति से निबटना अब तो बूते से बाहर लग रहा था . पर अब ऐसे में भी कुछ न कुछ तो करना ही है यही संकल्प था मन में . ऐसी नौबत पहले कभी आई नहीं नहीं थी कि यात्रा के बीच में ऐसा साधन विहीन और अकेला हो गया होवूं पर उस दिन तो ऐसा ही हो गया , अब क्या तो करो आप ! क्या करो और क्या न करो , झेलो हालात को और क्या . पर इसी बीच तक़दीर ने साथ दिया , उधर शायद इंजन ड्राइवर ने ब्रेक लगाया , इधर मेरी गर्दन ने झटका खाया और मैं वर्तमान में लौट आया , भिवाड़ी की ही बात है सब कुछ इंटैक्ट है ये घोड़ा बेच नींद से बाहर आकर समझ आया पर ये झंझावात भी बहुत कुछ सीख दे गया ये आगे कभी बात साफ़ करूंग़ा , आप तो बाँचे जाओ . आशियाना आँगन से नमस्कार 🙏 बज गई घंटी 🔔 नोट : क़िस्सा ब्लॉग पर भी डालूँगा , आप राय देवें क्या इस लायक है ? सुमन्त पंड़्या  @ भिवाड़ी  शुक्रवार १७ फ़रवरी २०१७. #स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी। भिवाड़ी डायरी

मेरी ही मति मारी गई थी ......: भिवाड़ी डायरी .             मेरी ही मति मारी गई थी ----------------------- जो जाने क्या लेने को ट्रेन से उतर गया , प्लेटफ़ार्म पर इधर उधर नज़र डाली कोई ज़्यादा आमद रफ़्त भी नहीं थी . वैसे आजकल ऐसे सूने प्लेटफ़ार्म होते नहीं हैं पर उस दिन तो तो ये ही हाल था , शायद किसी छोटे स्टेशन का प्लेटफ़ार्म था . ज़रा दूरी पर ही पीने के पानी का नल दीख गया वहाँ जाकर पानी पी लिया हालांकि ये अपने आप से पूछता रहा कि आजकल तो बोतल बंद पानी डब्बे में ही मिल जाया करता है फिर पानी की खोज क्यों की प्लेटफ़ार्म पर जाकर पर आगे जो चक्कर होना था वो ही मुझे लिवा ले गया शायद बाहर .लौटने पर फिर एक संकट का सामना करना पड़ा , उतरा कौनसे डिब्बे से था ये न समझ आवे बात और दिमाग़ पर बोझ बढ़ता जावे . यात्रा में साथ कौन कौन थे ये सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डालूँ पर समझ न आवे बात . इतना याद आया कि काला सूटकेस था उसकी खोज में भटकता रहा , एक जगह कुछ रेल यात्रियों ने माना कि यहां रखा था काला सूटकेस पर कोई अन्य यात्री उठा ले गया ऐसा वो बोले . अब ये तय हो गया कि जगह तो मिल गई पर सामान का कुछ अता पता नहीं है , अब आख़िरी उम्मीद बची थी जेब में रखे बटुए से पर उसका भी अंजाम बताता हूं .चलती गाड़ी में एक हाथ से ऊपर की बर्थ की ज़ंजीर पकड़ी और पैंट की जेब में दूसरा हाथ डाला तो जेब भी ख़ाली थी . कुछ आइ ड़ी के बतौर कार्ड और डेबिट कार्ड थे उस बटुए में उनके बिना क्या बनेगी बात ये दिक़्क़त दरपेश थी . क़मीज़ की जेब में टिकिट अलबत्ता था पर उसको मैं बाँच नहीं पा रहा था . आधार कार्ड अभी तक बनवाया नहीं था नहीं तो वो भी चला गया होता ऐसे में . अब ऐसे में चलती का नाम गाड़ी , मैं बैठ भी नहीं पा रहा था , झोटे खा रहा था और चले जा रहा था . स्थिति कठिन थी और इस स्थिति से निबटना अब तो बूते से बाहर लग रहा था . पर अब ऐसे में भी कुछ न कुछ तो करना ही है यही संकल्प था मन में .ऐसी नौबत पहले कभी आई नहीं नहीं थी कि यात्रा के बीच में ऐसा साधन विहीन और अकेला हो गया होवूं पर उस दिन तो ऐसा ही हो गया , अब क्या तो करो आप ! क्या करो और क्या न करो , झेलो हालात को और क्या .पर इसी बीच तक़दीर ने साथ दिया , उधर शायद इंजन ड्राइवर ने ब्रेक लगाया , इधर मेरी गर्दन ने झटका खाया और मैं वर्तमान में लौट आया , भिवाड़ी की ही बात है सब कुछ इंटैक्ट है ये घोड़ा बेच नींद से बाहर आकर समझ आया पर ये झंझावात भी बहुत कुछ सीख दे गया ये आगे कभी बात साफ़ करूंग़ा , आप तो बाँचे जाओ .आशियाना आँगन से नमस्कार 🙏बज गई घंटी 🔔नोट : क़िस्सा ब्लॉग पर भी डालूँगा , आप राय देवें क्या इस लायक है ?सुमन्त पंड़्या @ भिवाड़ी शुक्रवार १७ फ़रवरी २०१७.#स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी

Wednesday, 15 February 2017

 भूली बिसरी याद : दीन दयाल जी 😊

एक भूली बिसरी याद .

  ~~~~~~~~~~~~~ #sumantpandya    एक बहुत पुरानी बात याद आ गई . ये तब की बात है जब मैं राजस्थान विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा पूरी कर बनस्थली में ज्ञान विज्ञान महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र पढ़ाने लगा था . ये वो  जमाना था जब बी वी जी वी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एण्ड साइंस  राजस्थान विश्वविद्यालय का ही एक एफिलिएटेड कॉलेज था . जयपुर मेरा घर था और यहां माता पिता के पास मेरा नियमित आना जाना था . मुझसे पहले से वहां कॉलेज में श्यामनाथ  अर्थशास्त्र के  प्राध्यापक थे जो बी एच यू के पढ़े थे और बनारस से ही आए थे .जल्दी ही वे एक अच्छे दोस्त बन गए . श्यामनाथ अपने एक भतीजे और एक भानजे को भी बनस्थली ले आए थे और उनकी आगे की पढ़ाई का इंतजाम देख रहे थे. भतीजा उदय तो निवाई जाकर लड़कों के स्कूल में पढ़ आता था पर भानजे राजेंदर की आगे की पढ़ाई का सतूना नहीं बैठ रहा था ,वो केवल मैट्रिक पास कर पढ़ाई छोड़ बैठा था और और आगे कुछ साल गंवा भी बैठा था . तब यहां तो प्रांत में तीन साल के डिग्री कोर्स की प्रणाली आ चुकी थी पर अन्यत्र अभी इंटर , बी ए के सोपान कायम थे , शिक्षा और सनद की थोड़ी ठेकेदारी तब यहां भी शुरु हो चुकी थी . बहरहाल राजेंदर को मध्यप्रदेश से इंटर करवाने का सोचा गया और इस बाबत जयपुर से जानकारी हासिल करके लाने का काम श्यामनाथ  ने मुझे सौंपा . मैंने काम ओढ़ लिया .

विवेकानंद कालेज में .

----------------------  अगले जयपुर के फेरे में मैं नाहरगढ़ की सड़क के नुक्कड़ पर चांदपोल बाजार में ऊपर की मंजिल में चलने वाले विवेकानंद कालेज  में जीना चढ़कर चला गया पता करने . जब मैंने प्रायवेट इंटर की परीक्षा का मीजान पूछा तो  संस्थान के संचालक  दीनदयाल जी ने मुझे सीधे सीधे अपना क्लाइंट समझ लिया  और पूरा पैकेज ठीक से समझाया . विषयों के चयन से लेकर परीक्षा में अतिरिक्त सहायता की सब बातें समझाईं और बहुत विश्वास के साथ बोले,” आप को इंटर करा देंगे “ इतने जिम्मेदारी से बोले कि जो उनकी मदद से इंटर करेगा वो आगे एक दिन बी ए की भी सोच लेगा . खैर ये जानकारी अच्छी रही और मैंने जिसके लिए हासिल की थी उसे पहुंचा ही दी पर ये बात दीन दयाल जी को अज्ञात ही रही पूछ कौन रहा है और क्यों , वो जो समझे सो समझे.

अब क्यों याद आया ये प्रसंग ?

~~~~~~~~~~~~~~~~~~ इन दिनों कुछ ‘ भक्त ‘ और कुछ इच्छाधारी ‘ देश भक्त  ‘ मुझे राजनीति शास्त्र का ककहरा सिखाने और सुझाने लगते हैं और तो और मुझे ' देश भक्ति ' के मायने सिखाते हैं तो अनायास ही दीनदयाल जी की याद हो आती है और बड़ा अच्छा तो तब लगता है जब समझदार दोस्त मुझे कहते हैं  : "सर , इन्हें माफ़ कर दीजिए . “

  और इन स्वनियुक्त देशभक्तों को ऐसे कहते हैं :

“ बच्चे घर जाओ !”

वाह रे दीनदयाल खूब ही याद आए !

समीक्षा Manju Pandya

~~~~~~~~ सुप्रभात . सुमन्त पंड्या @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . मंगलवार 16 फरवरी 2016 .

Monday, 13 February 2017

मिली के नहीं ' गर्ल फ्रैंड ' ...? 😊

मिली के नहीं आपकी गर्ल फ्रेंड ?

वैलेंटाइन डे पर विशेष . ~~~~~~~~~~#sumantpandya

ये सवाल पूछा बड़े धीर गंभीर महेंद्र भाई साब ने  जब हम लोग नई दिल्ली के होटल उप्पल में डायनिंग हाल से बाहर आ रहे  थे और  मैं  सवाल का आगा पीछा  न समझ पाने से असमंजस में था कि क्या जवाब दूं . भाई साब थोड़ा ऊंचा सुनते हैं  इसलिए  जुबान से प्रतिप्रश्न करने के  बजाय मैंने ललाट पर सलवट डाले और  जताया कि महेंद्र भाई साब क्या ? पूछ रहे हैं आखिर पता तो चले . वो बोले  : " अभी आप कह रहे थे न कि मेरी गर्ल फ्रैंड के पास  जा रहा हूं ."  तब जाकर समझ  में आई बात  और मैं बोला कि भाई साब मैंने  " गवर्नमेंट " बोला था जिसे आप कुछ और समझ बैठे .

असल में महेंद्र भाई साब और भाभीजी डायनिंग टेबल पर पहले से बैठे थे और मुझे भी उन्होंने साथ आ बैठने का न्योता दिया था  उस वक्त जब मैं ब्रेकफास्ट के लिए अपनी  प्लेट लगा कर टिकाव का स्थान  खोज रहा था  और मैंने कहा था ," उधर गवर्नमेंट आगे गई है मैं उसे खोज रहा हूं ."भाभी जी ने ठीक  सुना  था और भाई साब ने कुछ और सुन लिया था . भाभी जी ने जो ठीक  सुना  था उसकी उन्होंने तस्दीक भी कर  दी .

कौन गवर्नमेंट ?

जब तक अम्मा थी  हम दो भाई अम्मा के लिए ' गवर्नमेंट ' शब्द का प्रयोग कर लिया करते थे  , अम्मा का कहा शासनादेश के समान मानते  जो थे . अम्मा  न रही तो भी हम कोई शासन  विहीन परिवार न रहें , छोटे एकांश में यह पद जीवन संगिनी को मिल गया .इतना स्पष्टीकरण काफी है यह बताने को कि मैं इस उमर में अपने को गवर्नमेंट सर्वेन्ट  क्यों कहा करता हूं

उस दिन बात साफ़ हो जाने के बाद भी दिन में दुबारा मिलने पर महेंद्र भाई  साब  खेद जताते रहे कि  ऊंचा सुनने की वज़ह से वो  मुझे कुछ उलटा कह बैठे और इस पर मेरे बड़े भाई नरेंद्र कहने लगे "  : खेद किस बात का ? ईट्स ए  कॉम्प्लीमेंट , कि इस उमर में वाइफ किसी की गर्ल फ्रेंड हो ! "

मैंने भी इस बात को समर्थन दे दिया और कहा : " आपने जो कुछ कहा था बहुत सही कहा था , मेरी तो गवर्नमेंट ही मेरी गर्ल फ्रेंड है ."

गवर्नमेंट ; Manju Pandya

सुप्रभात

Happy Valentine's Day .

सुमन्त

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर . जयपुर . 14  फरवरी 2015 . #गवर्नमेंट

Sunday, 12 February 2017

मोड़ो चेत्यो : राजस्थानी बोध कथा 💐

   राजस्थानी बोध कथा : मोड़ो चेत्यो !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~    #sumantpandya
एक भोला ग्रामीण किसी महात्मा के सत्संग के बाद उनके संपर्क में आया और अपने मन में जो बात  थी , जो चाह थी वो उनसे कह बैठा . वो सहज भाव से  बोला :

“ म्हाराज मनै कोई मंतर दे द्यो  , जीं को मैं भी जाप करूं अर ठाकुर जी नैं ध्याऊं मनाऊं .”

( “ महाराज मुझे कोई मन्त्र प्रदान कर दीजिए  जिससे मैं भी प्रभु का ध्यान उपासना कर पावूं .”)

महाराज ने उसकी सुनी और बोले :
“  मोड़ो चेत्यो ! “
अर्थात
देर से जागा .

महाराज जो बोले वो तो स्पष्ट ही है पर वो भोला ग्रामीण ये समझा कि महात्मा की कृपा हो गई और उसे मन्त्र मिल गया है .

मन्त्र में बड़ी शक्ति होती है , अगर ये कहने की आवश्यकता हो तो मैं इस बात के समर्थन में सर जॉन वुड्रफ को खड़ा करूंगा . खैर जाने दीजिए अभी आगे चलें .
आगे क्या हुआ ?
~~~~~~~~~~   उस भोले भाले ने तो मन्त्र का जाप आरम्भ कर दिया था , उसका मन्त्र था:
“ मोड़ो चेत्यो !”
आगे के घटना क्रम ने सिद्ध किया कि कालान्तर में  उसे मन्त्र सिद्ध हो गया .
बसंत ऋतु में  महादेव जी और पार्वती जी इस लोक में अच्छे दिन देखने आए , भेस बदल कर  , और इस भक्त को देखकर आपस में बात करने लगे .
पार्वती जी बोलीं  : “ ये किसका ध्यान कर रहा है ? “
महादेव जी और क्या कहते, कह भी क्या सकते थे  , बोले :
“ इससे ही पूछ लेवें देवी . “
पार्वती जी छानै सीक उसके पास जाकर पूछने लगीं  :
“ अरै तू  कुणको ध्यान करै छै .”
( अरे तू किसका ध्यान कर रहा है ? )
और उस भोले का जवाब था :
“ थारै साथ यो बाबो आयो छै न जींको , और कुणको ? “
( अर्थात तेरे साथ ये जो  बाबा आया है न उसका और किसका ? )

मेरे ख़याल से अब मेरी ओर से किसी अतिरिक्त टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है .
~~~~~~~~
सुप्रभात .
सुमन्त पंड्या .
सह अभिवादन : Manju Pandya
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
शनिवार 13 फरवरी 2016 .

Thursday, 9 February 2017

सेवा बाबत : बनस्थलीडायरी 🎎


     सेवा बाबत - वेतन कटोती : बनस्थली डायरी
-----------    ------------  -----------------    बनस्थली में अपने पहले साल की बातें याद करते हुए एक छोटी सी बात याद हो आई जिसका सम्बंध समझ के फेर से है . इसे बताने के लिए संदर्भ का बखाण करना पड़ेगा .
जुलाई उन्नीस सौ सत्तर में मैं तो अपने विभाग में नया नियुक्त होने वाला अकेला ही था पर उधर केमिस्ट्री में कई एक नई नियुक्तियां हुई थीं जिनमें दो सहेलियाँ शकुंतला और सेवा भी थीं . सेवा डाक्टर राम विलास शर्मा की बेटी हुआ करती थी और बेटी की वजह से आचार्य प्रवर भी बनस्थली आए थे उस साल और उनका भाषण सुनने का सौभाग्य हम लोगों को मिला था , ख़ैर ये तो दीगर बात है .
उल्लेखनीय प्रसंग :
------------------ वेतन लेते समय जब जब दोनों सहेलियाँ हिसाब विभाग में अपना हिसाब देखने रोकड़िया के पास पहुँचीं तब की बात है . शकुंतला को पंद्रह रुपए की एक कटोती जब समझ नहीं आई तो उसने पूछा कि ये रुपए किस बात के कटे , रोकड़िया का सीधा जवाब था :

“ ये सेवा के हैं .”

और शकुंतला का इस कटोती पर सख़्त ऐतराज़ था :

“ सेवा के हैं तो सेवा के वेतन से काटते मेरे वेतन से क्यों काट लिए  ? “

पर उधर ऐसी ही कटोती सेवा के वेतन खाते में भी थी इस लिए उसकी भी इसमें कोई बचत नहीं थी , लो हो गया न टंटा !
असल बात क्या थी ?
-------------------   असल में तो “ सेवा” मद में सब रहवासियों से थोड़ा थोड़ा धन लेकर एक रक़म इकठ्ठा की जाती थी जिस से परिसर का रख रखाव का ख़र्च पट जाता था . हम जैसों की पांती में ये पंद्रह रुपए की देनदारी आती थी . वही कटोती सेवा - शकुंतला के वेतन से हुई थी और थोड़ी मेहनत से ये बात रोकड़िया ने समझाई , विशेषकर शकुंतला को .
आगे जाकर तो फिर ये कटोती मद ही समाप्त कर दिया गया था जिससे सेवा शर्मा जैसों का नाम कटोती मद से जुड़े ही नहीं .
ख़ैर ये तो तब की बात है
नोट : जिस कटोती का ऊपर उल्लेख आया है वो कुछ ऐसा ही है जैसे सामूहिक रहवास में “ मेंटेनेन्स “ अमाउंट लिया जाता है .
बनस्थली के पुराने दिनों को याद करते हुए …
प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ….
सुप्रभात 🌻
नमस्कार 🙏

सुमन्त पंड़्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
शुक्रवार १० फ़रवरी २०१७ .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी

Wednesday, 8 February 2017

बातों बातों में : न बखत का पता....(२)

         बातों बातों में  : न बखत का पता , न दूरी का . ( भाग दो )
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#sumantpandya
(2)
बातों में बखत का पता ही नहीं रहता यही है उस चर्चा का दूसरा खंड जो मैंने कल शुरु की थी और जिसमें उल्लेख आया था कि बातों बातों में मामाजी और “ बादशाह “ जीजाजी  वसुंधरा कॉलोनी से चलते चलते सांगानेर जा पहुंचे थे .

उस किस्से में दूरी की ख़ास बात थी और इस किस्से में बखत की ख़ास बात है  जिस किस्से के कथा नायक हैं रमेश भाई और उनके अभिन्न मित्र दीना बाबू .

पात्र परिचय  और देश काल :
~~~~~~~~~~~~~~~~~  ये बात है बहुत पहले की जब हमारे रमेश भाई  जयपुर शहर  के तत्कालीन सबसे बड़े टेलीफोन एक्सचेंज में  सीनियर मॉनिटर हुआ करते थे  और उसी प्रतिष्ठान में  उनके साथी और मित्र हुआ करते थे  दीना बाबू . रमेश भाई का घर वही हमारा नाहर गढ़ रोड वाला बाबा के  जमाने का घर था लाल हाथियों के मंदिर के सामने जिस घर की एक पहचान ये भी थी कि इस घर के चौक में एक बड़ा नीम का पेड़ हुआ करता था . रमेश भाई की विट और मंद  मुस्कान मुझे आज भी बहुत याद आती है . उनकी किस्सागोई की कई एक बातें हैं ,  जो कोई उनसे मिलता था बात करके खुश हो जाता था . पर अभी बात उस ख़ास मौके की  जो आज मेरा बताने का विचार है .

ख़ास बात अभी आज बताने की :
-----------------------------------    रमेश भाई और दीना बाबू दोनों दोस्त  टेलीफोन एक्सचेंज से अपनी ड्यूटी पूरी कर के  अपनी अपनी साइकिलों पर सवार आपस में बतियाते घर की दिशा में चले आ रहे थे . इस तरह वो दोनों  चांदपोल बाजार में नाहर गढ़ की सड़क के नुक्कड़ तक आ पहुंचे  . रमेश भाई को यहां से मुड़ना था और दीना बाबू को आगे जाना था . बीच में छोटी चौपड़ से खरीदी साग सब्जी के थैले भी साइकिलों के हैंडल पर  टके थे .
बिछुड़ने की बेला आ गई तो दोनों दोस्त साइकिलों से उतर गए और खड़े खड़े बातें करने लगे  . बातें पूरी ही नहीं हो रही थीं . एक बात पर उनका ध्यान जरूर गया कि बनबिहारी के घर के नींचे चाय की थड़ी वाला  अपनी थड़ी बंद कर के जाने लगा जिसके पास से आस पड़ोस के दूकानदार चाय मंगवाया करते थे , वो कर गया बंद अपनी थड़ी और चला गया घर इससे इनको क्या फरक पड़ने वाला था . बातें जारी रहीं…….

फिर क्या हुआ ?
~~~~~~~~~ इन दोस्तों की बातों में तल्लीनता तब भंग हुई जब भोर से पहले बड़े सवेरे वो चाय की थड़ी वाला अपनी दूकान खोलने  घर से वापस आ गया क्योंकि सुबह सुबह उजाला होने से पहले उसकी ग्राहकी रिक्शा वालों की वजह से शुरु हो जाया करती थी .
रमेश भाई और दीना बाबू तो मेरी यादों में बसे हैं . किस्से की प्रमाणिकता मैं सत्यापित करता हूं क्योंकि एक जमाने में मैंने उनसे ही ये प्रसंग सुना था  .
आज मिलवाता हूं मैं आप को गोपेश से जिसकी मुस्कान और बात करने का लहजा बहुत कुछ रमेश भाई जैसा है , बेटा है उनका .
~~~~~~~
पुराने दिनों को याद करते हुए .
सुप्रभात
सुमन्त पंड्या
समीक्षा और हस्तक्षेप : Manju Pandya
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
   मंगलवार 9 फरवरी 2016 .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी

हवा महलां सैं पगां पगां 🚮


      हवा महलां सैं  पगां पगां  :
#sumantpandya

कल की मेरी पोस्ट में  रोहित  का जिक्र आया है  जो आज  की तारीख में नामी और सिद्धहस्त  डाक्टर सर्जन है , आज उसी की बताई एक बात कहता हूं . ये तब की बात है जब   बाबू याने रोहित  सवाई मान सिंह अस्पताल में इंटर्न था और मेडिकल कालेज में  पोस्ट ग्रेजुएट पढ़ाई पढ़ रहा था . मांगीलाल कारीगर  की मां बीमार हो गई थी  और उसे दिखाने और चिकित्सा करवाने के लिए उसने बाबू से मदद मांगी थी .

मांगीलाल कारीगर का हम लोगों , पंड्या  परिवार , के घरों में आना जाना था और समय समय पर तामीर के काम के लिए उसे  बुलाते ही रहते थे . उसका भाई कन्हैया बेटा ढोलू  हमारे शहर वाले घर को रहने लायक बनाए रखने में हमेशा मददगार रहे . बाबूजी के बंगले पर भी इन लोगों ने बहुत दिनों काम किया .  यह भी बताता चलूं कि  ढोलू  अब दौलतराम कारीगर के रूप में बड़ा ठेकेदार   बन गया है , बापू नगर वाले हमारे मकान का पहले बना भाग उसी ने बनाया है  . खैर ये तो मैंने पारिवारिक संबंधों की  प्रगाढ़ता बताई , अब आता हूं उस बात पर जिसके लिए  आज चर्चा छेड़ी .

बीमार डोकरी ( वृद्धा) को लेकर मांगी लाल कारीगर सवाई मान सिंह अस्पताल पहुंचा जो उसे  जयपुर  शहर के उत्तर पूर्व में आमेर के भी आगे अपने गांव ढाणी से लेकर आया था  और बाबू साथ था उसे  इमरजेंसी में दिखाने के लिए .  ड्यूटी डाक्टर ने देखा  , ई सी जी हुआ , निदान हुआ , ये निश्चित हो गया  कि दिल  का दौरा पड़ा है  . डोकरी को तुरंत स्ट्रेचर पर लिटा दिया गया  और ऊपर की मंजिल में ले  जाने के लिए   लिफ्ट के पास ले आया गया . होनहार की बात  कि किसी तकनीकी गड़बड़ या बिजली बंद होने से लिफ्ट वहीँ अटक गई और ऊपर नहीं बढ़ी .  कारीगर को जो सूझा उसने वही किया इस परिस्थिति में   , आ जा री मां चालां  " कहकर उसने  मां  को स्ट्रेचर  से उठाया  , नहीं माना , सीढ़ियों से पैदल  ऊपर ले गया हालांकि बाबू ने मना भी किया पर मांगी लाल कारीगर  बोला  :"  जद हवा   महलां सैं ही पगां पगां आगी जद इं   मैं कांई बात छै . " (  जब हवा महल से यहां तक पैदल आ गई तो इसमे भला क्या बात है ? )    और कारीगर अपनी मां को पैदल ही ले गया , कोई  अनहोनी नहीं हुई .

डिस्क्लेमर - खबरदार !  कोई मेरी पोस्ट से ये न समझ ले कि ऐसे दिल के मरीज को पैदल चलाना चाहिए  , तो फिर निष्कर्ष क्या निकाला  ?

निष्कर्ष :  बीमारी से ज्यादा बड़ा होता है बीमारी के नाम से उपजा भय , इसी सन्दर्भ में रोहित ने यह बात मुझे बताई थी .
आज के लिए  बात को विराम दूं . इति प्रातःकालीन सभा .

कथा के सन्दर्भ के लिए : DrRohit Pandya
वैचारिक  सहमति : Manju Pandya

सुप्रभात .

सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
9 फरवरी  2015 .
#हवामहलांसैंपगांपगां

Tuesday, 7 February 2017

" इश्टोरी विश्टोरी " : भिवाड़ी डायरी 📙

   इश्टोरी विश्टोरी : भिवाड़ी डायरी 📙
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“ आप  इश्टोरी विश्टोरी करते हैं न तो इहे लीजिए  , इस पर इश्टोरी बनाइए कुछ . “
बड़ा अच्छा लगा मुझे जब एक बुजुर्गवार ने किसी एक अखबार की कटिंग देकर मुझे किसी स्टोरी का प्लॉट सुझाया , उस बख़त हम लोग प्रातःकालीन आत्मीय जन सभा से उठकर घर की तरफ आ रहे थे और ये दो बुजुर्ग साथी साथ साथ आ रहे थे . आशियाना क्लब तक आते आते कुछ ऐसा हुआ कि वो स्टोरी का मिला मिलाया प्लॉट मुझ से छिन गया आज वो इत्ती सी बात ही बताता हूं और उससे ही कुछ अनुभव प्रस्फुटित हुआ वो यहां  दर्ज करता हूं .

क्या था कटिंग में  ?
------------------ 😁 जित्ता सा मैंने देखा उस अखबार की कटिंग में कोई दो सिने कलाकार लड़का - लड़की की तस्वीर थी और उसके साथ कुछ गाँसिप लिखी थी , जैसा कि सिने कलाकारों  के मामले में होता ही है . कभी कभी तो ऐसी गॉसिप जान बूझ कर भी फैलाई जाती है .

मुझे तो एक बारगी ये अच्छा लगा कि बुजुर्गवार ने मुझे इस लायक समझा कि जो “ इश्टोरी “ अखबार में छपी हुई ही है  उसमें ही कुछ हीरा मोती लगाकर मैं नई  इश्टोरी बना सकता हूं . और आगे उनके मन में क्या था वो तो वो ही जाणे जो कटिंग दे रहे थे .
बुजुर्गवार ने मुझे कहानीकार समझा ये भी चलो ख़ुशी की बात क्योंकि अभी कहानीकार बनने की राह पर मैं बहुत कच्चा धावक हूं .

मेरी ही मति मारी गई थी
-------------------------    जो मैंने वो गहक कर झेला नहीं जो वो दे रहे थे और ऐसे कह दिया :
“ कल ये अखबार की कटिंग साथ लेते आइयेगा , इस पर कल सभा में विचार कर लेंगे और देखते हैं क्या “  इश्टोरी “  बण सकती है . उधर डागा साब ने वो कटिंग मांग कर अपने पास ये कहकर रख ली कि वो लेते आएंगे अगले दिन . इसके बाद जो हुआ वो अपत्याशित था .

बुजुर्गवार ने क्या किया   ?
“ लाइए हमें वापिस दीजिए , उहू हमने इन्हें दिया था , आपको नहीं !”

ऐसा कहकर उन्होंने  वो अखबार का टुकड़ा वापस लिया , उसके टुकड़े टुकड़े किए और उसे फेंक दिया और थोडा खिन्न होकर  चले गए अपनी राह पर .
कुल निष्कर्ष :  लुब्बो लुबाब . 👏
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१.    गुस्सा नाक पे कोई कोई बुजुर्ग के भी  रहता है .
२.    अपना कहानीकार बनने का योग अभी दूर है ,   देखो तो सही कहानी का मिला मिलाया प्लॉट अपण से छिन गया .
३.  ले दे कर ये एक किस्सा बण पाया जो आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूं .
४. आगे के लिए ये व्रत लेता हूं कि जो कोई  इश्टोरी विश्टोरी का प्लॉट मिला तो झिझकूंगा नहीं , तत्काल हस्तामलकवत् ।
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सुप्रभात 🌕
नमस्कार ✋
सुमन्त पंड्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
   बुधवार ८ फरवरी २०१७ .

बातों बातों में : न बखत का पता , न दूरी का . 😊


    बातों  बातों में  : न बखत का पता , न दूरी का .
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ #sumantpandya
(1)
ये तब की बात है जब वसुंधरा कॉलोनी में बसावट शूरु हो रही थी . ये ही कोई  सत्तर या अस्सी के दशक की शरुआत की ही बात होगी . रघुबर भाई ने बड़ा सुन्दर नया मकान बनाया था  . बड़े मामाजी स्टेशन वाले और मामी तो पदेन वहां थे ही छुट्टनलाल जीजाजी भी वहां आए हुए थे  . सुबह का बखत था  बड़े मामाजी और छुट्टनलाल जीजाजी दोनों में आपसी सलाह हुई ,” आओ डोली आयीं ,” अर्थात चलो घूम आएं .  दोनों ही वय प्राप्त सीनियर सिटीजन  दक्षिण दिशा में टोंक रोड पर घूमने को निकल पड़े . मामाजी का वही लिबास याद आ जाता है , नींचे एक अंगोछा , उरेप का जेब वाला बनियान और कंधे पर एक लाल गमछा , इससे मिलता जुलता ही लिबास छुट्टन लाल जीजाजी का . पैरों में पगरखी याने देशी जूती .
दोनों बात करते करते चलते  रहे , बातें चलती रहीं और घर से दूरी बढ़ती रही . बातों बातों में दोनों में से किसी एक को भी ये ख़याल नहीं था कि घर लौटकर भी जाना है और उसके लिए अपनी सामर्थ्य  बचाकर भी  रखनी है .

अब कब हुआ उनका ध्यान भंग ?
----------------------------------  ध्यान भंग हुआ तब जब एक बड़ा चौराहा और बस्ती आ गई , ट्राफिक बढ़ा हुआ लगा . जब उन्होंने बातें रोक कर आजू बाजू देखा .
वो दोनों तो सांगानेर पहुंच गए थे . अब न तो उन्हें हवाई अड्डे से काम था न ही सांगानेर टाउन से , उन्हें तो जाना था लौटकर वसुंधरा कालोनी . अब लगा कि वापिस पैदल तो इतनी दूरी तय करना मुश्किल होगा  और किया दूसरा ही उपाय . सांगानेर जयपुर के बीच सिटी बस तब भी चला करती थी जिसका लाल रंग हुआ करता था .
आखिरकार बस पकड़कर घर आए .
ये सब लोग इतिहास बन गए पर मेरी तो यादों में बसे हैं .

(क्रमशः )
सुप्रभात .
मेरी लेखन प्रेरणा : Manju Pandya
सुमन्त पंड्या .
@ गुलमोहर , जयपुर .
सोमवार , 8 फरवरी 2016 .

Sunday, 5 February 2017

क्या सीखा स्कूल में ?

क्या सीखा स्कूल में  ...?

ये तब की बात है  जब पड़ोस के स्कूल में बेटे को दूसरे दर्जे में दाखिला दिलवाया था  । बच्चे तब भी पेन्सिल से लिखा करते थे  । बेटे को घर से पेन्सिल , इरेजर आदि सामान बस्ते में रखकर भेजते  । पेन्सिल स्कूल में खो जाती । मैं समझाता " बेटा , ध्यान से अपनी चीजें रखकर लाया कर ।"  उसका भोला जवाब होता :" नहीं मिली पापा ।" अगले दिन दूसरी नई पेन्सिल  देकर भेजते , नतीजा वही ,  वो भी खो जाती  । कैमलिन की एच बी  पेन्सिल छह रुपये की एक दर्जन आया करती थी । रोज पेन्सिल खो जाने का  ये सिलसिला  कुछ ऐसा चला कि एक दर्जन भर पेन्सिल  जल्दी ही बीत गई और जीवन संगिनी ने मुझे नया पैकेट लाकर रखने को कहा । मैंने  कहा  :" वो तो मैं लाकर रखूँगा ही  पर एक बार स्कूल में भी बात कर  के आता हूं ।"  मैंने प्रिंसीपल  साहबा से मिलना  मुनासिब समझा  ताकि वे क्लास टीचर से मिलकर  या कहकर कोई उपाय करें  ताकि क्लास से चीजें पार होना बंद हों ।

सरोज माला माथुर , हां यही नाम था उनका भली महिला थीं  प्रिंसिपल साहबा , उन्होंने मेरी बात अच्छे से सुनी  और चलते चलाते  ये टिप्पणी  भी कर दी ,
,"  आपका बच्चा भी थोड़ा लापरवाह  है । "
अब हम  तो उस जमाने के लोग हैं जो अपने बच्चे  को ' अपना ' नहीं कहते  'आपका ' कहते हैं  । पर यहां तो लापरवाही के अवगुण  की बात थी सो मेरा ही हुआ । अच्छा है तो आपका है और लापरवाह है तो मेरा ही हुआ , और वो बात तो  तब की क्या आज भी सही है । है तो है !

पर मैंने तब एक बात कही थी जो आज तक याद है  :
"  मेरा तो लापरवाह ही ठीक है , इसका चीजें खो देना मैं गवारा कर लूंगा , मुझे तकलीफ तो उस दिन होगी जब  ये दूसरे बच्चों की चीजें उठाकर लाएगा । आखिर बच्चे स्कूल में क्या सीखते हैं  । "

सहयोग : Manju Pandya

सुप्रभात .

सुमन्त
गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .
6 फरवरी 2015 .
#लापरवाह