Thursday, 12 July 2018

नानगा द ग्रेट : स्मृतियों के चलचित्र ९.

नानगा द ग्रेट : नौवीं कड़ी 


आज की कड़ी लिखने से पहले दो लोगों का विशेष आभार व्यक्त करता हूं . एक बनस्थली के श्याम जी और दूसरा अलवर का लोकेश . श्याम जी मुझे लगातार कहा करते थे :


" भाई साब , अब काईं न काईं लिखो . अब देबा को बखत आगो ." 

अर्थात भाई साब अब कुछ न कुछ लिखो , अब देने का समय आ गया .


लोकेश और रेणु जयपुर आए थे और तब लोकेश ने मुझे कहा था :


"मौसा जी , आप कोई पोस्ट नानगा के बारे में भी लिखो . उसका व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि वो डिजर्व करता है एक पोस्ट ."


इन्हीं लोगों की प्रेरणा मानता हूं कि आठ कड़ी पहले लिख चुका हूं और आज नौवीं कड़ी लिखने जा रहा हूं . आगे बात बढ़ाने में मेरे परिवार जनों और इष्ट मित्रों , जो भी मेरा परिवार ही हैं , ने अभूतपूर्व योगदान दिया जिससे ये श्रृंखला बन पड़ी है , इसमें मेरा कुछ नहीं है . रहीम के शब्दों में: 


" देनदार कोउ और है , देत रहत दिन रैन ।

लोग भरम हम पै धरैं , यातें नीचे नैन ।।"


पहले राजस्थानी की एक लोक प्रचलित कहावत :


" जैपर चाल्यां सै सिद्ध हो जासी.

थाळी ठीकरो हो जासी .

रूपयो - पीसो हो जासी .

टाबर टोळी हो जासी। "


ये उस मनोदशा को इंगित करने वाली कहावत है जो किसी ग्रामीण को नगर की दिशा में प्रयाण के लिए प्रेरित करती है , जैसे प्रेमचंद की कहानी में गोबर नगर चला आता है , नानगा भी जयपुर नगर में आया था पर वो ऐसा आया कि नगर का ही विस्तार वहां तक हो गया जहां जाकर नानगा ने अपने गांव में खुरपी जा गाड़ी .


 नानगा की मसखरी की मुझे चक्रपाणि ने याद दिलाई . नानगा किसी हास्य सम्राट से कमतर नहीं था . आज उसकी केवल एक बानगी बताता हूं . नानगा मुझे कहता:


" रजाई क्यूं बणवावो छो भाया जी , थांकै तो कन्नै ही नुवाई छै ."


अर्थात भाया जी रजाई क्यों बनवाते हो ? आपके तो पास ही निवाई है .

स्थानीय भूगोल के जानकार समझते हैं कि निवाई टाउन बनस्थली के पास ही तो है . निवाई का शब्दार्थ होता है गरमाहट . तो जो निवाई की ओट में रहता हो उसे रजाई ओढ़ने की क्या जरूरत .

जीजी ने भी नानगा बाबत कई बातें बताई , जैसे :

" नानगा की मसखरी का एक किस्सा मैं भी बतातीं हूं  ।एकबार हम उदयपुर आरहे थे ।नानगा से पूछा तुम्हारे लिये उदयपुर से क्या लावें तो उसका जवाब था ।मेरे लिये दो पैसे का उदयपुर ले आना ।ऐसा ही एक वाकया और ,देखिये ।उसने हमारा लेजाने का बिस्तर बांध दिया तब मैंने कहा नानगा थैंक्यू ।उसने प्रत्युत्तर दिया , " क्या फेंक दूं ? " ऐसा था हमारा नानगा । "

एक आध बात भाई साब टिप्पणी में जोड़ेंगे ही मुझे भरोसा है , न तो मैं वो बातें जोड़ूंगा जो उन्होंने बताई हैं अब तक .


नानगा की मसखरी की इन्हीं बातों को आगे भी बताऊंगा पर अभी हाल प्रातःकालीन सभा स्थगित .....

सुप्रभात :

सह अभिवादन : Manju Pandya

आशियाना आंगन, भिवाड़ी .

14 जुलाई 2015 .

ब्लॉग पर प्रकाशित : जुलाई २०१८.


1 comment:

  1. आज इस कड़ी को प्रकाशित कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई । आगे कम से कम तीन कड़ियां और प्रकाशित करूंग़ा । मेरी चाहत है कि ये कहानी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे ।

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