Friday, 24 November 2017

बोध कथा :  “ होयली तो अब “

बोध कथा : " ....होयली तो अब ! "

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भिवाड़ी से नमस्कार 🙏🌻


आज एक राजस्थानी बोध कथा का उल्लेख करता हूं और इसकी व्याख्या के अधिकार सार्वजनिक करता हूं , वैसे भी किसी लोक कथा पर मैं कौनसा एकाधिकार जता सकता हूं .


मैं एकाधिकारवादी सोच का अनुयायी नहीं हूं , आप तो जानते ही हैं .


कथा प्रारम्भ :

********* कथा एक तांत्रिक की है जो श्मशान में जाकर जाने क्या क्या विचित्र साधना किया करता था और उसकी स्त्री इन सब गतिविधियों से दुखी रहा करती थी जो बड़ी स्वाभाविक सी बात है .


यहां तक तो बात बड़ी तार्किक है , ऐसे विचित्र लोग होते हैं और ऐसे में दुखियारी स्त्रियां होती हैं , समझ में आने वाली बात है .


तर्क से न समझ में आने वाली बात आगे आएगी वही बताने का प्रयास करता हूं .


क्या हुआ आगे ?

----------------- एक दिन तांत्रिक को श्मशान में एक खोपड़ी मिली जिसके भाल - कपाल पर ये अंकित था :


      " हुई तो कांई छै होयली तो अब ! "

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( अर्थात् अभी तो क्या हुआ है , होगा तो अब )


वैसे तो हिन्दू अंतिम संस्कार में खोपड़ी की कपाल क्रिया कर ही देते हैं , खोपड़ी साबुत बचती ही नहीं . आश्चर्य था कि खोपड़ी साबुत थी . पर ऐसा भी खैर हो सकता है .


तांत्रिक को कौतुक हुआ कि अब आगे की होनहार क्या है ? और इसी कौतुहल के चलते वो तांत्रिक उस खोपड़ी को अपने साथ घर ले आया और एक ऊंचे आले पर रख दिया .


ऐसे जोड़े में गृह कलह तो स्वाभाविक है . आदमी तंतर - मंतर करता हो तो औरत कैसे सुखी रहेगी भला ?


एक दिन की बात : क्लाइमैक्स ऑफ द स्टोरी 💐

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औरत घर की कुछ साफ़ सफाई कर रही थी और उसी दौरान उसे ऊंचे आले पर रखी वो खोपड़ी मिल गई . अब उसका भी क्रोध जागृत हो गया . उसके क्रोध की वजह साफ़ थी कि अब तक तो ये आदमी श्मशान में जाकर ही तंत्र साधना किया करता था , अब जब उसने ये खोपड़ी घर ला रखी है तो वो अवश्य ही घर की स्त्री पर कोई तंत्र आजमाएगा .


क्यों आजमाए वो घर की स्त्री पर तंत्र ?


उस स्त्री ने अपने ढंग से आसन्न संकट का समाधान कर दिया .

उसने इमाम दस्ते से कूट पीट कर उस खोपड़ी का चूरा कर दिया और उसे तारत में फेंक आयी .

बिधना के लेख को कौन टाल पाया है .😢


राजस्थानी बोध कथा के लोकार्पण के साथ ही  

प्रातःकालीन सभा स्थगित .....


नोट : कुछ डिस्क्लेमर जोड़े जाने हैं जो अगले संशोधन में जोडूँग .


- सुमन्त पंड्या .

@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

    शुक्रवार 25 नवम्बर 2016 .

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गए बरस भिवाड़ी में थे तब लिखी थी ये राजस्थानी बोध कथा . आज इसका ब्लॉग पर प्रकाशन और लोकार्पण किए देता हूं .

जयपुर 

शनिवार २५ नवम्बर २०१७ .

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2 comments:

  1. गुरुवर , क्षमा कीजियेगा । हम इस कथा का अंत समझ नही पाए ।

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    1. अंत तो स्पष्ट ही है , इसमें और कहने को कुछ बचा नहीं है अंकित .

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