मेरा नया घर : 44 रवीन्द्र निवास (डबल फोर )
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ #बनस्थलीडायरी #डबलफोर
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" स्मृतियों के अछोर सागर के बीच उसने कई द्वीप बना लिए थे । पिछले अनेक वर्षों से वह इन्हीं द्वीपों में रह रहा था ....... ......."
किनारे के लोग , हिमांशु जोशी की एक कहानी से ....।
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बरसों पहले यह कहानी पढ़ी थी उसी का एक वाक्य मुझे याद रहा ।
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जब बनस्थली गया तो हरि भाई और भाभी के साथ जाकर रहने लगा । पूरा एक सत्र उन्हीं के साथ रहा । भाई भाभी दोनों ही मेडिकल आफिसर थे और कच्चे मकानों में शांता कुञ्ज के पास कमला नेहरू अस्पताल चलता था उधर ही आरोग्य शाला थी जिसे पुल्लम्मा बहन जी सम्हालती थी ।यह था लड़कियों का इनडोर अस्पताल । छोटी सी एक बात बताता चलूं - एक ग्रामीण महिला भाभी के पास कुछ निदान व चिकत्सा के लिए आई बैठी थी । मैं भी भण्डार से लौटते हुए अस्पताल में आया था । इस महिला ने पूछा ,' ये आपणा भायाजी दीखै ? ' याने ये आपका बेटा है क्या ? भाभी ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और वह महिला मुझे असीस दे गई ,' भगवान यां की हजारी उमर करै ! ' मैं उनके बच्चों में बच्चा शामिल हो गया था । यहां रश्मि रंजना और रोहित का जिक्र करने लगूंगा तो बात लंबी हो जायेगी । बहरहाल मेरा डाक का पता हो गया था : 14 अरविन्द निवास ।
सत्रांत से पहले मेरा विवाह हो चुका था और सत्रांत के समय मुझे मकान मिला था 44 रवीन्द्र निवास ।दोस्तों की राय थी कि गर्मी की छुट्टी का किराया फालतू न देकर मकान जुलाई में ही लिया जाय क्यों कि गर्मी की छुट्टी में तो मुझे जयपुर आ ही जाना था । पर मैंने तो मकान ले लिया और अब मेरा नया पता हो गया था _ 44 रवीन्द्र निवास । मुझे तो इतना भी ज्ञान नहीं था कि घर बसाने पर एक अलग चूल्हा भी तैयार करना पड़ता है पर हरि भाई ने भण्डार से नया चूल्हा और मेरे लिए गैस कनेक्शन पहले ही लेकर रख लिया था जो अब 44 रवीन्द्र निवास में आ गया था । जब तक बनस्थली में रहा मेरा घर परिवार का यही पता रहा और सहज चर्चाओं में यही घर डबल फोर कहलाया । बड़े बड़े लोग यहां आये गए जिसकी चर्चा फिर कभी...
तीन खजूर के पेड़ उस पगडंडी की पहचान थे जहां से मुड़ कर मेरा घर आता था । इधर सब मकान एक जैसे थे पहली कतार में 13 से 30 तक और दूसरी कतार में 31 से 48 तक । 44 नंबर 17 नंबर के ठीक पीछे था । 17 नंबर में देवेन्द्र शंकर अपनी जीवन संगिनी के साथ रहते थे , भरत नाट्यम के सुयोग्य प्रशिक्षक थे और सितार माइस्त्रो विश्व विख्यात रवि शंकर के बड़े भाई थे ।
मेरे घर के दो प्रवेश द्वार थे एक जो चौक की तरफ अंदर वाले बरामदे में ले जाता था , दूसरा उठने बैठने के कमरे का दरवाजा जिसके बाहर एक छोटा सा बरामदा था । दोनों ही से आया जाया जा सकता था । दरवाजे का चयन निमित्त और सम्बन्ध से निर्धारित होता था । तब का केवल एक प्रसंग । शाम का अंधेरा चौक की तरफ वाले दरवाजे पर आहट हुई , खोला तो कोई बाई कमल कांती जी को पूछ रही थी उसे अगली गली में भेजा क्योंकि कमलकांती और जे पी श्रीवास्तव तो 46 नंबर में रहते थे । एक दिन ऐसे ही अँधेरे के बखत पिछले दरवाजे से रैना साब आ गए श्रीवास्तव को पूछते हुए । चाय के शौक़ीन थे चाय पीकर गए ।
अंतिम बात इस क्रम में कि हद तो उस दिन हो गई जब ऐसे ही अपना घर समझकर एक दिन खुद श्रीवास्तव मेरे घर चले आए । मेरी जीवनसंगिनी ने दरवाजा खोला तो भी वो भोले आदमी ये समझे कि पड़ोसन कमलकांती से मिलने आई हुई है , साथ साथ अंदर चले आए , जब मुझे मेरे अपने घर में विश्राम की मुद्रा में पाया तब उसे भूल का अहसास हुआ । मैं मिला और मेरा इतना ही कहना हुआ :
" ये भी आपका ही घर है श्रीवास्तव ! लेकिन एक बात आज साफ़ जरूर हो गई कि इससे पहले जो दो बार लोग यहां आये वो भी ग़लत नहीं थे ! "
आशियाना से अपडेट :
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आज फेसबुक एक पुरानी पोस्ट बाबत याद दिला रहा है , उस दौर का उल्लेख आते ही मैं पुरानी यादों में खो जाता हूं , जीवन संगिनी जब फेसबुक पर आयी तो उन्होंने पहला काम ये किया कि इस पोस्ट को साझा किया . आज एडिट कर उस घर की तस्वीर भी जोड़ रहा हूं , बहरहाल एक छोटा सा किस्सा तो खैर यहां है ही .
आभार और नमस्कार 💐
सुमन्त पंड्या .
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
बाल दिवस , सोमवार 14 नवम्बर 2016 .
#स्मृतियोंकेचलचित्र #बनस्थलीडायरी #sumantpandya .
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आज ब्लॉग पर प्रकाशित —
जयपुर
मंगलवार १४ नवम्बर २०१७ .
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