लैफ्ट हैंडर : भाग तीन .
ये दुनियां दांये हाथ को सीधा और बांए हाथ को उल्टा कहती आई है उससे ही बात तो कुछ कुछ साफ़ होती ही है मुझ जैसों के बारे में .
अब मेरा तो जो कुछ होना था हो लिया इस नाते पर बात आगे की बताता हूं जब परिवार में एक बांए हाथ वाला और प्रगट हो गया .
छोटा वाला जब बनस्थली में स्कूल जाने लगा तब की बात बताता हूं .
दो बरस तक तो सब कुछ ठीक ठाक रहा . तब वहां बड़ी अच्छी सोच थी कि शिशु कक्षाओं में उसे खेलने खाने में ही व्यस्त रखा गया और कोई कलम हाथ में नहीं पकड़ाई गई . अच्छा ही रहा कि खुद अपने हाथ से खाना खाना सीखा वरना तो घर में उसकी मां उसे खिड़की में बैठाकर , ध्यान बंटाकर खाना खिलाया करती थी . मुसीबत तो तब आई जब हाथ में कलम पकड़ने की उमर आई .
. एक दिन वो घर आकर बोला :
" पापा , जीजी * कहती है कि पेन्सिल हमेशा इस हाथ में पकड़ो !"
उसने ऐसा कहकर अपना दांया हाथ बताया .
* बनस्थली में तब टीचर को जीजी कहने का चलन था .
इन जीजी के बारे में भी बताता चलूं . वे अपने सेवाकाल के अंतिम दशक में कार्यरत थीं और अवस्था में मुझसे बहुत बड़ी थीं .
वैसे ही एक बात और याद आती है जो बताऊं कि इनकी बेटी सत्तर के दशक में मेरे पास एम ए कक्षाओं में पढ़ा करती थी . तब एम ए परीक्षा के बाद वाय वा भी होता था और ये लड़की इतना धीरे बोलती थी कि तैयारी के दौरान ये सुझाव आया कि इनके लिए तो एक माइक लगवा देना ही ठीक रहेगा . खैर तब हम लोग टीचर की भूमिका में थे . अब मैं संरक्षक की भूमिका में था और ये जीजी टीचर थीं . खैर. .... ये बात तो सिर्फ इस लिए जोड़ी कि मैं ये बता सकूं कि कितनी बड़ी थी जीजी . उनके विचार भी बहुत पक्के थे जो मुझे मिलने पर और स्पष्ट हुए .
जब इस प्रसंग में मैं उनसे मिला तो जो पहली बात उन्होंने कही वो थी :
" आप भी इसे समझाओ कि ये दांए हाथ से लिखना सीखे."
हां, तब तो लिखता क्या था, लिखना सीख ही तो रहा था . उनकी मान्यता थी कि ये आदत यहीं से सुधारी जानी चाहिए .
और मैंने यह कहकर अपनी असमर्थता जताई :
" मैं इसे भला क्या समझाऊं , मैं तो खुद बांए हाथ से लिखता हूं "
और भी बातें हुई , घर लौटकर भी बात हुई इस बारे में पर वो आगे आएंगी .
ये बात अभी और चलेगी ......
पिछली दो कड़ियों पर आप सब ने समर्थन दिया उसके लिए आभार व्यक्त करते हुए...
प्रातःकालीन सभा स्थगित ..
समीक्षा और समर्थन : Manju Pandya.
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
बुधवार 22 जुलाई 2015 .
ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण २२-०७-२०१८.
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