Sunday, 1 July 2018

नानगा द ग्रेट  : स्मृतियों के चलचित्र ६ .

नानगा द ग्रेट : छठी कड़ी


                                   मैंने पिछली कड़ी में लिखा था ,लिखा क्या था बल्कि कहा था कि नानगा ने जयपुर शहर से दूर सुक्या गांव में अपनी खुरपी गाड़ी थी , शहर में तो वो जीवन निर्वाह के लिए आश्रय और रोजगार की तलाश में आया था . मैंने वादा किया था कि इसे समझने के लिए नानगा का अर्थशास्त्र भी बताऊंगा . इस के साथ ही नानगा के केरियर में आए बदलाव भी तो बताने हैं , एक एक कर दोनों ही बातें बताता हूं . पहले अर्थशास्त्र को ही ले लेते हैं , इस बाबात जानने की उत्सुकता ज्यादा रहती है .


नानगा का अर्थशास्त्र :

  नानगा को यदि पांच रूपए महीना काकाजी से मिलता था तो वो यहीं अपने रुपयों को घर के बिस्तरों में दबाकर रख छोड़ता था . दस महीनों की इस प्रकार इकठ्ठा बचत से सस्ते जमाने में एक सोने की मोहर खरीदी जा सकती थी और नानगा वही करता . सोने की खरीद में उसके मददगार होते मुनीम साब जो एक सर्राफा व्यपारी सेठ के विश्वास पात्र मुनीम हुआ करते थे . नानगा ने अपनी मेहनत की कमाई को सोने में बदला और इस काम में कभी नहीं ठगाया . हमारे ही घर के एक सुरक्षित कमरे में नानगा का एक ट्रंक रखा रहता था . उस ट्रंक में मोहरें होंगी किसी को पता नहीं था बहुत बाद तक भी पता नहीं था . वही नानगा का बैंक था , वही स्ट्रांग रूम वही ट्रेजरी ।


आगे चलकर इसी स्वर्ण धन से उसने आज के सुखपुरिया और तब के सुक्या गांव में खेती की जमीन खरीदने की शुरुआत की जिसके लिए मैंने कहा है कि नानगा ने खुरपी गाड़ी . बहुत समय वहां खेती का काम हुआ लेकिन नगर विस्तार के चलते वहां तक तो आज शहर चला गया . रूपांतरण के बाद जमीन के भाव तो अप्रत्याशित बढ़ गए . नानगा के बाद नानगा के बेटों ने अवाप्ति के चलते अगर पांच बीघा जमीन बेचीं तो आवक से अठ्ठाईस बीघा जमीन और खरीदी . इस तरह वो योगः क्षेम की नीति पर चले . जो था उसका संवर्धन ही किया .


पर अब नानगा के केरियर की बात .


नानगा राज प्रमुख के दफ्तर में :

 राजस्थान के निर्माण के बाद जयपुर महाराजा नई व्यवस्था में राज प्रमुख बने और पद पर रहे तब तक नानागा उस दफ्तर में साइकिल सवार रहा .


विलक्षण बुद्धि थी उसकी . उसे ढेरों निमंत्रण पत्र दे दिए जाते जिनपर अंग्रेजी में नाम पते लिखे होते मगर मजाल जो कोई कार्ड इधर उधर हो जाता . हर एक कार्ड पर वो अपनी समझ से कोई निशान बना लेता और सब को यथा स्थान पहुंचा आता .


राज भवन में नानगा :

  1956 में एक परिवर्तन हुआ . राज प्रमुख का पद समाप्त हो गया और राज्यपाल का पद सृजित हुआ . राज प्रमुख के स्टाफ के ये लोग याने हिज हाइनेस हाउसहोल्ड के लोग राज भवन का स्टाफ बनाकर भेज दिए गए . नानगा भी उनमें से एक था .


नानगा को वहां बड़ा कष्ट था और एक बार तो वो नौकरी छोड़ने पर ही आमादा हो गया था , काकाजी ने उसे समझा बुझाकर यह कहकर रोका था कि मिली मिलाई सरकारी नौकरी ऐसे न छोड़े उसका और कहीं तबादला ही करवा देंगे और ये कष्ट मिट जाएगा .


नानगा के शाकाहारी स्वभाव को ये मंजूर नहीं था कि वो मुर्गी के अंडे पोल्ट्री से लेकर आए .

तात्कालिक समाधान ये निकाला गया कि वो रसोइए को कहता कि उसकी साइकिल के हैंडिल पर वो अपना थैला टांक देवे . विक्रेता से कहवे कि वो थैला उतार कर उसमे अंडे भर देवे और फिर टांक देवे . लौट कर रसोइए से थैला उतरवा देवे . गरज ये कि उसे अण्डों को हाथ न लगाना पड़े .


ऐसा था नानगा द ग्रेट .......


कथाक्रम जारी रहेगा.......


सायंकालीन सभा स्थगित .


समर्थन और सहयोग :

Manju Pandya

Himanshu Pandya


नमस्कार .


सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर . जयपुर .

3 जुलाई 2015 .

ब्लॉग पर प्रकाशित   जुलाई  २०१८. 



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