Saturday, 13 May 2017

रेलवे की चाय : बनस्थली डायरी

रेलवे की चाय :बनस्थलीडायरी

इंजनकीचाय

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आज भोर में उठा और प्रायवेट कॉफी बनाने जा ही रहा था कि विचार आया क्यों न इस ' प्रायवेट ' का विस्तार किया जाए . बजाय एक के दो कप काफी बनाई और जीवन संगिनी को भी इसमें शामिल कर लिया . इतनी एकाकी न रही कॉफी . और आगे चाय के बारे में सोचते हुए रेलवे की चाय याद हो आई , वही बताने जा रहा हूं .


क्या हुआ था ?

किसी किसी बुधवार को हम लोग सुबह के बखत बीकानेर एक्सप्रेस से बनस्थली निवाई जाया करते थे . इस गाड़ी का इंजन उन दिनों कोयले से चलने वाला हुआ करता था . चाकसू के स्टेशन पर गाड़ी थोड़ा ज्यादा रुकती थी क्योंकि वहां क्रासिंग होता था. सामने से आने वाली गाड़ी आकर चली जाती उतनी देर बीकानेर एक्सप्रेस स्टेशन पर खड़ी ही रहती थी .ऐसे में एक बार की बात बताता हूं .

 हम लोग उतर कर नीचे डोलने लगे . विनोद जोशी भी मेरे साथ थे . ठण्ड तेज थी और हम लोग आगे की ओर, इंजन की ओर बढ़ गए . वहां इंजन चलाने वाले स्टाफ के लोग भी खड़े थे . जोशी जी ने उन लोगों से मेरा परिचय कराते हुए वहां पहुंचने का निमित्त बताया बोले .


" भाई साब को झुरझुरी हो रही थी इस लिए इधर इंजन के पास चले आए ." हां , जोशी जी ने यही शब्द काम में लिया था . तुरंत प्रतिक्रिया आई , इंजन के अंदर भट्टी में कोयला झोंकने वाला व्यक्ति बोला :


".....तो नींचे ही क्यों खड़े हो ऊपर आओ भट्टी के पास आज आपको हम इंजन की चाय पिलायेँगे ." 


 तब पैरों में ताकत थी , झट ऊपर चले गए , ठण्ड तो थोड़ी देर को छूमंतर हो गई और हम चाय बनाने की प्रक्रिया देखने लगे .


कैसे बनी तब चाय ?

वो भी सुनिए , एक लंबे हैंडल लगे बड़े से लोटा नुमा पात्र में दूध , पानी, चाय , चीनी एक साथ डाल कर उस कर्मचारी ने एक क्षण भर के लिए इंजन की भट्टी में डालकर वापस खींच लिया और और .... इस प्रकार चाय तैयार हो गई . छान कर कांच के गिलासों में चाय थमाकर उसने हमें चाय पीने का आवाहन किया . गाड़ी की प्रति किलो मीटर गति और इंजन की शक्ति के आधार पर उसने चाय का नामकरण भी किया था पर वो मुझे अब याद न रहा .

उस दिन मुझे जेम्स वाट की याद आई कि उसने शायद चाय बनाते हुए ही भाप की ताकत को पहचाना था .

बड़ा सुखद रहा उस दिन इंजन स्टाफ के साथ चाय पर वार्तालाप .

आगे होना क्या था हम लोग अपने सवारी डब्बे में लौट आए मगर ये बात यादगार बन गई .

आज के किस्से का शीर्षक तो " इंजन की चाय " होना चाहिए था पर आजकल रेलवे स्टेशन की चाय कुछ ज्यादा चर्चा में रहने लगी है और शायद गफलत में मैं ये शीर्षक दे बैठा .

प्रातःकालीन सभास्थगित .

इति.


सुप्रभात .

सह अभिवादन और समीक्षा : Manju Pandya


सुमन्त


गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .

14 मई 2015 .

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अपडेट .

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आज शनिवार 14 मई 2016 . आशियाना आँगन , भिवाड़ी से . 💐💐


आजकल दिन पर दिन बड़ा कठिन होता जा रहा है ऐसा कुछ लिखना जिस पर सेंसर बोर्ड की आपत्ति न आवे . या तो मेरे लेखन में कुछ गिरावट आई है न तो सेंसर बोर्ड के मानक कुछ अधिक सख्त हो गए हैं . जो भी हो अब स्थिति तो जो है सो है . 


प्रायवेट कॉफी भोर में हो गई और स्मृतियों के चलचित्र खोलकर एक स्टेटस बनाने ही जा रहा था कि फेसबुक ने ये पोस्ट दिखाई जो दो कारण से ख़ास है 


एक तो इसके सन्दर्भ में सेंसर बोर्ड की एक अनुकूल या कहूं सराहना की टिप्पणी दर्ज है .

माने ये ये प्रशंसित स्टेटस है तो क्यों न इसे सहेजूं और ब्लॉग तथा फेबु प्रोफाइल पर फिर से प्रकाशित करूं .


दूसरे वैसे तो सेंसर बोर्ड से प्रशंसा पाकर ही पोस्ट के भाव बढ़ जाते हैं पर आप सब ने भी खूब खूब टिप्पणी की थी , उनको भी मैं सहेजना चाहता हूं .

गए बरस सराहना के साथ साथ शेयर भी की गई थी ये पोस्ट तो आज फिर इस पर चर्चा क्यों न हो .

अब इसे नए सिरे से साझा कर मैं इन टिप्पणियों को अलग करना नहीं चाहता , अतः केवल ये संशोधन जोड़ कर पुनः चर्चा प्रवाह के लिए जारी करता हूं .


इधर दो एक दिनों से साथियों के अमूल्य सहयोग से चाय और कॉफी पर चर्चाएं चल ही रही हैं , मैं तो चाहूंगा न थमे वो चर्चाएं और उसी क्रम में ये पोस्ट भी मान ली जाए .

ये कोई साधारण चाय नहीं , ये है :


इंजन की चाय . 😊😊


चाय पीजिए , पोस्ट पढ़िए .


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सुप्रभात .


सुमन्त पंड्या .


@ आशियाना आँगन, भिवाड़ी .

  शनिवार 14 मई 2016 .


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फ़ाइल से लिया गया फ़ोटो साथ लगाया है जिसमें हैं मेरे साथ मेरे प्रिय मित्र विनोद जोशी । आज फिर से प्रकाश में लाने के निमित्त इसे ब्लॉग पर प्रकाशित किया जा रहा है ।

सुमन्त पंड़्या 

एस एफ एस फलैट्स , मुखर्जी नगर , दिल्ली  ।

रविवार १४   मई २०१७ ।

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