Tuesday, 24 July 2018

इमर्जेंसी : बनस्थली डायरी .

इमरजेंसी

  - इमर्जेंसी की बातें फिर याद आने लगी पिछले महीने . क्यों याद आने लगी उसे तो जाने दीजिए , आप बेहतर जानते हैं मुझे आज के हालात के बारे में अभी हाल कुछ नहीं कहना . मैं तो तब की थोड़ी सी बात याद आ गई और लगा कि इसे दर्ज भी कर दिया जाए तो कोई हर्ज नहीं , वही करने लगा हूं .


तब जब उन्नीस सौ पिचहत्तर - सतत्तर में इमरजेंसी का दौर था अखबार और रेडियो और बहुत कीजिए तो टेलीग्राम टेलीफोन ये ही तो संचार के साधन थे , इनका भी फैलाव आज जैसा कहां था . फिर भी बात फैलती तो थी . 


एक बात मैं अवश्य रेखांकित करूंगा उस जमाने की कि लोग आकाशवाणी के समाचारों की बनिस्पत बी बी सी के समाचारों और रेडियो प्रसारणों पर ज्यादा भरोसा करने लगे थे . ये कोई अच्छी बात तो नहीं कही जा सकती लेकिन हालात ही कुछ ऐसे थे और उन्हें हमारे ही शासन ने उत्पन्न किया था .


एक निजी अनुभव :

           एक दिन बनस्थली में आई बी के एक अधिकारी मेरे घर आए , अजब इत्तफाक था कि वो मेरे कालेज के जमाने के दोस्त निकले . दोस्तों के बीच खुलकर जैसी दुनियां जहान की बातें होती हैं वो हो गईं . 

इस दोस्त आई बी अधिकारी के पास ऐसी राज मुद्रिका थी नए जमाने की कि वो कहीं भी आ जा सकता था . मुझे तब ये अच्छी तरह पता चला था कि इन ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास आगे से आगे कितनी सूचनाएं इकठ्ठा होती हैं . 

जाने अनजाने वो दोस्त मुझसे भी ऐसी सूचनाएं ले ही गया जो प्राप्त करना उसका पार्ट ऑफ जॉब था .

इस आई बी अधिकारी की आवक बाद में भी परिसर में देखी गई . मेरे कुछ एक नजदीकी दोस्तों की राय थी कि दोस्त था तो क्या हुआ आया तो आई बी की तरफ से था मुझे उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए थी . मैं ऐसा कभी कर नहीं पाया . मैंने राजनीतिशास्त्र पढ़ा और पढ़ाया जरूर था पर ये पैंतरे बाजी मुझे न तब आती थी न अब आती है .

एक भले दोस्त के रूप में उसने एक राय जरूर दी थी जो बात मुझे आज भी याद आती है :

" सुमन्त , मेरी मानो तो किसी पार्टी की मेंबरशिप भूल कर भी मत लेना वरना अपना ये सोचने का तरीका गंवा बैठोगे . .. सब एक जैसे हैं ."


हम लोग कोई सरकारी नौकर नहीं थे अतः किसी राजनैतिक दल के प्रति प्रतिबद्धता निषिद्ध तो नहीं थी , पर उस दिशा में कोई महत्वाकांक्षा मैंने पाली भी नहीं थी .

ऐसे ही याद आई बाते आपसे साझा करते हुए 

प्रातःकालीन विलंबित सभा स्थगित :


सहमति और समीक्षा : Manju Pandya


आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

25 जुलाई 2015 .

ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण  जुलाई २०१८.


1 comment:

  1. आज फिर फ़ेसबुक पर साझा कर रहा हूं ये पोस्ट ।

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