चलो घूमने चलते हैं ..... ब्रदर बोले थे
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बनस्थली की एक शाम ब्रदर ( डाक्टर शिव बिहारी माथुर ) मेरे घर आये , वही 44 रवीन्द्र निवास , और बोले ,' निगम साब के साथ घूमने चलना है , आ जावो ।'
निगम साब को वो सड़क पर छोड़ कर आये थे और इधर गली में मुड़कर मुझे साथ लेने आये थे । अपना काला कोट पहन कर मैं भी साथ हो लिया । गली से निकलकर हम दोनों निगम साब के साथ हो लिए और सीधी सड़क पर पूर्व दिशा की ओर चल पड़े , मेरे अभिवादन के साथ ही बातचीत होने लगी ।........
पात्र परिचय :
निगम साब उस जमाने में राजस्थान कालेज में इकॉनॉमिक्स पढ़ाया करते थे जब यह कालेज नया नया बना था । राजस्थान कालेज की यह प्रतिष्ठा थी कि श्रेष्ठ अंक अर्जित करने वाले विद्यार्थियों को ही प्रवेश दिया जाता था और ब्रदर उसी जमाने के निगम साब के विद्यार्थी थे । इकॉनॉमिक्स उनका विषय भी रहा था । कालान्तर में निगम साब राजास्थान कालेज के डायरेक्टर बने __ पहले डिप्टी डायरेक्टर और शंकर सहाय सक्सेना साब के रिटायरमेंट के बाद डायरेक्टर । जिस शाम का मैंने जिक्र चलाया है उन दिनों वह राजस्थान विश्वविद्यालय से रिटायरमेंट के बाद बनस्थली में प्रोफ़ेसर एमेरिटस के रूप में बनस्थली आये हुए थे उद्बोधन मंदिर , अरविन्द निवास में ठहरे थे जो विशिष्ठ व्यक्तियों के लिए स्थानापन्न गेस्ट हाउस बनाया हुआ था । शाम को घूमने जाते तो अपने पुराने छात्र को साथ ले जाते थे । कुछ बात चलेगी तो मैं भी बात में बात मिला दूंगा , यही सोचकर ब्रदर मुझे साथ ले गए थे ।
मैं भी बाद की पीढ़ी का वह छात्र था जो राजस्थान कालेज में तो पढ़ा था पर इकॉनॉमिक्स मेरा विषय नहीं रहा था इसलिए मेरा निगम साब से वैसा संपर्क नहीं था जैसा ब्रदर का था । इसी लिए आते जाते कभी निगम साब से अटका भी नहीं था । राजस्थान कालेज छोड़े भी तब मुझे कोई बीस वर्ष से अधिक हो गए थे ।
आज अचानक वो भागवत मुहूर्त्त आ गाया था कि मैं निगम साब के साथ सड़क पर चल रहा था । ब्रदर ने निगम साब को कहा , ' डा.साब ये भी राजस्थान कालेज के / से ही हैं ।' और मेरा नाम बताया , या शायद मैंने ही अपना नाम बताया कि निगम साब ठहर गए मेरे कंधे पर हाथ रखा , उनका स्नेहालिंगन् मुझे प्राप्त हुआ और बोले :' अरे तुम तो राजस्थान कालेज के बेस्ट डिबेटर हुआ करते थे । ' मुझे लगा गुरु जी ने फिर एक बार मुझे पुरुस्कार दे दिया है
कहां गया वो समय , कहां गए वो लोग ? निगम साब भी नहीं रहे , ब्रदर भी नहीं रहे , स्मृतियां शेष हैं और शेष हैं स्मृतियों के चलचित्र !
मैं भी अध्यापक रहा मैंने भी छात्राओं को पढ़ाया , बाद में मिलने पर खट्टे मीठे सभी प्रकार के अनुभव हुए पर उनके बाबत फिर कभी.........
अपने सेवाकाल को याद करते हुए ....
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संस्मरण ब्लॉग पर प्रकाशित
जयपुर
१५ नवम्बर २०१७ .
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