ये गए बरस की बात है जब हज़ार का नोट चलन से बाहर हो गया था और वो तो आज तक भी रूप बदल कर लौटकर नहीं आया . होने को तो पांच सौ का भी चलन से बाहर हुआ था पर उसका तो डुप्लीकेट आ गया था थोड़े ही दिनों में . उसका अभी ज़िक्र नहीं है बात तो हज़ार के नोट की है , गया सो गया .
उन दिनों हज़ार के नोट के पुराने क़िस्से मुझे याद आते थे . हम लोग उन दिनों भिवाड़ी चले गए थे . वहां आज के दिन जो क़िस्सा लिखा था उसे ज्यों का त्यों यहां जोड़ रहा हूं . लीजिए हाज़िर —
“ हजार का नोट 🌹
************
सायंकालीन सभा में आपका स्वागत
नमस्कार 🙏
इन दिनों हजार का नोट बाजार से नदारद हुआ है और उसकी कमी भी महसूस की जा रही है ऐसे समय में दो किस्से याद आ रहे हैं बार बार तो सोचा आपसे साझा करूं . लीजिए दर्ज करता हूं .
1.
मामा जी का हजार का नोट :
----------------------------
वो मुझ अकेले के मामा नहीं थे , जगत मामा थे , इसलिए उन्हें मामा लिख रहा हूं . उनका भव्य व्यक्तित्व था और सामने वाला उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था .
उस सस्ते जमाने में जब हम्मा तुम्मा के पास न तो हजार रूपए की रकम होती थी और न वो हजार का नोट लेकर बाजार जाता था तब की बात है पिछली शताब्दी की और बहुत पहले की .
मामा जी कोई एक सौ रुपए के फल खरीदते हैं बड़ी उदारता पूर्वक , मोटा आसामी देखकर फल वाला भी खुश है . मामाजी अपना हजार का नोट निकालते हैं खुले रूपए देने को पर्याप्त नहीं हैं फल वाले के पास और वो अपनी असमर्थता व्यक्त करता है . मामाजी नोट तो रख लेते हैं और बोलते हैं :
“चल रहने दे , गल्ले में से अभी हाल दो सौ और दे दे . अभी मुझे आगे और सामान लेना है और हजार के खुले शायद न मिलें .”
और फल वाला दो सौ और निकाल कर राजी राजी दे देता है . बहरहाल उसका हिसाब आगे जाने कब के लिए बाकी रहता है .
है न खटका हजार रुपए का ?
2.
काको सा के कई हजार :
------------------------- अब ये राजा खाते अलग तरह का किस्सा है जो काको सा ने स्वयं मुझे सुनाया था . बात यहां भी हजार के नोट की ही है , पिछली शताब्दी की ही है , हजार रुपए के पहले अवतार रूप की .
बम्बई की बात है तब हजार रुपए का नोट प्रचलन से हटा लिया गया था , बाजार से हटा लिया गया था . स्थिति ये थी कि हजार के नोट किसी बैंक खाते में ही जमा किए जा सकते थे .व्यापार के सिलसिले में तब काको सा बम्बई ( तब यही नाम था ) में थे और व्यापार में कोई बरकत नहीं हो रही थी . उसी दौरान ये हजार का नोट निष्कासित हो गया .
हालत ये हुई कि बाजार में हजार के नोट तीन तीन सौ में बिकने लगे . काको सा ने मुझे बताया कि उन्होंने भी सामर्थ्य के अनुसार बिकाऊ नोट खरीदे और शान से बैंक खाते में जमा करवाए . व्यापार में यही तो होता है सस्ता खरीदो और मंहगा बेचो तो बरकत होगी . यहां भी यही हुआ .
बाकी आप समझदार हैं , मैं और विस्तार में न तो जाऊंगा और न और बात मुझे पता है कोई .
ये तो किस्से हैं जिनमें मैंने अपनी ओर से वास्तव में कुछ नहीं जोड़ा है .
इन कथाओं के नायकों को सादर नमन करते हुए …
सायंकालीन सभा स्थगित …
--सुमन्त पंड्या
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
बुधवार 23 नवम्बर 2016 . “
------------------------------------------------------
क़िस्सा अविकल आज ब्लॉग पर प्रकाशित .
जयपुर
गुरुवार २३ नवम्बर २०१७ .
******************************
No comments:
Post a Comment