“ बोर नहीं होते आप ?”
“ आपका मन कैसे लग जाता है ? “
“ दिनभर क्या करते रहते हो ?”
ये कुछ ऐसे स्टीरियोटाइप सवाल हैं जो सेवाकाल समाप्त होने के समय से लोग मुझसे पूछते रहे हैं . पूछें साब , कोई हर्ज नहीं इसी बहाने मुझे आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है . पूछे जाने पर कोई आपत्ति नहीं
दो एक दिन पहले एक देवी जी ने ऐसे क़ई एक सवाल अपनी आत्मकथा \ आत्मव्यथा कहते कहते बीच में मुझसे फिर से पूछ लिए तो उनका मन रखने को थोड़ी देर के लिए मैं बोला पर अभी भी बहुत कुछ कहना बाक़ी रह गया , सोचा इसी मुद्दे पर गुड मॉर्निंग पोस्ट बणा देवूं .
तो अब मेरी सुनिए और अपनी कहिए :
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सिलसिलेवार जवाब .
१.
मेरा बोर होने का स्वभाव नहीं है . मेरी सोहबत में बोर होने के रोग से ग्रसित लोग भी प्रायः ख़ुश हो जाते हैं .
२.
वैसे तो मन बच्चों के साथ लगता है ये सच बात है . साल भर में आधा समय बच्चों के साथ ही बीतता है . इसके अलावा भी मन लग जाता है . कभी कहता हूं हम दो हैं , कभी कहता हूं हम छह हैं . अपने वय के लोग ढूँढ ही लेता हूं जहाँ भी जाता हूं .
थोड़ी बहुत देश की चिंता जरूर है उस निमित्त लोक शिक्षण का काम करता हूं .
मन लग जाता है .
३.
दिन भर में घर बैठकर करने के , बाहर जाकर करने के हज़ार काम होते हैं .
कभी अपनी एक दिन की दिनचर्या पर पूरी इबारत लिखूंग़ा तो ये बात बहुत अच्छे से स्पष्ट होवेगी .
आज के लिए चलताऊ पोस्ट तैयार हो गई . बस इतना कहकर विराम लूँ कि कोई मुझे फ़ालतू न समझे .
नमस्कार .🙏
गुलमोहर कैम्प , जयपुर .
सोमवार २७ नवम्बर २०१७ .
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ब्लॉग पर प्रकाशित :
जयपुर
२७ नवम्बर २०१७ .
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