Tuesday, 24 July 2018

ये फ़ेसबुक की दोस्ती ? कल और आज .

ये फेसबुक की दोस्ती ?

     कुछ समय पहले एक मनोविद् को टी वी पर बोलते सुना था कि कुछ एक मनोरोगों के कारणों और लक्षणों में से एक आज के समय में ये " फेसबुक" भी गिनाया जा सकता है .

बहुत हद तक सही तो कह रहे थे मनोविद् . आप उन्हें साइकेट्रिस्ट के रूप में जानते हैं , उस नाम से जान लीजिए .

सर्वथा निजी अनुभव :

        जब से मैंने फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है मुझे दोनों ही तरह के अनुभव हुए हैं . बहुत से अनजान लोग मिले और वो ऐसे बन गए कि लगा ही नहीं ये तय भी हो गया कि उनको तो मैं बहुत पहले से जानता हूं . यहां कुछ के नाम मैं नहीं गिनाऊंगा क्योंकि इससे दूसरों का मोल मैं कम नहीं करना चाहता . इस मंच पर लगता है कि हम लगातार साथ साथ हैं . हमें एक दूसरे की गतिविधि का पता रहता है और ये अच्छा है . 

पर ऐसा कर के जमाने भर को हम वो सब बताए दे रहे हैं जिसे सब कोई को बताने की कोई जुरूरत नहीं है . हमारी सारी सूचनाएं विश्व डेटा बाजार में बिकाऊ हैं , मजे की बात ये है कि इन्हीं सूचनाओं को पाकर ठग हमें ठगने के उपाय कर रहे हैं हम उतने जागरूक नहीं हैं जितना हमें होना चाहिए .


भोले दोस्तों के बारे में :

इस बारे में अभी भी स्पष्ट नहीं हूं कि दोस्ती के इस दायरे के बारे में क्या निर्णय लेवूं . क्या इसे आगे बढ़ने दूं ? क्या इसे यही रोकूं ? या कि छटनी कर डालूं , और घटाऊं इस दायरे को ? लौह आवरण की नीति का ही हिमायती होता तो बच्चों के सिखाए से फेसबुक पर आता ही क्यूं ?


सवाल का सबब :

      - बहुत कुछ प्रोफाइल देखकर दोस्ती कबूल करूं . वो भोले लोग जब तब चैट पर आ जावें और मुझसे वो ही , वो ही सवाल पूछें जिनके उत्तर मेरी प्रोफाइल पर दर्ज हैं . तभी तो मैं नें " चोरंग्या" कांसेप्ट पर पोस्ट लिखी थी .

अधिकांशतः फेसबुक के माध्यम से मिले दोस्तों से दोस्ती के साथ साथ मुझे वरिष्ठ नागरिक सम्मान भी मिला बोनस के रूप में लेकिन कोई कोई भोले और नादान मुझे मुझे अपना सा ही समझ लेवें . उनसे तो मैं यही कहूंगा :

" भाई मेरे, मेरी प्रोफाइल फोटो तो देख ली होती . क्या मैं आपको बराबर का लगता हूं?"


 अपनी छात्राओं को संबोधित :

       आप के / तुम्हारे लिए तो ये खुला निमंत्रण है . मेरी फ्रोफाइल पर जब चाहो उपस्थिति दर्ज करवाओ जैसे मेरी क्लास में आया करती थी . बल्कि कभी कभी तो ये कहने का मन करता है :


" बाहर क्यों खड़ी हो , क्लास में आ जाओ ."

अपनी छात्राओं से तो कोई भी संवाद करना मुझे हमेश ही अच्छा लगता है .

अंत में सभा स्थगित करने से पहले यही कहूंगा :

" फेसबुक पर ठहरता हूं अभी हाल तो , बाकी आगे देखेंगे क्या करना है ."

प्रातःकालीन सभा स्थगित ....

सुप्रभात .

सह अभिवादन : Manju Pandya.

 आंगन, भिवाड़ी .,26 जुलाई 2015.

ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण   २६ जुलाई २०१८.

1 comment:

  1. आज फिर एक बार ये पोस्ट ब्लॉग पर साझा ।

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