Sunday, 5 November 2017

लम्बरदार स्कूल की याद -- भाग दो -- उदयपुर डायरी .

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#लम्बरदार_स्कूल_की_याद : भाग दो .


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कल मैंने अपने स्कूल की यादों का सिलसिला शुरु किया था , आज इसे आगे बढ़ाता हूं .

दाखिले की पृष्ठभूमि :


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काकाजी * का ट्रान्सफर  उदयपुर का हो गया था , वो उदयपुर के ट्रेजरी ऑफिसर बनाए गए थे . जीजी जीजाजी और उनके दो बच्चे पहले से ही उदयपुर में थे . बीते सत्र में हम तीन भाई अम्मा के साथ जयपुर में रहकर पढ़ रहे थे , बदले हालात में पूरे परिवार के उदयपुर में जा बसने का निर्णय लिया गया . इसी क्रम में मेरी पांती में उदयपुर का लम्बरदार हायर सैकेण्डरी स्कूल आया दाखिले के लिए , आखिर पढ़ाई तो आगे जारी रहनी ही थी . छोटा भाई पड़ोस के मिडिल स्कूल में भर्ती करवाया गया और बड़े भाई कालेज में .


काकाजी दफ्तर में व्यस्त थे और इसलिए जीजाजी मुझे स्कूल में भर्ती करवाने गए थे . उस समय जीजाजी एम बी कॉलेज में प्राध्यापक थे और जीजी मीरां गर्ल्स कॉलेज में .

लम्बरदार स्कूल की बात :


---------------------------  यह स्कूल हाई स्कूल से हायर सैकेंडरी स्कूल बनाया जा रहा था . नए कोर्स के हिसाब से तीन वर्ष के हायर सैकेंडरी कोर्स की दसवीं कक्षा के लिए मेरा प्रवेश आवेदन पत्र था जो हैड माट साब के विचाराधीन था .

दो प्रकार की दसवीं क्लास .


----------------------------- दसवीं क्लास के भी कई सैक्शन थे उनमें वो भी थे जो पिछली मैट्रिक परीक्षा में फेल विद्यार्थी थे और पुराने पाठ्यक्रम से ही फिर पढ़ाई कर रहे थे . इनमें कुछ एक बहुत अच्छे खिलाड़ी भी थे और वो भी स्कूल के लिए कीमती थे . उनका डील डोल ही हैड माट साब के ध्यान में था और इसलिए वो मुझे एक कमजोर लड़का मान रहे थे .

कैसे माने हैड माट साब ..


~~~~~~~~~~~~~~  जब हैड माट साब ने मुझे फिर से नवें दर्जे में भर्ती करवाने की बात की तो जीजाजी ने एडमिशन फॉर्म के साथ नत्थी नवें दर्जे की मार्कलिस्ट को उनके सामने रखा जिसमे प्रथम श्रेणी , कक्षा में पहला स्थान और अधिकांश विषयों में विशेष योग्यता का उल्लेख था .


आखिर हैड माट साब मान गए और मेरा दाखिला हो गया . मैं अपनी पढ़ाई में लग गया . मेरी ज्यादा  कोई जान पहचान नहीं थी मैं स्कूल में नया नया था , लेकिन तभी एक अवसर आया , ऐसा आया कि लोग मुझे जानने लगे . क्या था  वो अवसर वही  बताने जा रहा हूं . ये केवल तब की बात नहीं है ये तो अब की भी बात है कि कोई कारण बन जाता है ऐसा कि अनायास बहुत से लोगों से जान पहचान हो जाती है .

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी .


-------------------- ये ही कोई अगस्त का महीना रहा होगा . भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को  लम्बरदार स्कूल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाने वाला था और मैं भी उसमें भाग लेने के लिए घर से  निकला था और यह विचार करता जा रहा था कि इस उत्सव में मेरी भागीदारी क्या हो .


हम लोग तब भूपालपुरा में बाबूजी बोहत लाल धाकड़ के मकान में किराए पर रहा करते थे , वहां से चेटक सर्किल के पास स्कूल पहुंचने के लिए मीरां  गर्ल्स कालेज याने रेजीडेन्सी के अहाते से होकर भी सीधा रास्ता जाता था ,मेरा  मन किया और मैं उसी रास्ते से गया . इसी परिसर के अहाते में स्टाफ क्वार्टर भी थे जिनमें जीजी जीजाजी रहा करते थे  . स्कूल जाते हुए मैं उनके पास पहुंचा और ये इच्छा प्रगट की कि मैं स्कूल के इस आयोजन में एक भाषण देवूं .


सुबब सुबह का समय था , जीजी जीजाजी दोनों ही मुझे भाषण के लिए  बिंदु बताने लगे और विभिन्न सुझाव देने लगे . श्री कृष्ण की बाल लीला, उनका सखा रूप , उनकी रास लीला और अलौकिक प्रेम , उनका दार्शनिक रूप , उनका राजनीतिज्ञ रूप इन सब के उदाहरण भी बताए और इस प्रकार भाषण की रूपरेखा सुझा दी दोनों ने मिलकर .


पूरा भाषण लिखने बांचने का तो समय नहीं था लेकिन बातें मुझे कहने लायक समझ में आ गई थीं . मैं स्कूल चला गया और उत्सव में भाषण देने के लिए अपना नाम दर्ज करवा दिया .

उत्सव का परिदृश्य :


~~~~~~~~~~~~ लम्बरदार स्कूल परिसर में एक बड़ा बगीचा था जिसमें एक पक्की स्टेज बनी हुई थी .आयोजक  और विशिष्ट व्यक्ति स्टेज पर बैठे थे और सारा विद्यार्थी समुदाय बाग़ में बिछायात पर , इसी समुदाय का मैं भी एक हिस्सा था . संगीत के लिए साज और माइक का भी इंतजाम था , मुख्य रूप से भजन गए जा रहे थे .


  मैं भी इस आयोजन के दौरान स्टेज पर बुलाए जाने का इंतज़ार कर रहा था . आखिर मेरा भी नाम पुकारा गया और मैं माइक के पास पहुंचा . पैरों में थोड़ी कंपकंपी थी पर मैंने उसपर जल्द काबू पा लिया और जो विचार मेरे ध्यान में  थोड़ी देर पहले कायम हुए थे उनके आधार पर  अवसर के अनुकूल भाषण दे डाला . अपनी भूमिका पूरी हुई जानकार स्टेज से उतरने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगा . वहां  मंचस्थ व्यक्तियों में बीचों बीच हैड माट साब बैठे हुए थे , उन्होंने मुझे रोका और मेरी पीठ पर हाथ रख दिया .


मैंने अपने जीवन में उस दिन पहला एक्सटेम्पोर भाषण दिया था .


ऊपर भूमिका पूरी होने की बात आई है , मुझे उस दिन सुबह पता नहीं था कि वास्तव में भूमिका तो उस दिन नए सिरे से प्रारम्भ हो रही थी .


बचपन की इन मीठी यादों को सहेजते हुए .


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~  * काकाजी ~ हमारे पिता जी .


सुप्रभात .


प्रातःकालीन सभा स्थगित ….


विशेष उल्लेख : Manju Pandya


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सुमन्त पंड्या.


@ आशियाना आंगन , भिवाड़ी.


6 नवम्बर 2015.


#स्मृतियोंकेचलचित्र    #उदयपुडायरी  #sumantPandya

संस्मरण  की। ये दूसरी कड़ी आज ब्लॉग पर प्रकाशित -

जयपुर 

  सोमवार   ६  नवम्बर  २०१७ .

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