समय कम है . आज बात की शुरुआत ही करे लेते हैं.
उस दिन जब जयपुर में शिवाड़ एरिया के छोर पर होमियोपैथी दवा की दूकान के नीचे मैं दवा खरीदने को खड़ा था तो मुझे देखकर एक नवयुवक काउंटर से एक सीढ़ी उतर कर आया और मुझे ऊपर ले लेने को उसने अपना हाथ बढ़ाया . ये उसका बांया हाथ था .
ये मरी * आर्थराइटीज के चलते कभी कभी सामने वाले को लग जाता है कि सीढ़ी चड़ने के लिए
इसे सपोर्ट की जरूरत है . यही उस दिन भी हुआ . कुछ कुछ अंदाज तो पहले ही लग गया था पर जब उसी युवक ने बांये हाथ से कलम पकड़ कर दवा का बिल भी बनाया तब तो पक्का ही हो गया कि वो भी मेरी तरह लैफ्ट हैण्डर ही है और इस तरह एक अपनत्व बन गया मेरे और उस बमुश्किल बीस साल के युवक के बीच .
मैंने उससे पूछा :
" अरे तू भी लैफ्ट हैण्डर है ?
तुझे किसी ने सताया तो नहीं इस बात पर कि तू बांये हाथ से लिखता है ?
ये सारी दुनिया दांए हाथ वालों की है !"
उत्तर मुझे चोंकाने वाला था . वो बोला :
" सताया न अंकल , सबसे पहले तो बचपन में ही घर वालों ने दांये हाथ से लिखने पर जोर डाला , स्कूल में भी वही सब कुछ हुआ . कुछ एक काम मैं दांए हाथ से भी करने लगा पर बांए हाथ से लिखने की मेरी आदत न छूटी . "
इस दुनियां में ये लैफ्ट राइट डिवाइड बड़ी जबरदस्त है .
इसके चलते तो एक बार बनस्थली में संरक्षक के रूप में मैंने पेशी भी झेली और मैं " नॉट गिल्टी " प्लीड नहीं कर पाया वो कहानी रोचक भी है और भावुक कर देने वाली भी पर आज समय कम है , बहुत से सूत्र पिरोने पड़ेंगे . बात थोड़ी लंबी चलेगी .
प्रातःकालीन सभा अनायास स्थगित ........
* मरी ही कहा है मेरी नहीं .
सुप्रभात .
सह अभिवादन : Manju Pandya.
भिवाड़ी . राजस्थान .
20 जुलाई 2015
ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण २० -०७-२०१८ .
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