लम्बरदार स्कूल की याद : भाग पांच ~ प्रधान मंत्री की विदाई . ..#लम्बरदार_स्कूल_की_याद
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विगत अक्टूबर माह में मैंने सत्र 1962 -63 की अपनी स्कूली शिक्षा के संस्मरणों पर आधारित पोस्ट लिखना प्रारम्भ किया था . केवल मोटा मोटी कुछ बातें ही बताई थीं चार कड़ियों के अंतर्गत और फिर वो क्रम छूट गया था . दीपावली आते आते घरेलू व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई थीं और पुराने काल खंड के बारे में सोचने का समय ही नहीं था .
इस प्रसंग में बहुत सी छोटी छोटी बातें हैं बताने लायक , दिखाने लायक . उस बाबत बहुत सी सामग्री मेरे तीर्थ ( मेरे जन्म स्थान , पैतृक आवास ) में रखी है . अगली तीर्थ यात्रा के बाद वो भी यहां फेसबुक पर जोड़ूंगा , आप को दिखाऊंगा , अभी यहां भिवाड़ी में बैठे एक प्रसंग के बारे में सोच पा रहा हूं और वो ही बताने जा रहा हूं .
अगला सत्र :
~~~~~~~ अगला सत्र उन्नीस सौ तिरेसठ चोंसठ प्रारम्भ हो गया , नए सत्र में संसद और मंत्रिमंडल का नए सिरे से चुनाव होता इस से पहले ही एक नई परिस्थिति उत्पन्न हो गई जिसके चलते मेरा स्कूल छोड़ना लाजमी हो गया अन्यथा मेरे रहते प्रधान मंत्री पद का कोई अन्य दावेदार नहीं था .
स्कूल प्रशासन में शीर्ष पर भी महत्वपूर्ण बदलाव ये हुआ था कि श्री गोपाल लाल शर्मा , हैड मास्टर साहब का तबादला हो गया था उनका विदाई समारोह आयोजित करने का जिम्मा मैंने ही निभाया था . नए हैड मास्टर साहब श्री बी पी जोशी आए थे , जिन्हें उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उसी वर्ष राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला था . जोशी जी की भी पुराने हैड मास्टर साब की तरह मुझपर वैसी ही छत्र छाया थी .
काकाजी ( हमारे पिताजी ) का ट्रांसफर अजमेर का हो गया . परिवार को अजमेर जाना था और इस लिए मेरे टी सी के लिए स्कूल में आवेदन दिया गया . ये बात मेरे लिए सुखद नहीं थी और न ही सुखद थी मेरे अध्यापकों और साथियों के लिए . हैड मास्टर साहब को अध्यापकों और साथियों की ओर से ये सुझाव मिला कि प्रधान मंत्री की विदाई पार्टी आयोजित होनी चाहिए और उसे उन्होंने मान लिया .
आखिर जिस दिन मुझे परिवार के साथ अजमेर जाना था उसके पहले दिन उधर काकाजी अपने ट्रेजरी ऑफिस विदाई पार्टी के लिए गए और मैं अपने स्कूल गया विदा होने .
मेरे समझ कितनी थी इसका अनुमान आज मैं स्वयं लगा सकता हूं . विदाई पार्टी में मेरे एक अध्यापक एक मुहावरा बोले थे और मैंने घर आकर उसका अर्थ अपने घर वालों से पूछा था . मुहावरा था,” होनहार बिरवान के होत चीकने पात .” अब आप भी अनुमान लगा लीजिए .
बहरहाल मुझे साथियों ने और अध्यापकों ने भाव विभोर कर दिया था . इतनी मालाओं से मुझे लाद दिया था कि अगर उस दिन स्कूल सायकल न ले गया होता तो घर भी कैसे लेकर आता . मेरे घर वाले सब ये देखकर चकित थे कि जितनी मालाएं ट्रेजरी से लौटने पर काकाजी की सायकल के हैंडिल पर टंगी थी लगभग उतनी ही मालाएं स्कूल से लौटने पर मेरे साथ थीं .
मेरा स्कूल छूटने के साथ ही प्रधान मंत्री के रूप में कार्यकाल भी समाप्त हो गया था . वो एक ऐसा शैक्षिक सत्र रहा जिसके दौरान मैं एक एक कर तीन शहरों के तीन स्कूलों में पढ़ने गया था .
पहले अजमेर और उसके कुछ महीनों बाद जयपुर पहुंचने के बाद भी लम्बरदार स्कूल के छात्र साथियों से मेरा पत्र व्यवहार और संपर्क रहा .
मेरे ही मंत्रिमंडल का एक साथी नेमुद्दीन मेरे बाद प्रधान मंत्री बना ये भी एक साथी ने मुझे पत्र में लिखा था .
अभी हाल के लिए बचपन के उन सुनहरे दिनों को याद करते हुए
प्रातःकालीन सभा स्थगित ….
सुप्रभात .
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सुमन्त पंड्या
सह अभिवादन Manju Pandya
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@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी
1 दिसंबर 2015.
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आज का अपडेट : बुधवार 9 नवम्बर 2016 .
गए बरस इस संस्मरण की जो पांच कड़ियां मैंने लिखी थी उनमें ये आखिरी कड़ी है . चर्चा में तारतम्य बना रहे इस नाते आज इसे फिर से प्रकाश में लाने का प्रयास कर रहा हूं .
और बहुत कुछ है बचपन के उन दिनों के बारे में बताए जाने लायक पर उसके लिए अलग पोस्ट ही बनेगी .
सुप्रभात 🌹
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
बुधवार 9 नवम्बर 2016 .
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लंबरदार स्कूल विषयक इस संस्मरण की पाँचवीं कड़ी आज ब्लॉग पर प्रकाशित -
जयपुर
गुरुवार ९ नवम्बर २०१७ .
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