भरोसा बच्चों पर . ?? : बनस्थली डायरी
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बनस्थली की बात है उन दिनों की जब पिछली शताब्दी बीत रही थी और इक्कीसवीं शताब्दी आने वाली थी .
एक दिन कंवर साब आ गए , उनकी बात पक्की हो गई थी और फियांसी बनस्थली में पढ़ रही थी . लड़की के पिता ने उनका परिचय पत्र भी बनाकर दे दिया था और साथ में यह ताकीद भी कर दी थी :
".....इनको मिलने दिया जाए , लेकिन अकेले में नहीं ..."
माता पिता की भावना समझ में आने वाली थी . हिन्दुस्तानी सोच में बदलाव भी आ रहा था लेकिन थोड़ा .
लड़की उन दिनों एम फिल के शोध प्रबंध के लिए तैयारी कर रही थी और उसके पास एक युक्ति उपलब्ध थी इस निगरानी व्यवस्था से बाहर निकलने की . वही युक्ति लेकर वो मेरे पास आई थी . साउथ एशिया स्टडी सेंटर , राजस्थान विश्वविद्यालय , जयपुर में शोध के काम से जाना है इस नाम से छुट्टी के आवेदन पर सुपरवाइजर होने के नाते मेरी सिफारिश हो जाए तो छुट्टी मिल जाए .
बाकी तो घूमना फिरना, सिनेमा देखना हो ही जाय यह थी कुल बात .
मुझे तय करना था कि क्या मैं लड़की के माता पिता से ज्यादा उदार हो सकता हूं इस मामले में . मैंने घर में बैठकर विचार किया, जीवन संगिनी से भी सलाह ली और इस निर्णय पर पहुंचा कि मुझे आवेदन की संस्तुति कर देनी चाहिए , वही मैंने किया पर साथ ही कहा :
" देखो तुम्हारे माता पिता यहां नहीं हैं तो मैं उन दोनों की ठौर हूं पर मैं बंदिशों में विशवास नहीं करता और बच्चों पर भरोसा करता हूं .
इतना समझ कर जाओ कि अभी बात पक्की हुई है और तुम्हारा विवाह नहीं हुआ है...."
मैंने तो छुट्टी दे दी .
ये दीगर बात है कि लड़की ने खुद ही जयपुर जाने का ये इरादा रद्द कर दिया . पर मैं तो बच्चों पर भरोसा करता हूं .
बनस्थली के दिनों को याद करते हुए
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
सुप्रभात .
सुमन्त
आशियाना आँगन, भिवाड़ी .
9 मई 2015 .
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फिर अपडेट आशियाना आँगन , भिवाड़ी से * आज दिनांक 9 मई 2016 .
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पिछले बरस की स्थगित प्रातःकालीन सभा के मुद्दे आज भी उतने ही प्रासंगिक और विचारणीय हैं , सभा पुनः प्रारम्भ 👌
सुप्रभात
सुमन्त पंड्या
@ आशियाना आँगन
अक्षय तृतीया
9 मई 2016 .
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आज इसी दिन ये क़िस्सा ब्लॉग पर प्रकाशित :
दिल्ली : मंगलवार ९ मई २०१७ ।
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