Sunday, 30 April 2017

छोले तुमको हम खिलाएंग़े ..... : जयपुर डायरी ।

तुझको चलना होगा . 


ये तो वाई फाई बाबत कहा है , आज न चला तो कल चलेगा अपन तो यों ही बात करते हैं .

पहले हाली का एक शेर :

"हाली खुदा का शुक्र कर , कुरबान जा मेहमान पर ,

वो खाना अपना खा रहा है , तेरे दस्तरखान पर ."

कोई आता है , खाना खाता है तो बड़ा अच्छा लगता है .

पर कभी कभी थोड़ी अटपटी बात हो जाती है 

.

" छोले तुमको हम खिलाएंगे ,.......बहुत बढ़िया बनाती है ."

भाई साब छोले ही खा रहे थे , जो खा रहे थे उसकी कोई तारीफ़ न कर के भाभी जी की पाक कला विद्या की तारीफ़ कर रहे थे .

अब मैं क्या कहता , मन मन में ही कहता रहा कि तारीफ़ थोड़ी बेमौके हो गई भाई साब , बिला वजह मुझे कुटवा दिया . जीवन संगिनी का बनाया खाना मानक लगे ये तो बहुत ही अच्छी बात है पर अपन कभी तो दूसरे की भी सराहना करें .

ऐसे ही बात याद आ गई थी .

विलंबित प्रातःकालीन सभा स्थगित .


समीक्षा :Manju Pandya


#छोलेतुमकोहमखिलाएंगे


#स्मृतियोंकेचलचित्र #भिवाड़ीडायरी #जयपुरडायरी 

आज पुरानी बात याद करते हुए डूंगरपुर से सुप्रभात 🌻

नमस्कार 🙏


सुमन्त पंड़्या 

(Sumant Pandya)


पुनः प्रकाशित :


सोमवार १ मई २०१७ ।

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Saturday, 29 April 2017

खेल खतम पैसा हज़म : न पार पड़े तो रैबा दे .😎

खेल खतम , पैसा हजम . #भिवाड़ीडायरी #sumantpandya

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" न पार पड़ै तो रैबा दे ! "

😊😊

ये आज के दिन की गए बरस की भिवाड़ी में बनाई पोस्ट है जिसे जस का तस एक बार फिर चर्चा के लिए प्रसारित करता हूं यहां गुलमोहर कैम्प , जयपुर से . आज दिनांक 30 अप्रेल 2016 को .

अभी थोड़ी देर पहले ही तो प्रायवेट कॉफी की बात करके इष्ट मित्रों को अपनी जगार की इत्तला दी है .

अगर समय मिल पाया , जिस पर मेरा वश नहीं है , तो आज के दिन के लिए कोई रेगुलर पोस्ट भी बनाऊंगा .


स्पष्टीकरण :

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     😊😊 ये इत्ती सी बात बगैर सेंसर बोर्ड को पूछे ताछे छानै छानै भूमिका के तौर पर लिख दी है , ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए . कहने दोहराने की जरूरत नहीं कि बाकी की इबारत ज्यों की त्यों है जिसका सूक्त वाक्य वही है :


   " न पार पड़ै तो रैबा दे . 😊"

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सुमन्त पंड्या 

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

   शनिवार 30 अप्रेल 2016 .

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आज वाई फाई का डेटा पैक रीत गया . अनुज ने अपने एंड्रॉइड से हॉट लाइन जोड़ कर मेरा टैब चलाने का प्रयास भी किया पर सफलता न मिल पाई .

पोस्ट तो बननी ही चाहिए , जीवन संगिनी * ने वही जुमला कहा जो मैं अक्सर कहता हूं :

" न पार पड़ै , रैबा दे ."

अर्थात नहीं पार पड़ रही तो रहने दे ."

यही जुमला बताता हूं .

हमारे एक आत्मीय जन परिवार में बेटा पहला ग्रेजुएट बनने जा रहा था . रात तैयारी के दौरान वो थोड़ा परेशान दीखता तो माता पिता यही कहते थे :

" न पार पड़ै तो रैबा दे ."

वो लोग बागवानी करते थे वह भी उसमें ही लग सकता था .

पर बेटे ने वाञ्छित लक्ष्य प्राप्त किया था .

यहां भी बैठेगा मीजान . कल तक चल पड़ेगा वाई फाई और क्या ?

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति.

सुप्रभात .

Good morning.


सुमन्त पंड़्या 

30 अप्रेल 2015 .

आज भी बैठेगा मीजान , इसी बात का भरोसा है .

#स्मृतियोंकेचलचित्र 


आज दिन ब्लॉग पर दर्ज ये क़िस्सा डूंगरपुर से :

जय भोलेनाथ । 🔔🔔

रविवार ३० अप्रेल २०१७ ।

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Friday, 28 April 2017

राष्ट्रपति कौन ?  : बनस्थली डायरी 

बात थी 1975 की , मैंने बनस्थली गांव में एक हमउम्र युवक से सवाल पूछा था :

  " भारत का राष्ट्रपति कौन है ?"

   इसी का उल्लेख करते हुए पिछले बरस पोस्ट लिखी थी .

 कुछ मुद्दे हैं जो आज भी विचारणीय हैं .

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राष्ट्रपति कौन ? 


 कल मैंने अपनी पोस्ट में शिव धनुष का प्रश्न उठाया था आज उससे मिलता जुलता राष्ट्रपति विषयक प्रसंग उठा रहा हूं , शायद बात कुछ स्पष्ट होवे .

वर्ष उन्नीस सौ पिचहत्तर , आपात काल लागू हुए कुछ एक महीने बीत चुके थे उस दौर में बनस्थली के गांव में राजनीतिक जागरूकता जानने को अपनी सी उमर के एक युवक से मैंने प्रश्न किया था . ये युवक पढ़ने की उमर में स्कूल शिक्षा गांव में ही रहकर पूरी कर चुका था और खेती करता था , इतना मुझे याद है .


मैंने पूछा: " भारत के राष्ट्रपति कौन हैं....?"


 युवक ने पूरे आत्मविश्वास से उत्तर दिया :


" डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ."


 वह अपनी जगह सही था , जब वो पढने गया उसने अपनी पढ़ाई की किताब में जो कुछ पढ़ा था उसी के आधार पर वह उत्तर दे रहा था . समय आगे बढ़ गया , महामहिम अब कोई और हैं उसे पता नहीं था . यह वह दौर था जब टेलीविजन की ऐसी छाया इस देश पर नहीं पड़ी थी . केवल चार महा नगरों में ही सीमित प्रसारण होता था . उन्हीं दिनों इसरो ' इम्पैक्ट ऑफ टेलीविजन ' को लेकर सर्वे करवा रहा था कि पहले क्या हाल है और आगे क्या हाल होगा .

चलो लौटें गांव में , मेरा दूसरा सवाल था :


" अपने गांव के सरपंच कौन हैं....?"

युवक का उत्तर सही था:

" दूल्हा राम जी."

पता लग रहा था कि युवक स्थनीय बातों को जानता था बाकी देश काल और अन्य बातों में किताबी ज्ञान पुराना हो गया यह अहसास उसे नहीं था .


शताब्दी बदल गई , संचार माध्यम कितनी तरह के आ गए पर कुछ एक टी वी कार्यक्रमों में संचार का वैसा ही हाल इस दौर में भी देखा गया . मित्र काशी नाथ शुक्ल ने उस ओर ध्यान दिलाया . क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसे ही पिछड़ी रहेगी ? यही सोचने वाली बात है .


प्रातःकालीन सभास्थगित .

इति .

विचारार्थ : Manju Pandya


सुमन्त पंड़्या 

(Sumant Pandya )

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

29 अप्रेल 2015 .

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😊😊 अपडेट - आज दिन जयपुर से दिनांक 29 अप्रेल 2016 .


गए बरस भिवाड़ी में थे तब प्रातःकालीन सभा में ये बात छेड़ी थी मैंने और बड़ी सार्थक चर्चा प्रारम्भ हुई थी मेरे एक छोटे से उल्लेख से .

इस पोस्ट को सहेजकर ब्लॉग पर प्रकाशित करूंगा . आगे करते हैं बात .

सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या .


@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

  शुक्रवार 29 - 4 - 2016 .

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अपडेट :

दो बरस पहले जो बात भिवाड़ी में छेड़ी थी उस पर चर्चा तो चली ही , आज भी ये चर्चा प्रासंगिक है । 

आज डूंगरपुर की प्रातःक़ालीन सभा में इसे ब्लॉग पर भी प्रकाशित किए देता हूं ।

जय भोलेनाथ । 🔔🔔

शनिवार २९ अप्रेल २०१७ ।

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Thursday, 27 April 2017

शिव धनुष किसने तोड़ा  ? : स्मृतियों के चलचित्र  ।


फ़ेसबुक संग्रहागार ने आज याद दिलाया ये क़िस्सा तो लगा इसे ब्लॉग पर होना चाहिए ।

शिव धनुष किसने तोडा ?


स्कूल में इन्स्पेक्टर साब निरीक्षण के लिए आए थे . एक कक्षा में किसी विद्यार्थी से उन्होंने पूछा :


" बताओ शिव धनुष किसने तोड़ा ... ?"

(प्रश्न पुस्तक के पाठ से ही सम्बंधित था , यह स्पष्टीकरण यहां आवश्यक है )


विद्यार्थी थोड़ा सा सहम कर बोला :


"साब , मैंने तो नहीं तोड़ा ..."


उत्तर से संतुष्ट न होकर साब कक्षा के अध्यापक की ओर मुड़े और इस बाबत जानना चाहा तो अध्यापक कुछ इस प्रकार बोले ;


" ये लड़का शैतान है , चाहे मने कर रहा हो , जरूर इसने ही तोड़ा होगा ."


 इन्स्पेक्टर साब उत्तर से थोड़ा अचम्भे में पड़े और इस बाबत प्रधानाध्यापक जी से स्पष्टीकरण चाहा तो वे कुछ इस प्रकार बोले :


" साब असावधानी में टूट फ़ूट हो जाती है , अब जो हो गया सो हो गया .

आज आप भी यहां आए हुए हैं , आदेश दे दीजिए ' राइट ऑफ ' कर देते हैं . "


 अब कोई अतिरिक्त स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं थी . कूए में ही भांग पड़ी हुई थी . ( शिव भक्तों से विशेष क्षमा याचना .)

 

ये किस्सा मैंने एक सेमीनार के दौरान वर्ष 1974 में सिंधिया पब्लिक स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल खानोलकार साब से सुना था जो आज अपनी याद से दोहराया है .

यहां दोहराने का मकसद किसी भी समूह का दिल दुखाने का नहीं है .

लेकिन आप मानेंगे कि चाहे ये बात कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण लगे इससे मिलते जुलते उदाहरण आज भी मिल जाते हैं .


विलम्ब से हुई प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति .

समर्थन : Manju Pandya


सुमन्त पंड़्या 

(Sumant Pandya )

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

28 अप्रेल 2015 .

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आज ब्लॉग पर प्रकाशित 

डूंगरपुर   २८ अप्रेल २०१७ ।

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केवल आज ...: डूंगरपुर डायरी

" मैं केवल आज में विश्वास रखता हूं , ना भूतकाल में और न ही भविष्य में । बस इतना ही बहुत है ।"


कल सायंकाल एक अभिन्न मित्र से लम्बी चर्चा के बाद उनकी ओर से आया ये आप्त वाक्य । आज भोर की सभा में मैं इसे अपनी ओर से संयुक्त विज्ञप्ति के रूप में जारी करता हूं । संयुक्त विज्ञप्ति इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वाक्य उनका है और मैंने सहमति के हस्ताक्षर किए है । मित्र का नामोल्लेख जानबूझकर नहीं कर रहा क्योंकि वे सोशल मीडिया पर होकर भी किसी चर्चा का केंद्र नहीं बनना चाहते । प्रसारण का दायित्व उन्होंने मुझे दिया भी नहीं है , शीर्षस्थ वाक्य को मूल्यवान जानकर मैंने ही उठा लिया है ।


कितनी गहरी बात है कि वर्तमान में रहें अपण । मैं बस इतना सा और जोड़ना चाहता हूं कि वर्तमान में रहें और प्रसन्न रहें । 

बात को तो और खोलकर समझाऊंगा पर अभी अनायास सभा स्थगित करनी पड़ रही है । वजह आपको पता है ।


सुप्रभात 🌻

जय भोलेनाथ । 🔔🔔


गुरुवार २७ अप्रेल २०१७ ।


दोपहर का अपडेट :


अब रेणु को क्या जवाब देवूं । वो कहती है :


" परंतु मामा हमारी संस्कृति तो भूत काल से सीखते हुए वर्तमान में रहते हुए भविष्य की योजना बनाने की है ना? "


मैंने मान ली बात , और क्या करता !  

और इस प्रसंग में घोर असमंजस में डालने वाली टिप्पणी मिली शंकर लाल जी की  । उन्होंने लिखा :

" बहुत ही गहरी बात है। आजकल इस पर बाबाओं से लेकर ..और भी बडे बडो और खासतौर पर मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि के विदुषकों से सुनकर मै भी कयी दिनों से व्यवहार मे लाने की कौशिश मे लगा था कि अचानक असमंजस मे फंस गया! कल दिन मे कोई बारह एक बजे के आस पास का. मेघराज तावड का फोन आया कि साथी शहर से लगती पंचायत बडगांव के अंतर्गत वहीं बगल मे निर्जन पहाडी पर कोई दसेक साल से आसपास के ग्रामीण इलाके से आकर आकर शहर मे मजदूरी करने और दूसरे छोटे मोटे काम करने वाले कोई दो हजार लोगों के कच्चे घरों और झोंपडियों को अतिक्रमण माधते हुये प्रशासन ने ध्वस्त कर दिये है और वहां लोग,खासकर महिलायें और बच्चे धूप मे अपने बच्चे खुचे घरेलू सामान के साथ निसहाय पडे हैं। वहां से कुछ लोग फोन पर मदद मांग रहे हैं। हमलोग कुछ दूसरे साथियों के साथ वहां पहुचे। वहां का नजारा देख कर, उनके वहां आकर बसने की मजबूरी और वो सिर छिपाने के लिये हजार फुट उंची पहाडी के ढलान से चोटी तक बनाये झोंपडों को बनाने के संघर्ष की दास्तानें और फिर इस कहर के बाद के हालात के बाद से सारी कौशिश के बाद वर्तमान मे जीने के साथ प्रसन्नता से रहने का प्रयास विफल हो गया है। इसी बात पर बार बार यह भी मन मे आ रहा है कि वो लोग इस वर्तमान के साथ प्रसन्नता का बौझ कैसे ढोयें ? कोई उपाय? "

अब मैं क्या कहता भला  , मुझे मानना पड़ा :

आप थे शंकर जी । बहुत आभार इस टीका के लिए । प्रसन्नता भी वाक़ई में बोझ है इन लोगों के लिए ऐसे हालात में । संघर्ष के अलावा और कोई तो रास्ता नहीं सूझता ऐसे में । लगता है ये मानवता के ह्रास का समय है ।

इतना ही विचार हुआ आज दिन इस संयुक्त विज्ञप्ति पर । अब आगे देखते हैं कि वर्तमान में प्रसन्न कैसे रहा जा सकता है ।

डूंगरपुर से संध्या वंदन ।

गुरुवार २७ अप्रेल २०१७ ।

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Tuesday, 25 April 2017

अलटप्पे बात  : डूंगरपुर डायरी 😀

अभी अभी अळसेटे में पड़ी एक फोटो उठाकर मैंने अपनी दीवार पर टांक दी । बात इत्ती है कि इसमें मैं खुश दिखाई दे रहा हूं ।


मेरे साथ ऐसा प्रायः होता है कि जहां जहां दूकानों पर जाता हूं और दूकानदारों से अटकता हूं , माने बातचीत करता हूं , कालान्तर में वो काउंटर पर दीखना बंद हो जाते हैं । कभी कभी तो पहचान का संकट हो जाता है । अया मैं सही दूकान पर भी आया हूं के नहीं । पर थोड़ा गौर करने पर दूकानदार की फोटो दीवार पर दीख जाती है नकली फूलों की माला से सजी हुई ।

ऐसे पीढियां बदलती हैं । अगली पीढी अपने काम की एक फोटो छांटकर दीवार पर लगा देती है और गुडविल चली आती है ।


ऐसे ही फोटो देखकर फोटो का ये किस्सा याद आ गया जो यहां जड़ दिया है ।( जोड़ दिया न कहकर जड़ दिया ही कहा है ।) इसमें और कोई गहरे निहितार्थ नहीं है । 

आजकल किस्से कई नए पुराने याद आ रहे हैं पर थोड़ा टाइम टेबिल सख्त है इसलिए ब्लॉग पर भी कम किस्से दर्ज हो रहे हैं और फेसबुक पर भी । फोटो और किस्सों का संतुलन भी थोड़ा गड़बड़ा रहा है , माने अनुपात गड़बड़ा रहा है । अब इत्ता कुछ मांड दिया तो इसके साथ एक फोटो तो बनती है । 

कोई न कोई फोटो तो जोड़ूंगा यहां , अगले एडिट में , अब ढूंढूंगा तब न जोड़ूंगा ।


अभी हाल तो प्रातःकालीन भ्रमण की तैयारी और क्या ?


जय भोलेनाथ ।🔔🔔

डूंगरपुर से सुप्रभात ।🌕


बुधवार २६ अप्रेल २०१७ ।


फ़ोटो फ़ाइल से ।


कहने को एक फ़ोटो और सही । सब  काम अलटप्पे और क्या !

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अपडेट :

ये स्टेटस मैंने प्रोफ़ाइल पर जोड़ी ही थी कि तत्काल निर्मल शर्मा ने टिप्पणी की जो इस बात को दूर तक ले जाने वाली है । वो टिप्पणी यहां जोड़ता हूं :

" किस्सा मजेदार ।परन्तु दुकानों का कई बार भ्रम हो जाता है जैसे की हवामहल बाज़ार (सिरेड्योढ़ी बाज़ार )में जयपुरी रजाइयों की प्रसिद्ध दूकान क़ादरबक्स पटेल के नाम से है ।लेकिन कालांतर में पीढ़ियों के बढ़ने व् दुकानों के विभाजन बाद वहां इसी नाम की कई दुकाने हो गयी हैं ,आज पहचान मुश्किल हो गयी है कि असली दुकान कौन सी है । "

इस टिप्पणी के लिए तो निर्मल का विशेष आभार । यहां मुद्दा है कि सच्चा वारिस कौन । देखिए गुड़विल की बात दूर तलक जाती है के नहीं ? इस पर तो अलग ही पोस्ट बणेगी किसी दिन ।

डूंगरपुर से पुनः सुप्रभात और नमस्कार ।🙏

जय भोलेनाथ । 🔔🔔

बुधवार २६ अप्रेल २०१७ ।

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Sunday, 23 April 2017

ननिहाल की याद भाग दो : स्मृतियों के चल चित्र 😎

सर्व प्रथम वासुदेव भाई को प्रणाम। 🙏


ननिहाल की याद : दो .

****************** #sumantpandya

#ननिहालकीयाद दो


ये हमारे बचपन की बात है , मामाजी के जमाने की बात है .

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तब डाक विभाग की संचार व्यवस्था ठीक ठाक थी , उस पर भरोसा किया जा सकता था . गांव में तब भी विलेज पोस्ट ऑफिस हुआ करता था . पोस्ट कार्ड पांच पैसे का हुआ करता था और आसानी से बरता जा सकता था. पर पत्र के लिए पोस्ट कार्ड लिखने के बजाय मामाजी यदा कदा एक दूसरा ही उपाय करते वही बताता हूं .


गांव का एक नौजवान ,जो मामाजी का विद्यार्थी भी था , जयपुर के रेलवे मेल सर्विस पोस्ट ऑफिस में काम करता था जब भी गांव जाकर आता मामाजी उसे कुशल समाचार का पत्र लिखकर दे देते और कहते :


" भुआ जी कूं दी आज्यो ."

अर्थात इसे भुआ जी को दे आना .


अगले दिन सुबह उठते ही यह युवक जो रेलवे स्टेशन पर ही सेवारत था और रहता था , साईकिल लेकर नाहर गढ़ रोड़ पर हमारे घर आता और पत्र पहुंचाता . यह संचार की एक अद्भुत व्यस्था थी जो मामाजी ने चुनी थी . वह युवक आता , बैठता , चाय पीता और अम्मा के सामने सारे गांव की हाजरी दर्ज करवाता .

घर परिवार के अलावा अम्मा सारे गांव के बारे में नदी पानी खेती बाड़ी और विभिन्न परिवारों के बारे में समाचार पूछती . रावतान कै , पिरोतान कै कैयां कांई ? ऐसे विभिन्न परिवारों के बारे में अम्मा सवाल करती . अम्मा उन परिवारों के भी समाचार जानती जो गांव में अपने मकान बंद कर आस पास के कस्बों में जा बसे थे और उन की अगली पीढियां तैयार हो रही थीं . रावत , पुरोहित , चौकड़ात , सांभर्या , ठींगाठाई आदि उस जमाने के उन परिवारों के नाम थे जो तब गांव में रहा करते थे .


गांव तब जितना आबाद था आज तो नहीं है , पानी के प्राकृतिक स्रोत सूख रहे हैं , लोग पलायन कर रहे हैं , मेरे ननिहाल मेंआज हालात बदले हुए हैं . पीढियां बदल गईं हैं . नई संचार व्यवस्था भी पहुंच गई है पर वो बात कहां जो मामा जी और अम्मा के जमाने में थी .

सायंकालीन सभा स्थगित .

Manju Pandyaन : Manju Pandya

सुमन्त

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

24 अप्रेल 2015 .

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आज का अपडेट : 💐💐💐💐💐

जयपर रविवार 24 अप्रेल 2016 .

*** ननिहाल की याद क्रम में मैंने गए बरस ये दूसरा भाग लिखा होगा भिवाड़ी में बैठे है . संयोग से दो दिनों से मेरी स्मृतियों के चलचित्र की ये कथा अब फिर चल पड़ी है इसे फिर से प्रकाशित कर चर्चा चलाने का प्रयास करता हूं .

सुमन्त पंड्या .

आज दिन डूंगरपुर से ब्लॉग पर प्रकाशित किए देता हूं ये पोस्ट आज की टीप के साथ :

#स्मृतियोंकेचलचित्र 


आज इस किस्से को भी ब्लॉग पर अंकित किए देता हूं । ननिहाल प्रसंग कल भी छेड़ा था आज फिर सही ।

डूंगरपुर से सुप्रभात ।🌅 और

जय भोले नाथ ।🔔🔔

सोमवार २४ अप्रेल २०१७ ।

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Saturday, 22 April 2017

ननिहाल की याद :   ग़ांव का भाणजा  🙏

वासुदेव भाई और रामलल्ली भाभी को प्रणाम सर्व प्रथम  🙏



ननिहाल की याद : गांव का भानजा. 💐💐💐💐💐

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#बनस्थलीडायरी #sumantpandya


#ननिहालकीयाद


ये तो उन दिनों की ही बात है जब मैं बनस्थली में काम किया करता था .

मुरारी जी भाईसाब , मेहमान घर वाले , किसी विवाह समारोह में जाकर आये थे और किन्हीं पारीक साब के हवाले से कह रहे थे कि उन्होंने मुझे याद किया . मुरारी जी ने उनसे पूछा बताया," आप उन्हें कैसे जानते हैं ?", तो वो बोले बताए ," वो हमारे गांव के भानजे हैं . " पारीकों की बिरादरी और रिश्तेदारी में ही कोई विवाह था और इसी नाते मुरारी जी भाई साब वहां जाकर आए थे , चूंकि बनस्थली का जिक्र आ गया तो मेरे ननिहाल के उस व्यक्ति ने मेरा जिक्र सहज रूप से ऐसे कर दिया . मैं ने भी इस सन्दर्भ को स्वीकार कर लिया और इस प्रकार उस दिन मेरे ननिहाल की याद ताजा हो गई . इस संस्था से मेरे जुड़ाव की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अम्मा रही .

कल हिमांशु * ने एक पोस्ट में अम्मा का जिक्र कर दिया और आप सब ने उसकी सराहना की तो स्वाभाविक रूप से मुझे अच्छा लगा और इस बाबत कुछ लिखने का मन किया . अम्मा का बार बार उस गांव जाने का मन करता था जहां उनका बचपन बीता था , हिमांशु भी थोड़ा बड़ा होने पर अम्मा के साथ मेरे ननिहाल हो आया था और हम तीन भाई तो समय समय पर वहां गए ही अम्मा के साथ भी और अम्मा के बाद भी .


मुरारी जी भाई साब की बात पर बड़े पुरोहित मामाजी और छोटे पुरोहित मामाजी और उन दोनों मामाओं के बेटे याद आ गए जो जयपुर में कोई काम से आते तो हमारे शहर वाले घर पर ही ठहरते और अम्मा उनसे कितने समाचार पूछती वो मुझे आज भी याद आता है . असंख्य भाई और बाद में भतीजे आते रहे वहां से उस जमाने में हमारा घर उनकी भुआजी का घर था और इसी नाते दूर किसी कस्बे में बसे किसी व्यक्ति के लिए मैं था उस गांव का भानजा .

एक छोटा सा प्रसंग बहुत बाद का है . गांव जाकर अम्मा की तबीयत काफी खराब हो गई . छोटा भाई विनोद ** 

 साथ था . अम्मा की हालत देखकर गांव के एक व्यापारी की मोटर किराए ली जो उन दिनों बांदीकुई में व्यवसायरत था पर उस दिन गांव में मौजूद था. किसी तरह जयपुर पहुंच कर अम्मा की चिकित्सा करवाई और अम्मा तब तो ठीक हो गई पर उसके कई वर्षों बाद वही व्यवसायी बापूनगर में हमारे घर के बाहर से जाते हुए रुका और पूछने लगा :


"भुआ जी कूं गयां कितेक बरस हो गया ?"

अर्थात अम्मा का स्वर्गवास हुए कितने वर्ष हो गए ?


 और तब उसके सवाल को रद्द करते हुए विनोद बोला :

" अंदर बैठी हैं , आ जाओ मिल लो ."


पर अम्मा को तो जाना ही था . तब ठीक हो गईं पर एक दिन वो भी आया जब नहीं रही अम्मा . अम्मा और ननिहाल की बहुत सी यादें हैं जो अब भी भुलाए नहीं भूलतीं  ।

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति.

सुप्रभात .

Good morning.

सह अभिवादन  : जीवन संगिनी 

मंजु पंड़्या 

और

सुमन्त पंड़्या 

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

23 अप्रेल 2015 .

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😊😊 अपडेट : जयपुर से आज शनिवार 23 अप्रेल 2016 .

--------------- आज फिर फेसबुक ने दिखाई है पिछले बरस की ये पोस्ट और मुझे लगता है ये पोस्ट फिर से दिखाऊं आप सब को साथ ही फिर इसे ब्लॉग पर भी प्रकाशित करूं , इस विषय में अपने मिलने वालों के सुझाव आमंत्रित हैं .

फिर एक बार दोहराऊंगा कि मेरी पोस्ट आपकी टिप्पणियों से समृद्ध होती है और मैं हूं कि समयाभाव के चलते समय पर आभार भी व्यक्त नहीं कर पाता , अब जो परिस्थिति है जो है .

मेरे ननिहाल का गांव उजड़ रहा है , वीरान हो रहा है , जल स्रोत सूख गए हैं .

ननिहाल के गांव की कहानी भारत के अन्य गांवों से भिन्न नहीं है .

घर परिवार में भी पीढियां बदल गईं अब मामाजी मामी का ज़माना नहीं रहा , अगली पीढ़ी में भी कोई कोई बहन भाई नहीं रहे - दुःखद .

इत्तफाक वासुदेव भाई और रामलल्ली भाभो जयपुर आए हुए हैं , आदेश ने उनकी तस्वीर ली है , पर ये भी गांव से कहां आए हैं ये भी दौसा में आ बसे . वही से आए हैं और मुझे दौसा बुलाते हैं . सब तरफ लोग गांव छोड़ कस्बों शहरों में जा बस रहे हैं . उनकी तस्वीर तो आपको दिखाऊंगा पर दौसा मेरा ननिहाल नहीं है , मैं तो अपनी बचपन की यादें ताजा करने गाँव ही जाना चाहता हूं जब भी चतुर्भुज नाथ अवसर देवें .

सुप्रभात .

प्रातःकालीन सभा स्थगित ...

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आज का अपडेट डूंगरपुर  से 

सब  कुछ विचार करके ये तय पाया कि इस पूरी चर्चा को ब्लॉग पर लिख दिया जाए  । ये कोई मेरे अकेले की कहानी नहीं हर घर की कहानी है । आपको अच्छा लगेगा । बताइएगा ज़रूर ।

जीवन संगिनी के साथ डूंगरपुर कैम्प आवास से :

जय चतुर्भुज नाथ । 🔔🔔

रविवार २३ अप्रेल २०१७ ।

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Friday, 21 April 2017

निवाई डायरी भाग दो : छोटे शहर के अच्छे लोग 😎

निवाई डायरी -- भाग दो ।

#स्मृतियोंकेचलचित्र #निवाईडायरी #बनस्थलीडायरी


कल की पोस्ट में निवाई की बात क्या छेड़ी हम दोनों निवाई बनस्थली हलके की यादों में खो गए । भाई यादवेन्द्र की टिप्पणी ने कल की पोस्ट पर सुन्दर उपसंहार लिख दिया । 

विमल जी और निवाई के उस घर का सुन्दर परिवेश याद आता रहा ।

कैसे अच्छे लोग थे वहां । कित्ती बातें हैं बताने लायक , आज थोड़ी सी और सही ।

कल जीवन संगिनी ने एक कौतुक प्रश्न पूछ लिया मुझसे के अपण नए जमाने के लोग हैं या के पुराने जमाने के और आप सच्ची जाणो मैंने भी मान लिया के अपण तो पुराने जमाने के ही हैं ।

क्यों ?

क्योंकि अपण एक दूसरे को नाम लेकर कब बुलाते हैं ?

मैं इनको अक्सर परमेसरी ( my Godess ) कहकर बुलाता और तब परमेश्वरी मेरी क्लास में पढ़ती थी जो उसकी सहेलियां समझती के उसका ज़िक्र है । ये तो ऐसे ही बनस्थली की बात याद आ गई जो यहां बता दी है ।

बात तो निवाई की चल रही है । वहां तो बराबरी की बात थी । न तो वो उनका नाम लेवें और न वो उनका । ऐसी थी बात ।

बड़े सवेरे पानी की सप्लाई आती । हम लोगों के जागने से पहले मालिक मकान हमारी रसोई में पानी भर देते । ऐसे कौन करता है बड़े शहरों में । बड़े शहरों में तो पानी के लिए गृह युद्ध होवेंगे ये आसार आगे आगे दीख रहे हैं । 

एक दिन तो हद हो गई !

हम लोग महिमा और नूनू को साथ लेकर कहीं निकल गए थे । हमें तो ख़याल भी नहीं था वो कोई जैन पर्व का दिन था । तब ले देकर महिमा के पास एक मोबाइल फोन हुआ करता था । सन्देश मिला कि विमल दम्पति चाहते हैं कि हम जल्द घर आएं । खैर साब आए हम लोग । और बात ज़रा सी थी , पर जरा सी बात ही बड़ी बात भी थी ।

क्या बात थी ?

विमल जी चाहते थे कि मंदिर जाने से पहले घर में बड़े बुजुर्ग का आशीर्वाद लेकर जाएं । उस दिन का चयनित बड़ा बुजुर्ग मैं था उनके लिए । ये पांव छुआना चाहे मुझे कितना भी अटपटा लगता हो उस दिन तो ये भूमिका स्वीकार की मैंने ।

विमल जी ने मेरे पांव छूए और बड़ा जैन मंदिर के लिए रवाना हो गए । ये दृष्य आज भी मुझे याद है ।

ये गाथा तो लंबी चल सकती है पर समय की सीमा है । आज निवाई डायरी को यहीं स्थगित करता हूं ।

अब जीवन संगिनी का मन रखने को एक बात ऐसे कह देता हूं :

अपण नए जमाने के पुराणे लोग हैं ।


@ डूंगरपुर भोर की सभा स्थगित …..

   शनिवार २२ अप्रेल २०१७ .


निवाई डायरी : छोटे शहर के अच्छे लोग 😀


#स्मृतियोंकेचलचित्र #निवाईडायरी #बनस्थलीडायरी


आज एक छोटी सी बात बताऊं आपको जो पिछले दशक की यादों से जुड़ी हुई है । यह बनस्थली - निवाई हलके की बात है ।


ये उन दिनों की बात है है जब बनस्थली में मेरा सेवा काल समाप्त हो चुका था और हम लोग गुलमोहर , जयपुर में आ बसे थे । महिमा की नियुक्ति हमारे बनस्थली में रहते ही निवाई के सरकारी सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हो चुकी थी । जब तक हम लोग वहां थे महिमा बनस्थली से ही निवाई जा आया करती थी । बाद में अगले बरस एक समय ऐसा भी आया जब अल्प अवधि के लिए हम निवाई जा रहे । उस दौर की कई एक यादें हैं जो बताने लायक हैं । उन यादों पर बहुत कुछ कहा जा सकता है , पर आज समय कम है तो थोड़ा ही क़हूंगा और एक प्यारे दोस्त की बहुत ही रोमांटिक बात पर इस चर्चा का समापन करूंग़ा ।


बीच की अवधि की बात :

------------------ ये बताए बिना पूरी बात साफ़ न होगी अतः कुछ पूरक सूचनाएँ यहां जोड़ रहा हूं । जब हम लोग मय सामान जयपुर चले गए तो इधर आकर फिर रहने की कोई बात तो नहीं थी पर साब कुछ स्थान आपको वापस बुलाते ही हैं , निवाई उनमें से ही एक है उस क़स्बे से आज भी कम से कम मुझे तो बहुत लगाव है ।

इधर महिमा का विवाह हो चुका था । Anuj Bhatt अनुज मानेसर में काम करते थे और गुड़गाँव में रहते थे । थोड़े समय बाद नूनू जी भी आ गए और उन्हें साथ लेकर नौकरी का तालमेल बैठाने के कई एक प्रयोग हुए । इसी दौर की बात है कि महिमा ने निवाई बस स्टैंड के पास ही बस्ती में एक कमरा किराए ले लिया । बा हैसियत नूनू के नाना नानी हम दोनों भी निवाई जा रहे । आज की पोस्ट में उसी दौर की कुछ छोटी छोटी बातें हैं और एक है ख़ास बात ।


बात १.

सब कोई हमें बनस्थली वाला ही समझते थे । कौन माने कि हम तो निवाई वाले बन गए थे , चाहे थोड़े ही समय के लिए सही । अनजान लोग हमें कह जाते आप की बस आ गई , बस स्टैंड पर खड़ी है , जल्दी पहुँचो ।

निवाई में हम बहुतों को जानते थे , आख़िर बनस्थली में लम्बे रहवास का ये तो नतीजा होना ही था । पर इस अल्प अवधि में ये भी पता चला कि जिन्हें हम नहीं जानते थे वो भी हमें जानते थे । ये सब जानकर कित्ता अच्छा लगता है ये समझा पाना मुश्किल है ।


बात २

नूनू उस मोहल्ले में पहुँचकर सब का प्यारा बन गया था । बग़ल के घर से बच्चियाँ उसके साथ खेलने आ जातीं । मालिक मकान घर लौटने के बाद यदि कहीं बाहर निकलते तो नूनू को गोद में ले जाना ज़रूरी समझते । मकान मालकिन इसे अपने साथ ले जातीं , इसको पास बैठाकर अपना काम करती रहती । वो ही रोज़मर्रा के घर के काम काज ।

मैं नूनू को लेकर घर से निकलता कुछ तमाशा दिखाने और स्टार प्रोपर्टीज के चबूतरे पर जा बैठते हम लोग । नूनू बमुश्किल साल भर का था हम नाना दोहिता घर से निकलते , ये मेरा हाथ छुड़ाकर मेरे लिए अनजान घर में घुस जाता । वो लोग इसे पहले से जानते होते और इसके साथ मेरा भी आव आदर करते ।

मोहल्ले की ऐसी आपसदारी छोटी जगहों पर ही होती है , महानगरों में तो ऐसा कम ही देखने को मिलता है ।


बात ३ : ख़ास बात 😀


ये बात सबसे ख़ास है । निवाई में हम जिस घर में रह रहे थे उसके मालिक मकान थे विमल जैन । वैसे उस मोहल्ले में विमल जैन भी सात बताए पर अपणा तो दो से ही वास्ता था , एक ये मालिक मकान विमल जी और दूसरे वो जो बनस्थली विद्यापीठ के लेखानुभाग़ में काम करते थे , मेरे पूर्व परिचित , बाक़ी पांच से अभी अपण को क्या मतलब ।

अब इन विमल जी की , जोड़े की ख़ास बात :

पति पत्नी का एक दूसरे को हेला पाड़ने का बड़ा प्यारा तरीक़ा था । विमल जी को यदि श्रीमती को पुकारना होता तो वो आवाज़ देते सुरभि को और इसी प्रकार यदि श्रीमती को पति को पुकारना होता तो वो आवाज़ देतीं सौरभ को । प्रभु जिनेंद्र की कृपा से सौरभ और सुरभि इनके बेटा बेटी थे और दोनों ही अपनी अपनी उच्च शिक्षा के लिए घर से बाहर थे । 

पुराने लोग ए जी , ओ जी ऐसे कहकर एक दूसरे को हेला पाड़ते हैं उसका कित्ता सुंदर विकल्प बनाया था इनने हम दोनों को तो बहुत प्यारा लगा ये तरीक़ा । अब आज की पीढ़ी के छोरे छोरी तो क्या ही समझेंगे इस बात को !


उस मधुर समय और समुदाय को याद करते हुए @डूंगरपुर प्रातःक़ालीन सभा स्थगित ........


जय भोले नाथ : 🔔🔔


शुक्रवार २१ अप्रेल २०१७ .


नोट : फ़ाइल चित्र भी जोड़ूंगा ।

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Sunday, 16 April 2017

स्मृतियोंकेचलचित्र : नंगम नंगा    😀

नंगम नंगा - १.

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अब क्या बताऊं आपको ये शीर्षक ही कुछ ऐसा है कि एक बार तो सेंसर बोर्ड ने ऐसी कोई पोस्ट लिखने को ही मने कर दिया था  । सेंसर को लगा इसमें कोई अभद्र और अश्लील बात आएगी । आज की ज़ुबान में क़हूं तो वल्गर या पॉर्न पोस्ट बण रही है ये वहम हो गया सेंसर को । मरता क्या न करता ,  सारी बात सेंसर को भी बताई  , एक आध और लोगों को भी ये बातें सुनाई और उन्हें  अंपायर बनाया   , पूछा कि बोलो जी इसमें क्या अभद्रता है  ? सब  तरफ़ से हरी झंडी हो गई तो अब करता हूं ये क़िस्से दर्ज  ।

नंगम नंगा --१

ये कहानी मेरे ननिहाल  की है और कई पीढ़ियों पुरानी है । पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाकर ये कथा मुझ तक पहुँची है । सच्ची बात है जो आप को ज्यों की त्यों बताए देता हूं । इस में ला ला लू ली की क्या बात  । सच्ची बात है तो है ।

भट्ट जी महाराज  ग़ांव के बाहर के क़ुए  की मुंड़ेर पर नित्यनियम के अनुसार नहा रहे थे जिसके आगे ग़ांव का गोचर प्रदेश था  । नहाते नहाते उनका ध्यान पड़ा कि  उनके घर की गाय  प्रसव वेदना से पीड़ित है और कुछ कठिनाई अनुभव कर रही है  । वे नहा तो चुके थे पर अब उनकी प्राथमिकता गाय थी  तो जैसे थे  वैसे ही चल दिए  और ऐसे में धोती लपेटना तो भूल ही गए  । बछड़े को बाहर निकालने में उन्होंने मदद भी की और बछड़े को साथ लेकर घर की और चल दिए  । मेरे ननिहाल का चतुर्भुज जी का मंदिर  ग़ांव के बीचों बीच एक ऊंचे स्थान पर है  और चहुं ओर से रास्ते उसको जाते हैं । भट्ट जी महाराज जिस ओर से  बछड़े को लेकर चले   गाय उनके पीछे पीछे चली  , रास्ते भर कई ग्राम वासियों से एक ही संवाद होता रहा उसकी बानगी देखिए  :

" भट्ट जी महाराज यो काँईं हो  रह्यो छै  ?"

( भट्ट जी महाराज ये क्या हो रहा है  ?" )

" गाय ब्याई छै  , केरड़ो हुयो छै  !"

( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )

एक ही सवाल बार बार पूछा गया उनसे और वो  हर बार ऐसा ही जवाब दोहराते गए  । आख़िर किसी तरह वो घर पहुंचे तो वहां भी तो ये ही सवाल  उनकी जीवन संगिनी द्वारा पूछा गया :

" ए शूं  ? "

( ये क्या हो रहा है ?")

और उनका वही सधा हुआ उत्तर 

" गाय व्याई छै , वाछड़ो थयो छै !" 

( गाय ब्याई है , बछड़ा हुआ है )

पर जैसे अन्य ग्रामवासी उत्तर सुनकर  शांत हो जाते थे  ऐसा घर में नहीं हुआ । जीवन संगिनी ने आगे कहा :

" पण नागा काँ छो ?"

( पर नंगे क्यों हो ?" )

अब भट्ट जी महाराज के चोंकने की बारी थी ।

वे जब बार बार पूछे गए सवाल की असलियत समझे तो अपणा ललाट पीट कर बोले :

" अरै पैली पैल  का देखबाला  !"

माने  अरे सबसे पहले देखने वाले !

अपने ननिहाल के उस भोले पूर्वज को नमन करते हुए  " नंगम नंगा -१ " कथा समाप्त करता हूं  ।

नंगम नंगा - २ भी लिखूंग़ा  । आज इत्ता ही ।

तदर्थ सहमति : Manju Pandya .

जयपुर 

रविवार  १६ अप्रेल २०१७ ।

http://ravindraniwassegulmohar.blogspot.in/2017/04/blog-post_7.html


आपका किस्सागो ।

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Friday, 14 April 2017

भरोसे मत रहना .....: जयपुर डायरी 😃


भरोसे मत रहना इत्ती सी बात है ।😀😀


अभी गुलमोहर कैम्प से ही ये स्टेटस जारी करने को बाध्य हूं कि अभी हाल किसी भो पार्क में उपस्थित नहीं होवूंगा। । न तो नेहरू गार्डन वाले बाट देखें और न मोती पार्क वाले । मोती पार्क जाना तो वैसे भी कई दिनों से स्थगित हो रहा है ।


भोले नाथ से भी क्षमा प्रार्थना है । प्रभु ! रोज़ ही आपके चबूतरे पर आ बैठता हूं । एक मज़ाक़ की बात क़हूं , अन्यथा न लेवें प्रभु वहाँ जब मैं चबूतरे पर बैठता हूं कई लोग सामने से प्रणाम कर जाते हैं और मैं ऐसे हाथ जोड़कर जवाब दे देता हूं जैसे मेरे मिलने वाले हों ।🔔🔔


यादध्यानी के लिए आज वो फ़ोटो यहां जोड़ता हूं जो कल मुझे सौंपी थी जीवन संगिनी ने । प्रभु आप तो अपने अन्य भक्तों के साथ मेरे भी प्रणाम स्वीकार करें ।🙏।

सूचना :

आज गुलमोहर कैम्प में विशाल शिखर सम्मेलन की तैयारी है । विशिष्ट अतिथि आए हुए हैं , और कोई अतिथि भी आ सकता है ।


जय भोले नाथ 🔔🔔


गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

शनिवार १५ अप्रेल २०१७ ।

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अब ये भरोसे मत रहना वाली बात ब्लॉग पर भी आ जाए तो कोई हर्ज नहीं । देखें करता हूं कोशिश और तो क्या ?

जय भोले नाथ । 🔔🔔

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Thursday, 13 April 2017

राजस्थान  कालेज की याद :   दो प्रसंग  ✍🏼

राजस्थान कालेज की याद : दो प्रसंग . 😊😊

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#sumantpandya     


  #राजस्थानकालेज #फिराकगोरखपुरी


#हजारीप्रसादद्विवेदी


जब मैं राजस्थान कालेज में पढ़ा करता था तब की बहुत सी बातें याद आती हैं , आज उनमें से केवल दो का उल्लेख करता हूं .


1.

   राजस्थान कालेज के उर्दू विभाग की ओर से व्याख्यान का आयोजन था और जो विशिष्ट विद्वान व्याख्यान देने आए थे वे थे जाने माने शायर फिराक़ गोरखपुरी. ये तब की बात है जब तक फिराक़ को ज्ञानपीठ सम्मान नहीं मिला था पर उर्दू शायरी में उनका बड़ा नाम था . बाद में तो उन्हें ज्ञानपीठ पुरूस्कार भी मिला था और उनकी प्रख्यात कृति 'गुले नगमा' देवनागरी लिपि में प्रकाशित भी हुई थी .

राजस्थान कालेज के ऊपर वाले हाल में फ़िराक को सुनने वालों की भारी भीड़ थी , सब कोई उनकी शायरी सुनने को आतुर थे .

उर्दू के विभागाध्यक्ष जैदी साब ने फ़िराक साब का जो परिचय दिया वो भी एक अलग अंदाज में उसके पीछे भी एक गरज छुपी थी .

जैदी साब बोले :


" उर्दू में बहुवचन कुछ इस तरह बनाए जाते हैं - जैसे 'खबर' से ' अखबार', 'शेर' से 'अशआर'. वगैरा वगैरा ,..,

 एक भोले आदमी को जैसी समझ थी उसने स्टेज पर बैठे शायरों के बाबत ऐसे कह दिया ' आपके सामने कई मुशायरे बैठे हैं .'

वो ये समझता था कि शायर का बहुवचन मुशायरा होता है .

आज मैं भी वही कहूंगा कि ' आपके सामने बड़े मुशायरे बैठे हैं, आज के एक ही शायर किसी भी मुशायरे पर भारी हैं .' ......."

खैर सभा चली , फ़िराक साब का भाषण हुआ और चर्चा का समापन भी होने लगा पर जैदी साब के बहुत मिन्नतें करने के बावजूद उस दिन फिराक साब ने कोई शायरी नहीं सुनाई . उनका कहना था कि वो गंभीर परिचर्चा के लिए आए थे किसी मुशायरे के लिए नहीं.

😊😊

2.

हिंदी विभाग का आयोजन था . विश्वविद्यालय के ह्यूमैनिटीज हॉल में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी व्याख्यान दे रहे थे . उस दिन की उनकी कही एक बात मुझे यदा कदा याद आ ही जाती है . उन्होंने कहा था :


".... लोग मुझसे पूछते हैं ,' हिंदी को खड़ी बोली क्यों कहते हैं ?'

इसका उत्तर मैं इस प्रकार देता हूं ,' जब से इसमें काम शुरु हुआ है हम ने बैठने का नाम ही नहीं लिया है . ...."

धवल धोती कुर्ता पहन कर उस दिन भाषण देने खड़े हुए आचार्य प्रवर मुझे आज भी याद हैं .


ऐसे अच्छे दिनों को याद करते हुए आज के लिए

इति और प्रातःकालीन सभा स्थगित .

अम्बेडकर जयंती की बधाई .

जय भीम .

सहयोगManju Pandya


सुमन्त .

आशियाना आँगन, भिवाड़ी .

14 अप्रेल 2015 .

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अपडेट :

गए बरस आज के दिन भिवाड़ी में बैठकर सुबह सुबह लिखी थी ये पोस्ट और आप मित्रों ने सराहा था इस पोस्ट को .

आज फेसबुक ने ये बात याद दिलाई है , इस बीच नए दोस्त भी जुड़े हैं और ये उचित ही होगा कि एक नज़र इस पोस्ट पर डाल लेवें वे लोग , इसमें बड़ी बड़ी हस्तियों का उल्लेख तो है ही मेरे नॉस्टेलजिया का भी संकेत है .

प्राइवेट कॉफी डन @ गुलमोहर कैम्प जयपुर .

गुरूवार 14 अप्रेल 2016 .

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इस पोस्ट के फ़ेसबुक पर प्रकाशित होने पर मेरे दोस्तों ने बहुत सराहाना की थी  । महादेव चतुर्वेदी ने इन अवसरों की पुष्टि की थी  वो इस सब के साक्षी रहे ।

दुर्गा प्रसाद अग्रवाल साब ने जो कहा वो तो यहां उद्धृत ही किए देता हूं  :

" यह पढ़कर आपसे ईर्ष्या हो रही है कि आपने फ़िराक़ साहब और हजारी बाबू को देखा-सुना है. वो शे'र बेसाख़्ता यद आ रहा है: आने वाली नस्लें तुम पर रश्क़ करेंगी हमअस्रों जब ये ध्यान आयेगा उनको तुमने फ़िराक़ को देखा था. "

और ये कहा केजरीवाल जी ने :

" वाह सुमन्तजी,फ़िराक़ साब और हज़ारीप्रसाद जी को स्वयं सुनना तो गर्व की बात हुई, मुझे तो आपमें भी वही छवि नज़र आने लगी है अब आपके लिखे पन्नो में... जय भीम... "

आभार मित्रवर त्रय  आपका  और अन्य सभी का जिन्होंने पोस्ट को सराहा । आज संयोग से एक पुराना आई कार्ड और उपलब्ध हो गया उस ज़माने का तो अपनी फ़ोटो और यहां जोड़ रहा हूं । इसे उपलब्ध कराने के लिए अपने दोनों भाइयों का आभार भी व्यक्त करता हूं  । 

अब आपका और समय नहीं लूँगा  , किए  देता हूं ब्लॉग पोस्ट प्रकाशित ।

जय भीम !!

जयपुर 

शुक्रवार  १४ अप्रेल २०१७ .

------------------------जयपुर डायरी


Monday, 10 April 2017

बेदला से उदयपुर  : मूं  वेंड्यो कशान   ...  ?

बेदला से उदयपुर 😊😊

  #sumantpandya #उदयपुरडायरी


         😊😊बेदला से उदयपुर : “ मूं वेंड्यो कशान ? “ 👍👍

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   भोले ग्रामीण और उनके अनोखे तर्क , उनकी विशिष्ट अभिव्यक्ति मुझे बचपन से आकर्षित करती आई है . 

 ऐसी ही कई एक बातें उस दौर की याद आ जाती हैं जब 1962 - 63 के दौरान हम लोग उदयपुर में रह रहे थे . 

अधिकांश समय हम लोग रहे भूपालपुरा में जे रोड पर बाबूजी बोहत लाल जी धाकड़ के मकान में , अब तो बाबूजी और बाई जी दोनों ही स्मृति शेष हैं ,हमारे काकाजी और अम्मा भी नहीं रहे पर वहां की उस समय की कई बातें हैं , उदयपुर समय समय पर जाना हुआ तो भूपालपुरा में घूमते हुए बचपन बहुत याद आया .

एक दिन की बात :

**************** एक भोला ग्रामीण जो बेदला से सर पर एक खाट लादकर आया था , या कहिए खाट लादकर लाया था , आया और उसने खाट बाई जी को सुपर्द की , अब वो थोड़ा विश्राम करना चाहता था , खाट बेदला से बाबूजी के काको सा ने भिजवाई थी . 

उधर बाई जी अम्मा को बताने लगी :

 “ काको सा चालता आदमी हूं काम करावै .

  अरै तू उदयपुर जई रियो है कांई ?

 म्हारो मांचो परो लेई जा . “

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अर्थात :

    अरे तू उदयपुर जा रहा है क्या ?

 जा रहा है तो मेरी खाट वहां ले जा , पंहुचा दे .

इस प्रकार काको सा राह चलते आदमी को काम सौंप देते हैं .

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खैर खाट तो आ गई , डिलीवरी हो गई भूपालपुरा में और ये ग्रामीण बाई जी से बोला :

  “ वाहदे दे द्यो , वाहदे ! “

अभिप्राय था उसे बीड़ी सुलगाने को आग चाहिए थी . बाई जी ने अंगीठी से निकाल कर एक अंगारा उसे दे दिया चिमटे से उठाकर . बीड़ी तो उसने सुलगा ली पर बजाय एक तरफ करने के अंगारा फर्श पर ही छोड़ दिया और लगा बीड़ी पीने . इस बीच आते जाते उसी अंगारे पर बाई जी का पैर पड़ गया , पड़ गया फफोला और उसकी फर्स्ट एड करनी पड़ी . इस ग्रामीण को बाई जी बोलीं :

😊 “थां वेंड्या ही रह्या बा सा ! “

और इसके जवाब में बोला ये ग्रामीण :

😊 “ मूं वेंड्यो कशान ? मगरा मांय सार ( चार ) तो अंग्रेजी साय ( चाय ) पीन आयो हूं . “

माने वो मार्ग में चार अंग्रेजी चाय पीकर आया है तो भला पगला कैसे हुआ ?

बहुत याद आते हैं वे दिन और वे लोग .

अगला किस्सा होगा : " वेंड्यो ही रह्यो परताप सिंह " अगली किसी पोस्ट में .

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सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या 

 @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

 सोमवार 11 अप्रेल 2016 .

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जय भोले नाथ ।🔔🔔  गुलमोहर कैम्प से सुप्रभात 🌻

गए बरस आज के दिन भोले ग्रामीण की ये कहानी लिखी थी  । आज इसे ब्लॉग पर दर्ज कर रहा हूं , देखिएगा ।

अब अगला पड़ाव होगा नेहरू गार्डन में ...

शिवाड़ एरिया में भोर की सभा स्थगित .....

जयपुर 

मंगलवार ११ अप्रेल २०१७ .

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Sunday, 9 April 2017

आप बड़े कृपालु  : आपका अभिनंदन 🌺

आप से हम हैं  । क्यों ? अभी वो ही बताने जा रहा हूं ।






अभी थोड़े ही दिन हुए  ब्लॉग को देखने वालों की कुल संख्या चौदह हजार के पार चली गई है । आप में से कुछ लोग मिलते हैं तो ऐसा कहते हैं कि हम आपके ब्लॉग के साइलेंट विज़िटर्स  हैं । कोई बात नहीं आप छानै  छानै ही सही देखा करो ये ब्लॉग  । मैं आपके लिए ही लिखता हूं कि आपको अपनी सी लगे मेरी बातें ।

आप हैं तो हम हैं क्योंकि हम कोई अलग अलग थोड़े ही हैं । हमारा ब्लॉगर - पाठक का रिश्ता बना रहे । कभी कभार बताते भी रहा कीजिए कि आपको मेरा लिखा कैसा लगा ।

फिर एक बार आपका आभार और अभिनंदन ।🌺🌺

गुलमोहर कैम्प , जयपुर 

११ अप्रेल २०१७ .

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म्हे अ हैगा छां : जयपुर डायरी .

👍👍 “....... म्हे  अ हैगा छां ! म्हां नै  एक जोड़ …. दिवा ल्या .”  👌👌👌




  #sumantpandya   #जयपुरडायरी 




सत्ता परिवर्तन के बाद ठाकुर साब को  जब अपनी राजनैतिक सामर्थ्य के अनुरूप एक सम्मान जनक नियुक्ति का पत्र मिला तब की बात है  .




ठाकुर साब गांव से चलकर जयपुर आए और  पहुंचे गांव के एक पढ़े लिखे युवक के पास  और अपने हाथ का एक रुक्का दिखाकर जो कुछ बोले उसका अभिप्राय स्पष्ट ही है . वे बोले  :




☺” पिरोत जी का भाया  ! म्हे अ हैगा छां  , कोई न काम दे सकां छां  , कोई को भी एक्सक्लेशन ( explanation )   काल कर सकां छां  , तू चाल अर म्हां नै एक जोड़ धोती कुर्ता दिवा ल्या . “




पिरोत जी का भाया गए और उन्हें जोड़ दिवा लाए  और अगले दिन ठाकुर साब दल - बल सहित पहुंचे थे सहकारी क्षेत्र के एक बैंक के चेयरमैन का पद भार ग्रहण करने . बैंक का सारा अमला उनके स्वागत में खड़ा था .




बात तब खुद पिरोत जी का भाया ने ही हम लोगों को बताई थी और  संवाद के अनोखेपन के कारण बरसों पुरानी  बात आज दिन तक याद रही इस लिए मैंने इसे दर्ज करना मुनासिब समझा .




नमस्कार और गुड आफ्टर नून .

आपका क़िस्सागो :


नेहरू गार्डन से नमस्कार  🙏

जय भोले नाथ ।🔔🔔

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Friday, 7 April 2017

अटकने की आदत : स्मृतियों के चलचित्र 



अटकने की आदत : बनस्थली डायरी

अटकने की आदत :

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#sumantpandya #बनस्थलीडायरी


1.

  ये तो सुना हुआ वाकया है -

देहात के एक स्कूल में माट साब ने एक भोले से बच्चे से पूछा :

" च्यों रे तूने काजल नांय लगवायो ? "

( क्यों रे तू ने काजल नहीं लगवाया ? )


दूसरा बच्चा बताने लगा कि उसकी माँ पीहर गई हुई है .

" मास्टर जी जा की माई पीर गई है ."


तुरत मास्टर जी बोले :

"अरे तो बावरे , चाची पै ही लगवाय आतो !"

अर्थात पगले चाची से ही काजल लगवा आता .

मानो स्कूल आने के लिए काजल लगवाकर आना जरूरी हो .


मास्टर जी को अटकने की आदत जो थी .


2.

 मुझे लगता है उन्ही मास्टर जी की रूह कभी कभी मुझ पर भी काबिज होती है .

 एक बार की बात मैं जयपुर से बनस्थली के लिए सुबह की बस में यात्रा कर रहा था . सहयात्री युवक सुन्दर सूट पहने था और उसके पास सामान के नाम पर कुल एक बैग था जैसा मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के पास होता है .

थोड़ा समय बीता मैं अनायास उससे पूछ बैठा :


" एम आर हो ? "


वो बोला और स्वीकृति में सर भी हिलाया :

" जी , सर ."

मैं उन्ही मास्टर जी की तरह बोला:


" तो फिर... टाई क्यों नहीं लगाईं ? एम आर तो टाई जरूर लगाते हैं ."


वो युवक बताने लगा कि वो किसी समारोह में जा रहा था और इस लिए ड्यूटी वाला एटीकेट उस समय लाजिमी नहीं था .

वो मुझसे पूछने लगा :


"आप सर बनस्थली में काम करते हैं ?"

और यों बातों का जो सिलसिला शुरु हुआ वो रास्ते भर चलता रहा .

वही अपनी अटकने की आदत .


उपसंहार :

जब जब यात्रा में जीवन संगिनी साथ होती हैं तो मुझे इस प्रकार गैर जरूरी संवादों से बचाती हैं . ये एक मिसाल तो उस यात्रा की है जो मैंने अकेले की थी .

ऐसे एक आध संसमरण और लेकिन फिर कभी .....

इति .

जीवन संगिनी : Manju Pandya


#अटकनेकीआदत


#बनस्थली


सुप्रभात good morning .


सुमन्त

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

8 अप्रेल 2015 .

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आज का अपडेट :

दो बरस पहले भिवाड़ी में दर्ज किया था ये क़िस्सा । आज फ़ेसबुक ने याद दिलाया तो मुझे लगा इसे ब्लॉग पर दर्ज कर दिया जाए । आख़िर इस अटकने की आदत में तो इज़ाफ़ा ही हुआ है इधर साल दर साल ।

उठकर एक तो प्याला पीया काफी का  जो ये रहा और इस ब्लॉग पोस्ट को दर्ज कर दिया :



Good morning 

सुप्रभात 

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर ।

शनिवार ८ अप्रेल २०१७ .

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Wednesday, 5 April 2017

लट्टू हो गया : वाह क्या बात है ।😃


#sumantpandya 

लट्टू हो गया :😊 वाह क्या बात ! #sumantpandya

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“ सुमन्त काका ! वो उस दिन आपने मंजु काकी की फोटो भोत बढ़िया लगाईं , मजा आ गया देखकर ….।”

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अब मैं पूछता हूं :

   “ और जो उस फोटो बाबत मैंने लिखा वो भी देखा के नहीं ? “

जवाब :

“ वो हमने नहीं पढ़ा ...।”

चलो कोई बात नहीं इतना औसाण नहीं मिलता कि इबारत भी देखें , फोटो देख लेते हैं और सराहना करते हैं . 

धन्य मेरे भतीजे भतीजियों , शाबाश इस चाहत के लिए .

थोड़ा खतरा मोल लेते हुए कुछ तस्वीरें और और प्रकाशित किए देता हूं जिससे ये लोग देख सकें कि काका किस पे लट्टू हुआ था . 

अब ये तो बहरहाल सुनना पड़ेगा ही के फोटो क्यों लगा दी पर वो ही जवाब ,” आदत से मजबूर .”

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सुप्रभात 

टीका आमंत्रित :Manju Pandya.

सुमन्त पंड्या 

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

   बुधवार 6 अप्रेल 2016 .

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#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी 


आज का अपडेट :

Good morning & private coffee done @ Gulmohar . ☕

जय भोले नाथ ।🔔🔔

मिलेंगे नेहरू गार्डन में .

शिव मंदिर के चबूतरे पर ।


गुरूवार ६अप्रेल २०१७ .


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जयपुर ड़ायरी 

बनस्थली डायरी : प्रोफ़ेसर नवल किशोर आए : स्मृतियोंकेचलचित्र 


प्रोफेसर नवल किशोर : जब बनस्थली आए . 

**************** **************** #sumantpandya 😊😊😊

#बनस्थलीडायरी


एक दिन अनायास रोडवेज की बस से उतरकर प्रख्यात हिंदी आलोचक प्रोफ़ेसर नवल किशोर 44 रवीन्द्र निवास में हम लोगों के घर आ गए , अगले दिन बनस्थली के हिंदी विभाग में कोई आयोजन था उन्हें उसी में शामिल होना था . शायद बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक थी . आते ही बोले :

" मैं तो भाया जी के पास आया हूं , कल तक अपन बैठकर बातें करेंगे , मैं आ गया हूं ये बात हिंदी वालों को जाकर मत बताना . "


मुझे वे भाया जी कहकर ही बुलाते हैं , राजस्थानी का यह सम्बोधन मुझे भी प्रिय है . जब उन्होंने खबरदार ही कर दिया था तो मैं भला क्यों हिंदी वालों को जाकर बताता . अगले दिन बैठक का समय होने तक वे हमारे ही गोपन अतिथि रहे . इस अवधि में बतरस की गंगा लगातार प्रवाहित रही .


अगला दिन आया , वे जिस निमित्त से आए थे उसके लिए जाने लगे तो जीवन संगिनी ने कहा :


" भाई साब , दोपहर का भोजन भी आप यहीं करेंगे यह तय रहा ."


वे इसमे कुछ असमर्थता इस लिए भी बताने लगे कि चड़ीगढ़ के प्रोफ़ेसर यश गुलाटी भी आने वाले हैं तो वे उनका साथ देंगे और इसलिए संस्था की मेहमान नवाजी मे ही भोजन करेंगे . इस का भी समाधान ये निकाला गया कि वे भी दोपहर के भोजन में यहीं शामिल कर लिए जाएंगे . दोनों प्रोफेसरान को इधर लेकर आने की जिम्मेदारी पन्ना जी को दे दी गई और इस प्रकार हमारी एक और लंचन मीटिंग तय हो गई .


दोपहर भोजन पर प्रोफ़ेसर गुलाटी से नवल जी ने हम लोगों का परिचय कराया . वे मिल कर बहुत खुश हुए पर उन्होंने अपने को ख़ास तौर से भोजन पर बुलाए जाने का सबब पूछा और मैं अनायास कह बैठा :


" क्या बताऊं प्रोफ़ेसर साब , होने को तो अब मैं हिंदी वालों का बाप भी हूं , पर हिंदी वालों का एक पुराना कर्ज मुझपर बकाया है जिसे थोड़ा बहुत चुकाने का प्रयास करता हूं. "


भले प्रोफ़ेसर गुलाटी इसका निहितार्थ समझ अलवर के नंदकिशोर जी *और तत्कालीन प्रिंसिपल सांवल राम जी से अपने परिचय की बातें करने लगे . आखिर एक हिंदी वाले ने अपनी बेटी का विवाह मुझसे किया था . शायद इसी का असर है कि बेटे भी उसी विषय के मार्ग पर गए , अपने विषय में तो मैं सिर्फ बेटी को ही डाल पाया .

बनस्थली के दिनों और प्रोफ़ेसर नवल किशोर को बहुत याद करते हुए .

प्रति सेवा में प्रस्तुत : professNawalkishore Sharma

* हिमांशु के नाना .


समयाभाव के कारण आज की चर्चा यही. स्थगित करता हूं .

सह अभिवादनManju Pandyadya .


सुप्रभात . Good morning.


सुमन्त

आशियाना आँगन . भिवाड़ी .

6 अप्रेल 2015 .

फोटो का श्रेय : पल्लव Pallav Banaas Jan

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👌👌👌👌👌

 ये पोस्ट गए बरस भिवाड़ी में बैठे लिखी थी , आज फेसबुक ने ये बात याद दिलाई .

इस पोस्ट को तो कुछ रत्न जड़कर मैं नए सिरे से अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करूंगा .

जयपुर 6 अप्रेल 2016 .


#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी #बनस्थलीडायरी


आज का अपडेट :

Good morning & private coffee done @ Gulmohar . ☕

जय भोले नाथ ।🔔🔔

मिलेंगे नेहरू गार्डन में .

शिव मंदिर के चबूतरे पर ।


गुरूवार ६अप्रेल २०१७ .

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Tuesday, 4 April 2017

ब्लॉग पर दर्ज : बनस्थली डायरी - स्मृतियों के चलचित्र ।❤️❤️

Good morning . Private coffee done @ 😊 Gulmohar , jaipur . 

(1)

  पहली फोटो का इतिहास - जिन दिनों जय और छुटकू फोटोग्राफी का अभ्यास किया करते रहे थे तब " पापा इस्माइल " कहे के जवाब में ये थी मेरी फरमाइशी मुस्कराहट .

(2)

   दूसरी एक यादगार फोटो है बनस्थली के 44 रवीन्द्र निवास के बाहर के गुड़हल के साथ हम दोनों की .

इसे कहते हैं : गुनाह बेलज्जत ! ये तो मुझे ज्यादा तस्वीरें साझा करने को मने करती हैं .और मुझे जाने क्या हो गया है मेरा मन करता है अलग अलग काल खंड की तस्वीरें साझा करने को .

सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या .

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

5 अप्रेल 2016 .*******


चलता हूं , लौटके मिलता हूं , बाय !

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आज का अपडेट :

गए बरस की पोस्ट है  । जस की तस ब्लॉग पर टीप दी है ।

सनद रहे वक़्त ज़रूरत काम आए ।

जयपुर 

बुधवार ५ अप्रेल २०१७ ।



पहली दूसरी फ़ोटो का क्रम उलट पलट हो गया है पर बात तो स्पष्ट है और क्या फरक पड़ता है वैसे भी ।

नमस्कार 🙏

५ अप्रेल २०१७ .

Monday, 3 April 2017

बनस्थली डायरी : गोपाल नायक के बारे में ✅

#स्मृतियोंकेचलचित्र


बनस्थली की बातें क्रम में : गोपाल नायक के बारे में . एक .


उन्नीस सौ चौरासी का साल .

समय : गर्मी की छुट्टियां .

स्थान : बनस्थली विद्यापीठ .

यह कुछ ऐसा दौर था जब घोषित रूप से बनस्थली विश्वविद्यालय तो बन चुका था और रूपांतरण का दौर चल रहा था . पहली जरूरत के तौर पर नए पाठ्यक्रम बनाए जा रहे थे . बाहर से आए नामचीन लोग इसमें मददगार बने थे . स्थानापन्न गेस्ट हाउस के तौर पर ये लोग पर एक छात्रावास में ठहरे हुए थे और इधर ज्ञान मंदिर में पाठ्यक्रम समिति की बैठकें चल रही थीं .

उस दिन दोपहर को बातें करते करते पांच प्रोफेसरान मेरे साथ 44 रवीन्द्र निवास आ गए , इनमे विविध विषयों के लोग थे . जून का महीना , सब कोई गर्मी से बेहाल . कमरे का पंखा खोल दिया पर राहत न मिली, मैं उनके स्वागत के निमित्त रसोई और कमरे के बीच आ जा रहा था . इस बीच बिजली भी आ जा रही थी .एक फ्रोफेसर बोले :


" सुमन्त , बुरा न मानो तो मैं अपना कमीज उतार दूं , गर्मी बहुत है ."


मैं ने तुरंत उन्हें हैंगर दे दिया और कहा :

" अपन ही अपन हैं , इसमे बुरा मानने की क्या बात है ?"


हुआ ये कि थोड़ी देर में सबके कमीज हैंगरों पर टके हुए थे , सिवाय एक के जिन्होंने पसीने से भीगा कमीज धो ही डाला था और चौक में सुखा दिया था . उस दिन शाम की बैठक में वो प्रोफ़ेसर मेरा ही कमीज पहन कर गए , मुझे उनका ये अंदाज बड़ा बढ़िया लगा .


इस परिघटना के बाद मैं अपने दफ्तर के सर्वेसर्वा अधिकारी भंवर लाल जी , जो अब असिस्टेंट रजिस्ट्रार या शायद डिप्टी रजिस्ट्रार बन गए थे , के पास गया और पूरी आप बीती सुनाई . साथ ही एक मांग भी रखी कि मेरे घर 44 रवीन्द्र निवास के बाहर आवश्यक रूप से एक नीम का पेड़ होना चाहिए जिसकी छांव में खाट डाली जा सके और बैठा जा सके . भंवर लाल जी ने मुझे इस विषय में आश्वस्त किया लेकिन साथ ही कहा :


" आपकी तो नायक से दोस्ती है , इस में मैं क्यों बीच में पड़ूं , आप सीधे नायक से कहो , वो लगा देगा आपके यहां नीम का पेड़ ."


 और इस प्रकार मेरी नीम के पेड़ की स्वैर कल्पना प्रारम्भ हुई जिसे साकार किया मेरे अभिन्न मित्र गोपाल नायक ने .


अभी तीन दिन पहले जब उड़ीसा दिवस की बात आई तो मुझे गोपाल नायक बहुत याद आए और साथ ही याद आए वो एक नहीं दो नीम , जो आज भी उस परिसर में 44 रवीन्द्र निवास के बाहर लगे हुए हैं . 

गोपाल नायक उन दिनों वहां गार्डन सुपरिंटेंडेंट हुआ करते थे और मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे .एक एक करके दो नीम मैं उन्हीं से मांग कर लाया था और घर के बाहर लगाए थे , जो आज भी उस परिसर में हैं .


बनस्थली की मधुर स्मृतियों के साथ .


समर्थन : Manju Pandya


#बनस्थली


#गोपालनायक


सुप्रभात . Good morning .


सुमन्त 

आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

शनिवार 4 अप्रेल 2015 .

ब्लॉग पर दर्ज :   मंगलवार ४ अप्रेल २०१७ 

#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #गोपालनायक 


आज का अपडेट :

आज ये किस्सा अपने ब्लॉग पर दर्ज करूंगा ।

अभी हाल की गतिविधि :

Good morning & private coffee done @ Gulmohar ☕

जय भोले नाथ ।🔔🔔

राम नवमी 

४ अप्रेल २०१७ .