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#लम्बरदार_स्कूल_की_याद : भाग तीन
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विगत दो कड़ियों में मैंने उदयपुर के ऐतिहासिक लम्बरदार स्कूल में अपने अनुभवों पर आधारित संस्मरणों को अंकित किया है जिनमें मुख्य रूप से ये बात आई कि हैड मास्टर साब ने पहले तो मुझे कमजोर देखकर फिर से नवें दर्जे में दाखिल करवाने की बात कही पर फिर वो मान गए . और दूसरे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मुझे बोलता हुआ देख सुनकर वो बहुत खुश हुए . उन्होंने मुझे स्टेज से उतरते हुए रोका और मेरी पीठ पर हाथ रख दिया . मानों मुझसे वो कह रहे हों कि इस स्कूल में रहते बार बार मुझे स्टेज पर ही देखना चाहते हैं . आगे के घटनाक्रम ने स्पष्ट किया कि हैड माट साब ने उस दिन क्या कुछ सोच लिया होगा ….
“ मंच अधिग्रहण “ ये जुमला मैंने तब ही सीखा था और गाहे ब गाहे ये तब से मेरी आदतों में शुमार हो गया .
अगले दिनों का घटनाक्रम :
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शिक्षा निदेशालय से स्कूलों में छात्र संघ के लिए नया विधान बनकर आया था और उसके अनुसार वैस्टमिन्स्टर मॉडल को अपनाया गया था . इस विधान के अंतर्गत प्रधानाध्यापक पदेन अध्यक्ष और अन्य छात्र प्रतिनिधि चुने जाने थे .
देश में उस समय जवाहरलाल नेहरू प्रधान मंत्री थे और शायद डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल पूरा हो गया था तथा डाक्टर राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने थे . इसी प्रणाली की सीख विद्यार्थियों को दी जानी थी . इंग्लैण्ड में जैसे राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित नहीं होता वैसे ही प्रधानाध्यापक जी को ये दर्जा पदेन दिया गया था . कक्षा प्रतिनिधियों और मंत्रिमण्डल का निर्वाचन होना था . अनुशासन बना रहे इस नाते अध्यक्ष पद प्रधानाध्यापक को दिया गया था . सब बातों की एक बात ये कि निर्वाचित छात्र संघ / छात्र संसद में सब से चमकदार पद प्रधान मंत्री का था .
जिस से मैं चकित हुआ :
~~~~~~~~~~~~~~~ छात्र संघ के चुनावों के बारे में मैंने नोटिस बोर्ड पर नोटिस तो देखा था पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया था . मेरी कोई निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी . ऐसी महत्वाकांक्षा न तब थी और न आज दिन तक कोई है . पर हालात मुझे ठाला बैठने नहीं दे रहे थे .
एक दिन सोहन लाल जी माट साब , जो हमें नागरिक शास्त्र पढ़ाया करते थे और छात्र संघ का भी काम देखते थे , मुझे अलग बुलाकर ले गए और ये बोले कि हैड मास्टर साब मुझे प्रधान मंत्री पद पर देखना चाहते हैं . इस पर मैंने अपनी अनिच्छा यह कहकर जताई कि मैं अभी स्कूल में नया नया हूं और कोई चुनाव लड़ने का इच्छुक इसलिए नहीं हूं कि मुझे जानने वाले छात्र भी अधिक नहीं हैं . पर हैड माट साब की इच्छा , जो सोहन लाल जी माट साब के माध्यम से ही व्यक्त हुई थी , के समक्ष मुझे झुकना पड़ा . मैंने नामांकन पत्र पर अपनी ओर से सहमति के हस्ताक्षर कर दिए .
आगे मुझे तो ये भी पता नहीं था कि मेरा प्रस्तावक कौन बना और कौन बना समर्थक .
मेरा यह अभिमत कि मेरी कोई ज्यादा जान पहचान भी नहीं है तिस पर माट साब का कहना था ,” उस दिन बोले थे न तुम , तुम को सब जानते हैं .”
मैंने अपनी ओर से माट साब को यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं किसी से वोट मांगने नहीं जाऊंगा , कोई चुनाव प्रचार नहीं करूंगा .
इस सब के बावजूद जो परिणाम आया वो था आश्चर्यजनक .
आगे का हाल ~
~~~~~~~~ आखिर छात्रप्रतिनिधियों ने मंत्रिमंडल चुनने के लिए मतदान किया और मतगणना हुई . मैं भी मतगणना के समय उपस्थित रहने को बुलाया गया .
जहां तक प्रधान मंत्री पद का सवाल था एक नामांकन पत्र और दाखिल हुआ था और वो था मेरी ही क्लास के , लेकिन स्कूल के पुराने छात्र , जॉन फ्रांसिस का . मत गणना के परिणाम आश्चर्यजनक थे .
निर्वाचक मंडल के कुल पच्चीस में से चौबीस वोट मुझे मिले और एक वोट मिला जॉन फ्रांसिस को .
मैं निर्वाचित घोषित कर दिया गया .
यह पदभार मुझे मिला पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी था .
पिक्चर अभी भी बाकी है ……
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प्रातःकालीन सभा स्थगित..
सुप्रभात.
सहयोग : Manju Pandya
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सुमन्त पंड्या
@आशियाना आंगन , भिवाड़ी
#स्मृतियोंकेचलचित्र #उदयपुरडायरी #sumantpandya
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7 नवम्बर 2015
संस्मरण की तीसरी कड़ी आज ब्लॉग पर प्रकाशित —
जयपुर
मंगलवार ७ नवम्बर २०१७ .
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