Monday, 30 July 2018

कांई जात छै ? : बनस्थली डायरी .

कांई जात छै .......?

ये बात बनस्थली की है .
तब विद्यामंदिर में यू को बैंक का एक एक्सटेंशन काउंटर हुआ करता था और एक युवा बैंक अधिकारी वहां बैठता था . इस अधिकारी का नाम था प्रशांत निहलानी .
एक दिन की बात छात्रावास की दो परिचारिकाएं अपने खाते से रुपए निकालने आईं थीं और वहां बैठी थीं  . ये मेरे सामने की बात है कि उन दो में से किसी एक ने इस युवक से बड़ा सहज प्रश्न कर लिया :

" भाया , थारी कांई जात छै ?"
( भैया, तुम्हारी जाति क्या है ?")

हालांकि वो जिस काम से आई थीं उसमें इस  बात का कोई औचित्य नहीं था पर उन्होंने पूछ ही लिया और क्यूं पूछा ये भी बताता हूं . असल में जयपुर में जन्मा और पला , बड़ा हुआ प्रशांत निहलानी  ढूंढारी बोली बड़ी बढ़िया बोलता था और उसने इसी बोली में उन दोनों से बात की थी . अपना सा लगा तो उन्होंने पूछ लिया .

अब जानिए कि निहलानी क्या बोला :

" माजी , म्हे सिंधी  छां ." वो बोला.
(मां जी , हम सिंधी हैं.)

और वे दोनों प्रश्नकर्ता इस उत्तर से संतुष्ट थीं .
वो दोनों तो चली गईं रह गए मैं और निहलानी . मैं ने निहलानी से कहा कि जो सवाल था उसका ये जवाब तो पर्याप्त नहीं था . सिंधियों में भी तो जात बिरादरी होती है . मेरे जिस एक सिंधी परिवार से बड़े आत्मीय सम्बन्ध हैं वे ब्राह्मण हैं  और जिन यजमान के यहां वो कोई पूजन करवाने जयपुर आए थे ,और हमारे घर ठहरे थे , वो माहेश्वरी बनिया हैं .  पर हां विभाजन के बाद जो सिंधी इधर भारत में आ बसे उनकी जात बिरादरी के नाते पहचान से ज्यादा बड़ी पहचान ये बन गई कि वे सिंधी हैं . जात बिरादरी की बात गौण हो गई .
भारत में आ बसे बहुसंख्य सिंधी हिन्दू हैं और इसकी वजह सब को मालूम है , मुझे बताने की कोई आवश्यकता नहीं है .

और बहुत सी ऐसी ही बातें हैं बताने की , इसी बहाने चर्चा करने की .


प्रातःकालीन सभा स्थगित.
इति.

सह अभिवादन : Manju Pandya

सुमन्त पंड्या .
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
31 जुलाई 2015 .


क़िस्से का प्रकाशन  और लोकार्पण जुलाई २०१८.

2 comments:

  1. आज इस चर्चा को ब्लॉग पर प्रकाशित किया है . वास्तव में ये तो चर्चा का प्रस्थान बिंदु है .

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  2. आज फिर एक बार इस किस्से का लोकार्पण कर रहा हूं। इसी बहाने चर्चा शुरु होवे ।

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