Tuesday, 10 July 2018

नानगा द ग्रेट : स्मृतियों के चलचित्र ८.

नानगा द ग्रेट : आठवीं कड़ी .


6 जुलाई को नानगा बाबत सातवीं कड़ी लिखकर पोस्ट की थी उसके बाद पोस्ट तो मैंने लिखी पर इस श्रृंखला का क्रम स्थगित हो गया . आज उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करता हूं .


सुधीर ने तो मुझे पहले ही कहा था कि उसके नानगा मामा की कहानी वास्तव में हमारे घर की कहानी है . ये कहानी कैसे भला पूरी हो सकती है . पोस्ट पूरी हो सकती है कहानी पूरी नहीं हो सकती . इतनी तो बातें हैं बताने को कि कहां तक बताई जाएं . काकाजी से नानगा ने इतना कुछ सीखा जो शायद हम संतानों ने भी उतने अच्छे से न सीखा कभी .


जीजी ने मुझे फोन कर बताया कि जीजी के विवाह में नानगा ने सोने की अंगूठी उपहार में दी थी . जीजी नियमित रूप से नानगा और शेठाणी के लिए राखी भेजा करती थी इत्यादि .

भाई साब ने और बातों के अलावा नानगा का ये गुण रेखांकित किया कि सब कुछ अपने लिए नहीं , अपने उपभोग के लिए नहीं कुछ आगे की पीढ़ियों के लिए भी बचाओ , उनके लिए भी छोड़ो . ये सन्देश तो वास्तव में किसी व्यक्ति के लिए नहीं वरन अखिल मानवता के लिए है .


खैर अभी हाल नानगा के जीवन दर्शन और अर्थशास्त्र को छोड़कर वहीँ चलूं जहां सातवीं कड़ी छोड़ी थी .....

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राज भवन में नानगा :

  बात आई थी कि नानगा ने तीतर उड़ा दिया .

गया तीतर , आकाश में उड़ गया . रसोइए ने ये बात बनाई कि तीतर तो बीमार लग रहा हैं , एक आध बार बगीचे और पिंजरे के चक्कर लगाए और ये आ बताया कि तीतर तो मर गया . और इस तरह तीतर की बात , तीतर प्रसंग ख़तम हुआ . जबकि तीतर तो कभी का परिंदों के आकाश में चला ही गया था . बाकी कहानी आप को विदित ही है . उन वीभत्स बारीकियों में मैं अब नहीं जाऊंगा .


नानगा का तबादला :

    नानगा राजभवन में नाखुश था , नौकरी छोड़ना चाहता था . काकाजी ने उसे रोका था और वो दिन गिन रहा था .

जब तक जयपुर महाराजा राज प्रमुख रहे काकाजी भी राज प्रमुख के हिज हाईनेस हाउसहोल्ड में रहे . ठाकुर मोहब्बत सिंह जी के इस्तीफे के बाद काकाजी वहां अकाउंट्स आफिसर बन गए थे . 


पर राज प्रमुख का पद समाप्त होने के बाद उनकी सेवाएं भी तब राज्य सरकार में विलीन हुईं और उन्हें चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग में काम मिला . उनकी हैसियत वर्तमान एफ ओ के समतुल्य थी और तब की व्यवस्था में एक चपरासी और साइकिल सवार की नियुक्ति या तबादला करना या करा लेना उनके हाथ की बात थी . और इस प्रकार नानगा का बड़ी आसानी से तबादला हो गया नानगा मेडिकल डिपार्टमेंट में आ गया .

जैसा कि राज्य सरकार की सेवा में होता है काकाजी के तो डिपार्टमेंट भी बदले , जयपुर शहर के बाहर भी तबादले हुए पर नानगा उसी मेडिकल डिपाटमेंट में रहा और शहर में ही रहा जहां उसे नियुक्ति मिली थी .

नानगा बाबत एक ख़ास टिप्पणी भाई साब नरेंद्र पंड़्या की -

" नानगा के बाबत मैं ये कहूँगा कि खून के रिश्तों के इतर भी कोई रिश्ते खून के रिश्तो से भी बढ़कर हो सकते हैं, वे नानगा के और हम लोगो के रिश्ते थे शायद हमारे देश में पाए जाने वाले ऐसे ही रिश्तो पर ही हमारे देश की बुनियाद टिकी है और ये ही रिश्ते हमारे देश भारत को भारत बनाये हुए है पता नहीं क्यों लोग इस देश को बाटने और बर्बाद करने की व्यर्थ कोशिश करते है इंसानी रिश्ते धर्मं ,प्रान्त,सम्प्रदाय औरभाषा सेऊपर है."

ऐसे ही एक टिप्पणी मित्रवर गोविंद राम केजरीवाल की भी यहां जोड़ता हूं जिन्होंने ये संस्मरण लिखते हुए मेरा बहुत उत्साह वर्धन किया , वे कहते हैं :

“ बहुत ही सुंदर श्री सुमंतजी.. आपके स्मृतियों के चलचित्र भी इतने सुहावने और स्फूरतिदायक हैं कि मन प्रसन्न हो जाता है जैसे "मुगले आॅजम" फिर से रिलीज हो गई है.. “

कथाक्रम जारी रहेगा........

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

सुप्रभात .

समर्थन और सहयोग : Manju Pandya.


सुमन्त पंड्या .

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

11 जुलाई 2015 .

ब्लॉग पर प्रकाशित    जुलाई २०१८ .

यहां फिर मेरी जुगलबंदी नानगा के बड़े बेटे शंकर के साथ .



2 comments:

  1. Replies
    1. आभार वसुधा , अभी इसकी शेष तीन कड़ियाँ अभी ब्लॉग पर और प्रकाशित की जानी हैं .

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