बड़ा सीधा सा कार्य कारण सिद्धांत है , रात देर से सोया सुबह देर से उठा और ऐसे सुबह पोस्ट लिखने का समय बीत गया .
अभी एक दोस्त को बताया है जो चिंता कर रहे थे कि नित्य नियम में क्या बाधा आ गई . उन्हें बताया कि सब ठीक है .
फिर जीवन संगिनी से पूछा कि कोई आइडिया देवें , जो प्रसंग उन्होंने सुझाया उसी पर आ रहा हूं .
एक बार बनस्थली में घोड़े बेचकर सोया वो बात तो एक पोस्ट में बता ही चुका हूं ऐसा ही एक और प्रसंग बताए देता हूं . पहले कुछ फुटकर बातें फिर मुख्य बात जो आज बताने की है .
चौधरी के भाई के विवाह में बरात में गया था . वहां निकासी के दौरान दुल्हन के चाचा मुझसे बोले :
" बरात के साथ पंडित जी तो आप ही हो ?"
वो भी सही बोले जब वो लगन लेकर आए थे तो लगन मैंने ही झिलाया था .
उनको तो मैं क्या बोला अब याद नहीं मगर सावधान जरूर हो गया कि अब ये तो मुझे रात भर जगाने का मीजान बना रहे हैं . मैंने किया ये कि डिनर के फ़ौरन बाद उस गहमा गहमी को छोड़ छत पर जाकर सो गया और मेरी नींद तो अगले दिन सुबह तभी खुली जब वर वधू ने आकर मेरे पांव छुए .
मैं तो अपने विवाह में भी रात भर नहीं जागा था तो मैंने वहां भी अपना टाइम टेबिल ठीक ही रक्खा. पर हमेश ऐसे नहीं हो पाता वो ही आगे बताता हूं . अपने विवाह में क्यों रात भर नहीं जागा वो तो बात ऐसी थी कि तब इस प्रकार के समारोह दो दिन चला करते थे . बीच की रात लोकाचार स्थगित हो जाया करते थे .
आज कल दोनों ही प्रकार के प्रतिमान देखे जाते हैं उन पर अभी मैं कोई टीका नहीं कर रहा .
1984 की बात .
जीजी के बेटे सुधीर का विवाह था उदयपुर में. दिसंबर का महीना था. सभी स्वजन इकठ्ठा हुए थे . आस पास ही वर पक्ष और वधू पक्ष के आवास थे . आस पास परिचितों के घरों में मेहमानों के ठहरने का इंतजाम था . मामा सम्प्रदाय के लिए किसी स्वजन का पूरा खाली मकान जीजी जीजाजी ने उपलब्ध कराया था जहां हम लोग ठहरे हुए थे .
अपवाद रूप में उस दिन मैं विवाह की रात को रात भर जागा आखिर जीजी के घर का एक मांगलिक कार्य होने जा रहा था .
पिछली सारी रात तो जागा ही था अगले दिन सुबह भी देर तक समारोह की विभिन्न गतिविधियां चल रही थीं . ठहरने के स्थान से सब लोग नहा धो कर तैयार होकर जीजी के घर अभ्युदय पहुंचने लगे . आखिर में मैं बच गया जिसे तैयार होकर जाना था . इस डेरे के सब लोग जब चले गए तो मैं अकेला था . मैंने आदत के मुताबिक़ पहले हजामत बनाई और फिर नहाया . चूंकि घर में अकेला था इसलिए सब ओर के दरवाजे मैंने बंद कर लिए और ये विचार कर के लेट गया कि पांच मिनिट को आराम करता हूं और फिर चलता हूं , फिर अभ्युदय पहुंच कर भोजन करूंगा . बस वहीँ गड़बड़ हो गई , मेरी आंख लग गई . कितनी देर हो गई मुझे कुछ पता नहीं .
उधर क्या हुआ ?
---------------- भोजन के लिए जब मैं नहीं पहुंचा तो मेरी ढूंढ मची . जीवन संगिनी सबसे पहले आईं और यहां आकर उन्होंने घंटी बजाई और बहुतेरा दरवाजा खटखटाया पर नतीजा कुछ न निकला . जब आधा घंटा बीत गया तो वो बाहर बैठकर रोने लगीं . उधर से और लोग भी आने लगे और ये चिंता का विषय बन गया . सारा माजरा भांप कर विनोद ने घर के चारों ओर चक्कर लगाया और ये तय किया कि सबसे कमजोर दरवाजा कौनसा है . पीछे का दरवाजा कुछ ढीला लगा वहीँ प्रहार किया और सांकल तोड़ दी .
विनोद ने तो आकर मुझे उठाकर बैठा ही कर दिया और मुझे बात ही समझ नहीं आ रही थी . मैंने तो यही पूछा:
" तुम अंदर कैसे आए ? मैं तो दरवाजा बंद करके आया था. "
मुझे अंदाज ही नहीं था कि इस बीच क्या कुछ हो गया और कितना समय हो गया . तब तक तो फिर खुद जीजी भी वहां आ गई और जीवन संगिनी की भी जान में जान आई .
जीजी ने आकर सब जानकर पूछा कि दरवाजा तो नहीं टूटा ? आखिर उन्होंने किसी परिचित का मकान मांग कर लिया था . और विनोद ने कहा:
" आप को दरवाजे की पड़ी है यहां तो ......."
नोट:
ये पोस्ट दिन में बनाना शुरु किया था , किश्तों में समय निकाल निकाल कर लिखते फिर रात हो गई . अब स्थगित करता हूं रात्रि कालीन सभा .
शुभ रात्रि.
सुझाव : Manju Pandya
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
29 जुलाई 2015.
ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण जुलाई २०१८.
पुराना क़िस्सा है , आज ब्लॉग पर भी प्रकाशित कर दिया .
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