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#लम्बरदार_स्कूल_की_याद : भाग एक .#स्मृतियोंकेचलचित्र #उदयपुरडायरी #sumantpandya
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बचपन में कक्षा दस और थोड़े समय कक्षा ग्यारह में मैं उदयपुर के ऐतिहासिक लम्बरदार हायर सैकेण्डरी स्कूल में पढने गया , जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो उस दौर की एक एक बात याद आती है . किस तरह वहां मेरा दाखिला हुआ और कैसे वो स्कूल मुझे अगले सत्र के बीच में छोड़ना पड़ा उस बारे में एक एक बात याद आती है और कुछ बातें याद करके तो मुझे आज दिन तक आश्चर्य होता है . उस दौर के सहपाठी दोस्तों को मैं आज दिन तक याद करता हूं . उस दौर के साथियों में से एक स्कूल की पढ़ाई के कोई एक दशक बाद फिर मिले थे जो अब भी मेरे संपर्क में हैं , वो खुद ही मेरी समझ से बोल पड़ेंगे जब ये यादगार सिलसिला आगे बढ़ेगा .
उस दौर के मेरे अध्यापकों और प्रधानाध्यापकों को आज दिन तक याद करता हूं , कुछ एक से बाद में मिलना भी हुआ . कैसे अलग थे वो लोग , किस मिट्टी के बने थे वो लोग , आज स्कूल शिक्षा और ख़ास तौर से सरकारी स्कूलों के हाल बेहाल देखकर मुझे बरबस वे दिन और वे लोग याद आ जाते हैं .
और भी संस्मरण हैं बताने लायक : पर अभी नहीं .
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किस तरह मैं राजनीतिशास्त्र विभाग में पढ़ने गया वो भी कोई कम रोचक कहानी नहीं है पर वो अगले दौर में आ ही जाएगी , अभी तो लम्बरदार स्कूल की ही बात करते हैं , उस दौर की स्कूल शिक्षा की ही बात करते हैं .
वर्ष उन्नीस सौ बासठ की बात ~
--------------------------------- कुछ दिनों पहले मैंने अपनी वो तस्वीर अपनी फेसबुक दीवार पर इस आशय से टांकी थी कि स्कूल के जमाने के मेमोयर्स लिखूंगा, वो तस्वीर जो पहली बार बोर्ड परीक्षा के फार्म में चिपकाई गई थी . पर शायद वो फजूल की लगाईं उसमें तो मैंने कोट पहना हुआ है और उस बात की कोई विशेष पुष्टि नहीं होती जो मैं बताने जा रहा हूं . जब वो बात खुलेगी तो आप भी बोलोगे ,” ऐसा भी होता है !”
उदयपुर के लम्बरदार स्कूल में दाखिले की नौबत क्यों आई ये भी बताना पड़ेगा पर अभी हाल सीधे हैड मास्टर साब के कमरे की घटना पर आ जाते हैं . बात सत्रारम्भ जुलाई उन्नीस सौ बासठ की है ~~~~
प्रवेश आवेदन ~
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तत्कालीन लम्बरदार हायर सैकेंडरी स्कूल के बड़े से प्रवेश द्वार में घुसते ही दायें हाथ को ऊंचे से लंबे चबूतरे पर पहला ही कमरा हैड मास्टर साब का था , श्री गोपाल लाल शर्मा हैड मास्टर थे , जीजाजी मुझे स्कूल में दाखिल करवाने गए थे . कक्षा नौ की अंकतालिका और कक्षा दस में दाखिले का फ़ार्म हैड मास्टर साब की टेबिल पर था . मैं हैड मास्टर साब की टेबिल के नजदीक एक स्टूल पर बैठा , एकदम जैसे डाक्टर को दिखाने के लिए मरीज बैठता है . उन्होंने फ़ार्म देखा और मुझपर नजर डाली और एक बार को जो निर्णय सुना दिया उससे तो मेरा उत्साह ही ठंडा पड़ गया . हैड माट साब बोले :
“ इसे मैं नवें दर्जे में ही दाखिला दे पाऊंगा , इतना कमजोर बच्चा दसवें दर्जे की पढ़ाई कैसे कर पाएगा …. .? “
असल में दसवें की पढ़ाई के लिए लडके को जैसा हृष्टपुष्ट होना चाहिए था उस मानक से मैं तो बहुत दूर था .
बात थोड़ी लंबी चली हैड माट साब और जीजाजी के बीच और कैसे पसीजे हैड माट साब ये भी बताऊंगा , असल में उस समय उस स्कूल में दसवां दर्जा भी तो दो तरह का होता था तो डील डौल में तो दसवें दर्जे लायक लड़कों में मैं कहां ठहरता इसलिए हैड माट साब जो बोले वो समझ में आता है .
वे दिन और वे लोग बहुत याद आते हैं . उन दिनों को याद करते हुए..
प्रातःकालीन सभा स्थगित…
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सुमन्त पंड्या
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आप की सुविधा के लिए साझा करने का प्रयास जीवन संगिनी
Manju Pandya #मंजु
@ आशियाना आंगन, भिवाड़ी .
5 नवम्बर 2015 .
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आज ब्लॉग पर प्रकाशित —
जयपुर
रविवार ५ नवम्बर २०१७ .
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