........नहीं हैं तो करना ही क्या है ?
पिछली शताब्दी ( सहस्राब्दी भी ) के अंत में हम लोग शहर के पैतृक आवास से चलकर बापूनगर में रहने आये तब की बात है । आ तो गए थे पर जुड़ाव नाहरगढ़ रोड़ और चांदपोल बाजार से ही था , आज भी है । मेट्रो की तैयारी के नाम पर शहर खुद रहा है पर वहां जाने को मन करता है चाहे यातायात में कितनी ही दिक्कत आये । खैर ये तो तब की बात है जब यह उत्पात नहीं था ।
नाहर गढ़ रोड़ के नुक्कड़ पर न्यूं लक्ष्मी जनरल स्टोर हुआ करता था जिसका मालिक उस समय गोवर्धन था । इससे दो पीढ़ी का चला आ रहा रिश्ता था जब गोवर्धन के पिताजी दूकान पर बैठा करते थे तो काकाजी * भी उसके यहां से सामान खरीद कर लाते थे । अब हम लोग सामान खरीदते थे । उसे हमारी जरूरतों का भी पता होता घर में टूथ पेस्ट बीत रहा है और भाई लेने पहुंचा तो वो ये भी बता देता ,' ये रहने दो भाई साब पहले ही ले जा चुके हैं ।'
शहर से बापूनगर आते हुए छोटा भाई विनोद Vinod Pandya , बहुतेरा सामान इकठ्ठा खरीदकर ला रहा था । जेब में थे वो पैसे कम पड़ गए । उसने सोचा कुछ आयटम कम कर दूं जितने पैसे हैं उतने का ही सामान ले चलूं । इस सोच के चलते हजामत के सामान में से एक मंहगा रेजर गोवर्धन को लौटाया कि रकम कम हो जाए । ये रहने दो फिर कभी ऐसा कहा ।
खैर ये तो बात थी विनोद की तरफ से । अब बारी थी गोवर्धन के बोलने की और वो बोला : साब इसे क्यों छोड़ जाते हो यही तो एक पुरुषों का सौंदर्य प्रसाधन * * है ।.... रही बात पैसों की तो अगर आप हैं और हम हैं तो ये गए ही कहां हैं ...... और अगर नहीं हैं तो इनका करना ही क्या है ? खैर विनोद ने वो सामान भी ले लिया जो वो छोड़ रहा था ।
अब तो हम लोग भी जनता स्टोर , बापू नगर और टोंक रोड़ के ग्राहक बन गए , गोवर्धन ने नुक्कड़ की वो दूकान छोड़ दी , बेटे को अशोका नाम से एक और दूकान खुलवा दी और खुद रिटायरमेंट ले लिया ।
उसकी तब की कही दो बातें - पुरुषो का प्रसाधन और जेब में पैसा बाबत मुझे याद रहीं , विनोद भी अवश्य इसकी पुष्टि करेगा ।
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पुराना संस्मरण सर्वानुमति के आधार पर आज ब्लॉग पर प्रकाशित —
जयपुर
मंगलवार १४ नवम्बर २०१७ .
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