सी डी के विशेषज्ञ 💐
बनस्थली की वह शाम रवीन्द्र निवास में ..........
बनस्थली में वह परिवर्तन का दौर था । विभागों का विस्तार हो रहा था । इसी विस्तार के तहत होम सायन्स में पहला एम एस सी कोर्स शुरू हुआ था । पेड़ के नीचे से स्टाफ रूम उस कक्ष में आ गया था जो कभी प्रिंसिपल का कक्ष हुआ करता था । होम सायन्स में कभी बी एस सी तक की ही पढ़ाई होती थी , अब आगे की पढ़ाई होने को थी । सुधा नारायणन सन्यास लेकर चली गयी थीं और नई नई प्राध्यापिकाएं आ गयी थीं । एम एस सी की पढ़ाई के लिए अधिक स्टाफ जो चाहिए था । मेरा विभाग बहुत पहले से था । ब्रदर डॉक्टर शिव बिहारी माथुर हमारे सिरमौर थे , मैं उनके वहां पहुंचने से पांच वर्ष बाद इस विभाग , राजनीति शास्त्र , से जुड़ा था । अरुणा वत्स और पांच वर्ष बाद इस विभाग से जुड़ी थीं । बहरहाल जो बात हमें जोड़ने वाली थी वह ये कि हम तीनों एक ही जगह के प्रोडक्ट थे , राजस्थान विश्वविद्यालय राजनीतिशास्त्र विभाग । दो विभागों का काम चलाऊ परिचय हो गया , अब आगे की बात :
दोपहर का समय मैं स्टाफ रूम में बैठा था और सामने होम सायन्स की एक टीचर बैठी थी जिसने बमुश्किल पढाना शुरु किया होगा यह अवस्था देखकर लगता था । युवती से परिचय हुआ , उसने अपना सुन्दर सा नाम भी बताया जिसे मैं यहां दोहराऊंगा नहीं । थोड़ी सी देर बातचीत हुयी , कक्षा का समय हो गया दोनों अपने अपने गन्तव्य को चले गए । जो थोड़ी सी बात हुई वो इस प्रकार -------
~ आपका स्पेशलाइजेशन क्या है ?
* सी . डी .
~ मायने बताइये ?
* चाइल्ड डेवलपमेंट ( बाल विकास ).
~ साइंस सब्जेक्ट है तो इसमे प्रैक्टीकल भी करवाते होंगे ?
* जी हां वो भी होता है ।
~ तब अब आप मुझे जरा सा ये बताइये कि सी डी की विशेषज्ञ आप हैं या मैं हूं ?
विभाग में किसी का भी लगन नहीं हुआ , बच्चे बड़े करने का कोई अनुभव नहीं और आप लोग सी डी के विशेषज्ञ कहलाते हैं । मैंने दो बड़े कर दिए , खड़े कर दिए सो कोई बात ही नहीं .... स्पेशलिस्ट तो आप हैं । मैं समझा बात हो गयी , पर ये तो इंटरेक्शन की शुरुआत थी ये बात आगे तक गई जो मैं अगली बैठक में जोड़ूंगा..........
शुभ प्रभात
good morning .
दूसरी पारी :
जो बात स्टाफ रूम में हुई थी वह वहां खतम नहीं हुई , बात दूसरे विभाग से होते हुए कार्यशील महिला आवास तक चली गई और उसका जो परिणाम निकला :
उसके लिए मेरी तैयारी बहुत कमजोर थी जो आगे मैं बताने जा ही रहा हूं । हमारे विभाग , राजनीतिशास्त्र , में साधना अस्थाई नियुक्ति पर काम कर रही थी और कार्यशील महिला आवास में ही रह रही थी । साधना जो कि दयालबाग , आगरा से आई थी उसका अन्य विभागों की शिक्षिकाओं से सह आवास के कारण संपर्क था और विभाग में हम लोगों से तो खैर संपर्क था ही । साधना के माध्यम से सूचना आई कि कार्यशील महिला आवास में रहने वाली छह प्राध्यापिकाएं मुझसे मेरे घर आकर मिलना चाहती हैं । मेरे लिए अजीब संकट न समय दूं तो घमंडी कहलावूं और समय दूं तो झेलूं कैसे ? हालात ने मुझे अकेला रख छोड़ा था । जीवन संगिनी का साथ हो तो मैं बरात झेल लूं , और आगे ऎसा हुआ भी पर उस दिन , या यों कहें कि उन दिनों तो घर की हालत ये थी कि एक कमरा तो मय कुर्सियों के बन्द पड़ा था उसमे धूल भरी थी । सारा जरूरत का सामान मय किताबों कागजों के मेरे बिस्तर के इर्द गिर्द आ गया था । आगंतुकों के लिए बहुत जगह नहीं थी । खैर अब समय तो देना ही था , हालांकि ये भी लग रहा था कि एक को चुनौती दी , जवाब देने को छह आ रही हैं । मैंने साधना के ही जरिए समय दे दिया । हारे के हरिनाम विभाग में उन दोनों से मदद मांगी जिनका ऊपर ज़िक्र किया है । ब्रदर ने कहा , तुमको उस होम सायन्स वाली से अटकने की क्या जरूरत थी ?
ब्रदर अब तो हो गया , आप शाम को आ जाना और सभा की अध्यक्षता करना , मैं बोला । खैर वो आये थे और स्थिति को सम्हाला शाम को ।
अरुणा जी को भी कहा , वे हमेशा की तरह मेरे दुःख सुख में साथी थीं और उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि उनका पूरा सहयोग मुझे मिलेगा । तत्काल मैं 44 नम्बर को बैठने लायक बनाने में जुट गया । जब शाम आई और मेहमान आये तब तक मैं गुजराती ढोकला बना चुका था और अरुणा जी मसाले दार मूंगफली तैयार कर लायीं थीं जो वो हमेशा बहुत बढिया बनाती थीं । हम लोगों ने उन सब का ख़ुशी से स्वागत किया , जब कॉफी बनाने की बारी आई तो इन मेहमानो ने हम तीनो को न उठने दिया । हालांकि ब्रदर ने आदतन यह भी कहा : मेहमां जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है । पर साब अब तो मेरी रसोई उनके हवाले थी । बहुत बढ़िया कॉफी उनलोगों ने बनाकर पिलाई ।
मुख्या बात तो छूट ही गई उन लोगों के आने से बाल मनो विज्ञान और बाल व्यवहार पर लंबी चर्चा हुई । शास्त्र सम्मत बातें हमें भी जानने को मिलीं , जीवन अनुभव की बातें मैंने भी कहीं । लंबी बैठक तब तक चली जब तक कार्यशील महिला आवास के दरवाजे रात भर के लिए बंद हो जाने का समय नजदीक न आ गया जब मेहमान चले गए तो ब्रदर बोले : देखो सब की सब ऐसे तैयार होकर आईं थीं जैसे किसी पार्टी में आई हों !
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #sumantpandyaसी डी के विशेषज्ञ 💐
बनस्थली की वह शाम रवीन्द्र निवास में ..........
बनस्थली में वह परिवर्तन का दौर था । विभागों का विस्तार हो रहा था । इसी विस्तार के तहत होम सायन्स में पहला एम एस सी कोर्स शुरू हुआ था । पेड़ के नीचे से स्टाफ रूम उस कक्ष में आ गया था जो कभी प्रिंसिपल का कक्ष हुआ करता था । होम सायन्स में कभी बी एस सी तक की ही पढ़ाई होती थी , अब आगे की पढ़ाई होने को थी । सुधा नारायणन सन्यास लेकर चली गयी थीं और नई नई प्राध्यापिकाएं आ गयी थीं । एम एस सी की पढ़ाई के लिए अधिक स्टाफ जो चाहिए था । मेरा विभाग बहुत पहले से था । ब्रदर डॉक्टर शिव बिहारी माथुर हमारे सिरमौर थे , मैं उनके वहां पहुंचने से पांच वर्ष बाद इस विभाग , राजनीति शास्त्र , से जुड़ा था । अरुणा वत्स और पांच वर्ष बाद इस विभाग से जुड़ी थीं । बहरहाल जो बात हमें जोड़ने वाली थी वह ये कि हम तीनों एक ही जगह के प्रोडक्ट थे , राजस्थान विश्वविद्यालय राजनीतिशास्त्र विभाग । दो विभागों का काम चलाऊ परिचय हो गया , अब आगे की बात :
दोपहर का समय मैं स्टाफ रूम में बैठा था और सामने होम सायन्स की एक टीचर बैठी थी जिसने बमुश्किल पढाना शुरु किया होगा यह अवस्था देखकर लगता था । युवती से परिचय हुआ , उसने अपना सुन्दर सा नाम भी बताया जिसे मैं यहां दोहराऊंगा नहीं । थोड़ी सी देर बातचीत हुयी , कक्षा का समय हो गया दोनों अपने अपने गन्तव्य को चले गए । जो थोड़ी सी बात हुई वो इस प्रकार -------
~ आपका स्पेशलाइजेशन क्या है ?
* सी . डी .
~ मायने बताइये ?
* चाइल्ड डेवलपमेंट ( बाल विकास ).
~ साइंस सब्जेक्ट है तो इसमे प्रैक्टीकल भी करवाते होंगे ?
* जी हां वो भी होता है ।
~ तब अब आप मुझे जरा सा ये बताइये कि सी डी की विशेषज्ञ आप हैं या मैं हूं ?
विभाग में किसी का भी लगन नहीं हुआ , बच्चे बड़े करने का कोई अनुभव नहीं और आप लोग सी डी के विशेषज्ञ कहलाते हैं । मैंने दो बड़े कर दिए , खड़े कर दिए सो कोई बात ही नहीं .... स्पेशलिस्ट तो आप हैं । मैं समझा बात हो गयी , पर ये तो इंटरेक्शन की शुरुआत थी ये बात आगे तक गई जो मैं अगली बैठक में जोड़ूंगा..........
शुभ प्रभात
good morning .
दूसरी पारी :
जो बात स्टाफ रूम में हुई थी वह वहां खतम नहीं हुई , बात दूसरे विभाग से होते हुए कार्यशील महिला आवास तक चली गई और उसका जो परिणाम निकला :
उसके लिए मेरी तैयारी बहुत कमजोर थी जो आगे मैं बताने जा ही रहा हूं । हमारे विभाग , राजनीतिशास्त्र , में साधना अस्थाई नियुक्ति पर काम कर रही थी और कार्यशील महिला आवास में ही रह रही थी । साधना जो कि दयालबाग , आगरा से आई थी उसका अन्य विभागों की शिक्षिकाओं से सह आवास के कारण संपर्क था और विभाग में हम लोगों से तो खैर संपर्क था ही । साधना के माध्यम से सूचना आई कि कार्यशील महिला आवास में रहने वाली छह प्राध्यापिकाएं मुझसे मेरे घर आकर मिलना चाहती हैं । मेरे लिए अजीब संकट न समय दूं तो घमंडी कहलावूं और समय दूं तो झेलूं कैसे ? हालात ने मुझे अकेला रख छोड़ा था । जीवन संगिनी का साथ हो तो मैं बरात झेल लूं , और आगे ऎसा हुआ भी पर उस दिन , या यों कहें कि उन दिनों तो घर की हालत ये थी कि एक कमरा तो मय कुर्सियों के बन्द पड़ा था उसमे धूल भरी थी । सारा जरूरत का सामान मय किताबों कागजों के मेरे बिस्तर के इर्द गिर्द आ गया था । आगंतुकों के लिए बहुत जगह नहीं थी । खैर अब समय तो देना ही था , हालांकि ये भी लग रहा था कि एक को चुनौती दी , जवाब देने को छह आ रही हैं । मैंने साधना के ही जरिए समय दे दिया । हारे के हरिनाम विभाग में उन दोनों से मदद मांगी जिनका ऊपर ज़िक्र किया है । ब्रदर ने कहा , तुमको उस होम सायन्स वाली से अटकने की क्या जरूरत थी ?
ब्रदर अब तो हो गया , आप शाम को आ जाना और सभा की अध्यक्षता करना , मैं बोला । खैर वो आये थे और स्थिति को सम्हाला शाम को ।
अरुणा जी को भी कहा , वे हमेशा की तरह मेरे दुःख सुख में साथी थीं और उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि उनका पूरा सहयोग मुझे मिलेगा । तत्काल मैं 44 नम्बर को बैठने लायक बनाने में जुट गया । जब शाम आई और मेहमान आये तब तक मैं गुजराती ढोकला बना चुका था और अरुणा जी मसाले दार मूंगफली तैयार कर लायीं थीं जो वो हमेशा बहुत बढिया बनाती थीं । हम लोगों ने उन सब का ख़ुशी से स्वागत किया , जब कॉफी बनाने की बारी आई तो इन मेहमानो ने हम तीनो को न उठने दिया । हालांकि ब्रदर ने आदतन यह भी कहा : मेहमां जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है । पर साब अब तो मेरी रसोई उनके हवाले थी । बहुत बढ़िया कॉफी उनलोगों ने बनाकर पिलाई ।
मुख्या बात तो छूट ही गई उन लोगों के आने से बाल मनो विज्ञान और बाल व्यवहार पर लंबी चर्चा हुई । शास्त्र सम्मत बातें हमें भी जानने को मिलीं , जीवन अनुभव की बातें मैंने भी कहीं । लंबी बैठक तब तक चली जब तक कार्यशील महिला आवास के दरवाजे रात भर के लिए बंद हो जाने का समय नजदीक न आ गया जब मेहमान चले गए तो ब्रदर बोले : देखो सब की सब ऐसे तैयार होकर आईं थीं जैसे किसी पार्टी में आई हों !
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