Sunday, 12 November 2017

मन की उलझन : जयपुर डायरी

गुलमोहर कैम्प , जयपुर से नमस्कार 🙏

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कल इत्ती बात कही थी रेग्युलर पोस्ट के नाम पर और बात ऐसी अटकी के पूरी करने का ओसाण ही नहीं मिला .  भूल में न पड़े इसलिए तब तक कही बात यहां टीप देता हूं --

"   नमस्कार 🙏

सुबह खिचड़ी पोस्ट मांड़कर हो लिया था वर्धमान पार्क और वहां भी जित्ती देर बैठा रहा ये बात सोचता रहा पर ये गुत्थी सुलझी नहीं वही बताने का प्रयास कर रहा हूं .

कैसी गुत्थी ?

वो ही बताता हूं .

कल दोपहर अजीब उलझन में पड़ गया . अपने ही घर में जूतों के ढेर में  क़ई  एक अच्छे अच्छे जूते मिलें पर हर एक जूता एक पैर का और जोड़ी का जूता नदारद . अब क्या तो करो आप , एक बार को घर से निकलने  का विचार ही स्थगित करना पड़ गया .

दूसरा जूता न मिले तो एक मिला मिलाया भी बेकार .

ऐसा हो क्यों रहा है ये सोच सोचकर परेशान . मेरे साथ ये चोट की किसने ये बात भी समझ से बाहर . सिवाय जूतों के ढेर को कुखेरने के और क्या करता  ?

बहुत देर तक उधेड़बुन में रहा और उद्यम करता रहा पर कोई हल  न निकला .

गए दिनों मुझपर दबाव रहा कि मैं भी और लोगों की तरह मँहगे विदेशी जूते ख़रीद लेवूं और ठमके से चलूँ  , लगा ये उसी का दंड भुगतना पड़ रहा है , पर अब क्या करो आप . सच परेशान हो गया .

सच ये रम्बाद लम्बा चला .

इस रम्बाद के और पहलू  भी हैं पर अभी थक गया हूँ कुछ ठहर कर बताऊंग़ा .......

अधूरी बात पूरी करूंग़ा जरूर से ...."

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अब आगे --

मैंने कल  सुबह जो कुछ लिखा था उसे फ़ेसबुक पर अधूरी पोस्ट के रूप में जारी कर दिया था और आपने मेरी उलझन को सराहा उसके लिए तो आप सब  का जित्ता आभार व्यक्त करूं कम होगा पर बात आगे तो बतानी ही पड़ेगी --

ये मँहगे जूते के विचार और जूता जोड़ी के तालमेल में उलझकर जब मैं ख़ूब परेशान हो लिया तो मेरी आँख खुली और ये अहसास हुआ कि हालात यथावत हैं . पर आश्चर्य की बात ये कि मुझे ये ही लगता रहा कि अगर थोड़ा सा वक़्त और मिलता तो मैं कोई  न कोई जोड़ी का जूता ढूँढ ही लेता पर अब वो अवसर छिन चुका था  और मैं स्वप्न से वर्तमान में आ चुका था .

स्वप्न की व्याख्या

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१.

मनसाराम से मेरी दोस्ती और  देशी जोड़ी से मेरा लगाव शायद कहीं मेरे अंतर्मन में रहा हो जो ऐसे सपने का कारण रहा हो .

२.

एक जूता मिले और जूते की जोड़ी न मिले इसमें कोई प्रतीकात्मक संकेत तो नहीं है ?  ये भी कल सोचता ही रहा .

३.

मैं और जीवन संगिनी इत्तफ़ाक़ से ऐसा जोड़ा हैं जिनकी जूता नाप एक है  , क्या इसमें हम दोनों को जीवन के लिए कोई सीख है ? ये भी सोचने वाली बात है .

४.

स्वप्न की व्याख्या में विनोद ने बड़ीं मदद की  जिससे ही  ये पोस्ट आज पूरी हो पाई .ऐसे और कोई को कोई इंटरप्रटेशन सूझे तो वो भी बतावें अच्छा रहेगा

अब मनसाराम की बनाईं प्रीमियम जूता जोड़ी की फ़ोटो यहां जोडूंग़ा जो कल से पहनकर घूम फिर रहा हूं .

अथ श्री जूता पुराण समाप्त .

प्रातःक़ालीन सभा स्थगित .............

जयपुर

शनिवार ११ नवम्बर २०१७ .

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मेरी इस  "  मन की उलझन " को समझने में सर्वाधिक सहायक हुई प्रोफ़ेसर सुभाष गुप्ता की व्याख्या जो उनके शब्दों में यहां जोड़ता हूं  --

"  भाई साहब, सुप्रभात! कल उत्सुकता थी, आज का समापन अनपेक्षित और सारगर्भित। मुझे लगता है कि चूंकि "जुड़ाव ", "मित्रता", "प्रेम"आपका स्थाई भाव है, तो " बिछड़ना" आपका स्वाभाविक भय, जो सपने में जूतों के माध्यम से प्रकट हुआ। वैसे पंड्याजी (विनोद) मनोविज्ञान पढ़े हैं, ज्यादा बेहतर विश्लेषण कर सकते हैं।  "

आद्या जी का भी समर्थन मिला इस बात के लिए कि क़िस्सा ब्लॉग पर जोड़ा जाय .

आभार सभी टिप्पणीकारों का . क़िस्सा आज ब्लॉग पर प्रकाशित -

जयपुर 

सोमवार १२ नवम्बर २०१७ .


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