लेफ्ट हैंड़र : भाग दो .
कल इस प्रसंग पर पोस्ट बनाते हुए मैंने चर्चा की शुरुआत की थी . जितनी अपने लोगों की टिप्पणियां आईं पढ़कर अच्छा लगा कि होते हैं बहुत लोग लेफ्ट हैण्डर भी और राइट हैण्डर होकर भी कई लोग उनकी हिमायत करते हैं , खुद राइट हैण्डर होते हुए भी लैफ्ट हैंडर के लिए बोलते हैं दुनियांदार . कल मुझे लगा कि अल्पमत के लिए भी जगह है इस दुनिया में , इस जमाने में . हम भी हैं इसी जमाने में . कल तो ऐसा भी हुआ कि लोगों को एक दूसरे के बारे में ये एक नई बात पता चली ,वैसे आपस में जानते तो थे , ये नहीं जानते थे जो कल पता चला .
अब आज जितना संभव हो जाय कुछ एक छोटी छोटी बातें , कुछ अपनी और कुछ आपकी जो कि आप कहेंगे ही जब बात चलेगी .
बनस्थली : महिंद्रा प्रज्ञा में .
- महिंद्रा प्रज्ञा मंदिर नाम से हाई टेक नई इमारत तैयार होने के बाद उसमें काम शुरू होने से पहले कुछ हवन पूजन की तैयारी थी . मंहगी इमारत थी तो पूजन करवाने के लिए शहर से मंहगे मोल वाले पंडित जी भी बुलाए गए थे , रेशमी कुर्ता - दुपट्टा पहने कई एक अंगूठियां अँगुलियों में पहने सक्रिय थे पंडित जी .
सारे इंतजाम में लॉजिस्टिक सपोर्ट का काम था परिसर के स्थानीय पंडित मुंशी लादू राम जी का . एक तो विशिष्ट जोड़ा और अन्य लोग हवन करने जा रहे थे . मैं भी चूंकि वहां उपस्थित था तो एक हवन कर्ता मैं भी बनाया जा सकता था .
मैं अपनी कहूं , अपनी सीमाओं को जानते हुए मैं ऐसी गतिविधियों में आगे बढ़कर भागीदार नहीं हुआ करता . मैं परंपरा और आधुनिकता दोनों ही का आदर करता हूं और मत मतान्तरों में उलझने से हमेशा ही बचता हूं .
वही ग़ालिब के शब्दों में सनातन द्वंद्व :
" ईमां मुझे रोके है , खींचे है मुझे कुफ़्र ,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे ."
उस दिन की बात :
-- न जाने क्या कुछ हुआ कि उस दिन मुझे भी हवन में बैठना ही पड़ा . सिलसिलेवार कहूं तो शकल सूरत ठीक और अवस्था देखकर मुख्य पंडित जी ने मुझे संकेत दिया कि मैं भी हवन सामग्री का एक अंश लेकर पास बैठ जाऊं . मुंशी लादू राम जी तो मुझे बैठाना चाहें ही उनके साथ मेरे आत्मीय सम्बन्ध थे . मैंने अपने सीने पर हाथ रखा और मना के संकेत के लिए हाथ हिलाया पर दोनों ही पंडित न माने और मैं भी टीम में सम्मिलित कर लिया गया .
फिर क्या हुआ ?
हवन प्रक्रिया के दौरान ज्यों ही मंत्रोच्चार के बाद पंडित द्वय बोलें ," स्वाहा " सब अग्नि की ऒर अपना हाथ बढ़ाएं सीधा और मैं हाथ बढ़ाऊं उल्टा .
पंडित जी ने सीधा हाथ काम में लेने की सलाह दी जो उन्हें देनी थी और मेरी स्थिति ये कि या तो हवन स्थल से ही उठ जाऊं और न तो उल्टा हाथ ही काम में लेवूं और गतिविधि में भागीदार रहूं .
इसी में मैं अल्प मत की भागीदारी देखता हूं , ऐसे ही समय परंपरा में संशोधन की आवश्यकता होती है ....
बात आगे चलेगी अभी बहुत बातें हैं बताने को ...
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
समीक्षा : Manju Pandya.
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
21 जुलाई 2015 .
ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण :
जयपुर २१- ०७-- २०१८.
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