Thursday, 26 July 2018

आओ बूंदी चलें : स्मृतियों के चलचित्र .

आओ बूंदी चलें :


      पिछले दिनों अनिल ने बूंदी नगर की एक सुन्दर तस्वीर फेसबुक पर साझा की तब से मुझे भी जब तब बूंदी की याद आ जाती है . एक साल मैंने भी वहां बिताया था . तब के सहपाठी दोस्त याद आ जाते हैं . वहां लौटकर जाना फिर कभी नहीं हुआ पर यादें हैं जो जब तब वहां ले ही जाती हैं .

वर्ष 1961 - मैं ने न्यूं मिडिल स्कूल, बूंदी से स्कूल की कक्षा आठ पास कर ली थी . जब सबसे बड़ी कक्षा पास कर ली तो वहां से टी सी तो लेना ही था . काकाजी* टी सी लेने गए थे और मैं साथ था . दीनानाथ जी हैड माट साब ने टी सी देते हुए काकाजी से जो पूछा और अपनी कही वही बात बताता हूं . पहले एक बात और बताऊं जाने क्यों हैड माट साब को लोग और बच्चे भी पीछे से ' धुनची जी ' कहते थे और उनका बेटा गणपत भी हम लोगों का सहपाठी था उसने भी उसी वर्ष आठवीं कक्षा पास की थी .


हैड माट साब पूछने लगे :

" टी ओ साब, बेटे को क्या सब्जेक्ट्स दिलाओगे ? "

तब कक्षा नौ में ही फैकल्टी और विषयों का चयन हो जाया करता था .

बाद तक भी यही सिलसिला चला . ये तो बहुत बाद में हुआ है कि यह चयन ऊंची क्लासों में जाकर होने लगा . बेहतर अंक लाने वाले विद्यार्थी साइंस पढ़ने के लायक माने जाते थे और पड़े गिरे पास हुए आर्ट्स पढ़ने को शापित होते थे . एक बार आर्ट्स में दाखिला लेने वाले आगे आर्ट्स में ही रहते थे . जिन दुखियारों से साइंस नहीं निभ पाती वो बड़ी क्लासों में इधर आ जाते पर इधर से उधर जा पाने की सुविधा नहीं होती थी .


" ये तो आर्ट्स पढ़ेगा . और आपका भी तो बेटा है , सुमन्त बता रहा था, उसके बारे में क्या तय किया हैड माट साब ?" काकाजी बोले.


काकाजी का उत्तर उन्हें चौंकाने वाला था , क्योंकि मेरी मार्क लिस्ट से तो साइंस पढ़ने की लायकी सिद्ध जो हो रही थी . ऐसे ही सवाल जवाब आगे तब भी हुए जब काकाजी मुझे जयपुर में दरबार मल्टी परपज हायर सकेंडरी स्कूल में कक्षा नौ में में दाखिला करवाने गए .


तब मुझे कहां भान था कि आगे जाकर साइंस पढूंगा , ऐसा वैसा साइंस नहीं - मास्टर साइंस . 

खैर अभी तो बात बूंदी की चल रही है वहीँ लौटते हैं .


माता पिता के सपने :

 तब माता पिता बच्चों के लिए कैसे सपने देखते थे उसका उदाहरण है वो जो तब हैड माट साब ने कहा था . काकाजी को अपने बेटे के बाबत वो बोले :


" वो ही इंजीनेरी के सब्जेक्ट - साइंस मैथेमेटिक्स ."


इतना ही नहीं उन्होंने ये भी बताया था कि वो इस बात का भी प्रयास करेंगे कि आगे उनका तबादला जोधपुर का हो जाए ताकि वो बेटे को इंजीनियरी की पढ़ाई करवा सकें . तब ले दे के एक जोधपुर में ही सरकारी इंजीनियरिंग कालेज हुआ करता था , मंगनी राम बांगड़ मेमोरियल इंजीनियरिंग कालेज .


मुझे आगे का हाल तो नहीं मालूम कि हैड माट साब अपनी योजना में सफल किस हद तक हुए पर कुछ सूत्र बूंदी से तब जुड़े जब बनस्थली में मेरे काम करते हुए एक चित्रकार मित्र बूंदी से आए और मिले और चूंकि वो भी उसी मिडिल स्कूल के पढ़े हुए थे इसलिए स्कूल की यादें ताजा हो गईं , कुछ और दोस्तों के बारे में भी उन से ही पता चला .


बहरहाल लौटकर वहां जाना नहीं हुआ . जाऊं भी तो उस समय का कौन मिले वहां ?


उसी पुराने समय को याद करते हुए...

प्रातःकालीन सभा स्थगित .


* काकाजी हमारे पिता जो तब बूंदी में ट्रेजरी ऑफिसर थे .


साझा लेखन : Manju Pandya

आशियाना आँगन, भिवाड़ी .

27 जुलाई 2015 .


ब्लॉग पर पुनः प्रकाशन और लोकार्पण  २७ जुलाई २०१८.


2 comments:

  1. आज इस पोस्ट का सचित्र प्रकाशन कर बहुत ख़ुशी हुई . आगे बूंदी बाबत और संस्मरण भी लिखूंग़ा .

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  2. मेरे बूंदी के और जानने वाले अगर इस पोस्ट को देखें तो अपने संस्मरण यहां जोड़ें , मुझे बड़ी ख़ुशी होगी ।

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