नानगा द ग्रेट : सातवीं कड़ी .
नानगा गवर्नर हाउस याने राज भवन में त्रस्त था और नौकरी छोड़ने पर आमादा था . जैसी खान पान की सामग्री उसे बाजार से लेकर आनी होती थी उसे अच्छा नहीं लगता था . राज भवन में भी उसके काम काज का तरीका निराला था . निरक्षर व्यक्ति दुनियां भर में डाक बांट आता आखिर वो साइकिल सवार था , कैसे छटनी करता कैसे यथा स्थान पहुंचाता उसका अपना ढंग था .
वहां रहते भी वो अपनी करनी से बाज नहीं आता .
तीतर उड़ाया .
एक दिन नानगा को लगा कि रात के भोजन में एक तीतर भोज्य बनने वाला है . आखिर नॉन वैज खाने वालों को तो वो सुस्वादु लगता है ऐसा मैंने समझदार लोगों से सुना ही है . नानगा को तीतर पर दया आ गई और उसने तीतर उड़ा दिया . खुले आकाश में उड़ने वाला पक्षी चला गया आकाश में . रसोइया चाहे नॉन वैज बनाता रहा हो नानगा की शाकाहारी विचारधारा का भी तो आदर करता था .
डिनर के लिए काटे जाने को तीतर उपलब्ध नहीं रहा . क्या हुआ उसके बाद आपकी जानने की उत्सुकता होगी पर ये बात आ पाएगी अगली कड़ी में ही .
अनायास प्रातःकालीन सभा स्थगित
(कथाक्रम आगे जारी रहेगा ....)
सुप्रभात .
सहयोग और समीक्षा : Manju Pandya .
सुमन्त पंड्य
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
6 जुलाई 2015 .
ब्लॉग पर प्रकाशित जुलाई २०१८ .
फोटो में शंकर के साथ मेरी जुगलबंदी .
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