Tuesday, 14 November 2017

" बीड़ी पिला ! " : भरतपुर डायरी .

मैं पिछले दिनों जब बच्चों के दबाव के चलते भरतपुर आगरा और फतेहपुर सीकरी जाकर आया तो  एक रात भरतपुर में बिताई । भरतपुर जाकर बरसों पहले की एक रात की बात याद हो आई  ।मैं अकेला वहां गया हुआ था और प्रभावती जीजी और परमानंद जीजाजी के पास बासन दरवाजे के पास  उनके  घर पर रुका था ।

थोड़ा पात्र परिचय दे दूं  । जीजाजी आयुर्वेद विभाग में वैद्य थे और जीजी प्राइमरी स्कूल की प्रिंसीपल /   प्रधानाध्यापिका थीं । उदयपुर में वसुधा के विवाह में जब प्रभावती जीजी गयीं थी , वर आर ए एस था अतः सारा जिला प्रशासन भी वहां और मेहमानों के साथ उपस्थित था , कलेक्टर साब ने अपने पी ए को भेज कर प्रभावती जीजी से मिलने का समय मांगा । इन्हें आश्चर्य हुआ भला कलेक्टर साब को उनसे मिलने का क्या काम आ गया  । खैर कलेक्टर साब सामने आए और बरसों पुरानी एक बात पूछी  कि क्या आपको याद है कि स्कूल जाते समय रास्ते में एक धोबी धोबिन के लडके को आग्रह करके अपने साथ ले जाती थीं और पढने को  मजबूर कराती थीं । उन्हें घटना याद थी और पता लगा कि उनका   वही लड़का  उदयपुर का तत्कालीन कलेक्टर था ।            एक बार प्रभावती जीजी और जीजाजी बनस्थली आये तो पता लगा कि बाल्य काल में उन्होंने  अरुणा  वत्स को भी पढ़ाया था । अरुणा वत्स ने उन्हें दावत पर बुलाया  ।  खैर ये तो उनके  परिचय की ही बात हुई :

आगे की बात जब मैं उनके घर ठहरा था । घर की बनावट उस समय तक ऐसी थी कि पीछे का हिस्सा खुला हुआ था । चौक से सीढियां उतरतीं थीं । पीछे छींपी  मोहल्ला था ।  छीपी मोहल्ले में दो व्यक्ति शायद कुछ नशे में लड़ने लगे और लड़ाई हिंसक हो गयी । मेरा वहां जाकर अटकने का मन था अतः मैं उधर जाने को सीढियां  उतरने लगा ।  जीजाजी बोले ,'  मरने दे इनको तू मत जा । ' उन्हें लगता था साला बिला वजह इनकी लड़ाई में उलझकर घायल हो कर आएगा । मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा और झगड़ा सुलटवाकर आवूंगा ।

खैर मैं गया मैंने उसके कंधे पर पीछे से हाथ रखा जो उसर रहा था और दूसरे पर वार कर रहा था । उसने मुड़कर पीछे देखा । उसकी आँखों में सवाल था । मैंने तत्काल कहा ' बीड़ी पिला ।'  उसने ऊपर की जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला  बगल की जेब से माचिस की पेटी निकाली और मुझे देने लगा । नहीं, मैंने कहा कि सुलगा कर दे । अब उसने दो बीड़ी निकाली माचिस की तीली निकाली  बीड़ी को हथेली की ओट में लेकर तरीके से बीड़ी सुलगाई । सुलगी बीड़ी एक उसके हाथ में एक मेरे हाथ में और संवाद शुरू हुआ "  कौन गांव ? मैं अपने बारे में बताता रहा  बीड़ी का धुआं उल्टे उसी के मुंह पर उडाता रहा जिससे उसे कुछ असुविधा ही हो रही थी पर भला मुझसे क्या कहता । मैं तो मेहमान था ।

आज प्रभावती जीजी और परमानंद जीजाजी भी नहीं रहे मेरे विभाग की डॉ अरुणा वत्स भी नहीं रही पर ये बातें मुझे याद आती हैं । उस दिन तो जैसा मैंने जीजाजी को भरोसा दिलाया था  झगड़ा सुलटवाकर सुरक्षित लौट आया था ।

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ब्लॉग पर प्रकाशित —

जयपुर

मंगलवार १४ नवम्बर २०१७ .

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