सूरजभान खत्री : ऐसे दोस्त जो मुझे आज भी याद आ जाते हैं .
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जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में जैसे मेरा आना जाना बाबूलाल तरसेन कुमार की बरतनों की दूकान पर होता था वैसे ही ठाकुरदास खत्री एंड संस नाम की घडी की दूकान पर भी होता था . ये लोग विभाजन के बाद डेरा इस्माइल खां से चल कर जयपुर में आ बसे लोग थे . घड़िया विदेश से मंगवाते बेचते . फर्म का वही नाम रखा गया था जो वहां से लेकर आए
थे . बड़े भाई सूरज भान खत्री मेरे ऐसे दोस्त बन गए थे जो बातों में उस समय हिमायती बनकर खड़े हो जाते जब साक्षात मेरे बड़े भाई मेरी कच्ची कौड़ी मान कर मेरी बात को दर गुजर कर रहे होते . केवल मिलने और बतियाने को वो हमारे शहर वाले घर , नाहर गढ़ की सड़क पर भी आए . अपने बेटे राकेश के विवाह के आनंदोत्सव में उन्होंने न्योता भेजा और मैं फर्ज समझ कर बड़े वाले को साथ लेकर छत्रसाल पार्क के उस समारोह में गया भी था . ये ऐसे आत्मीय सम्बन्ध थे जिनमें कोई व्यापार व्यवहार नहीं था .
मेरा जाना तो किसी निमित्त से ही होता और वो बात हो जाती जैसे कोई घडी खरीदना या सुधरवाना पर वो होवे अपनी जगह सूरजभान हाथ का काम रोक कर टाइम आउट ले लेते और मेरे लिए कोई न कोई सवाल छोड़ देते .
उनका लायक बेटा राकेश अब भी उस दूकान पर बैठता है . सूरज भान नहीं रहे पर उनकी स्मृति मेरे लिए आज भी कल की सी ताजा बात है .
एक बार की बात :
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पहले छोटी सी बात :
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मैंने इलेक्ट्रॉनिक घडी के बाबत पूछा ," गारंटी कितनी ?"
वो बोले :" जितनी देर घडी तो आपके हाथ में है लेकिन आपने पैसे नहीं चुकाए ."
अब बड़ी बात :
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एक दिन सूरज भान मुझसे बोले :
" प्रोफ़ेसर साब मुझे येे बताओ कि ये हिंदुओं में मुर्दे को जलाते ही क्यों हैं और समुदायों की तरह गाड़ते या रखकर छोड़ते क्यों नहीं ."
गंभीर सवाल था और मुझसे उत्तर की अपेक्षा थी . जाने क्यों अध्यापक से लोग उम्मीद करते हैं कि उसके पास हर सवाल का उत्तर होगा .
मैंने पीने का पानी मांगा और उत्तर देने को बैठ गया और बोला, बात यहां से शुरू की :
" भाई साब अंतिम संस्कार का सम्बन्ध जीवन दृष्टि से है . अपन तो मानते हैं कि शरीर नश्वर है , पंच तत्त्व से मिलकर बना है . हिन्दू संस्कारों में हवन का बड़ा महत्त्व है , अग्नि को शरीर समर्पित करना भी एक प्रकार का हवन ही तो है .
जीवन के बाद भी जीवन है , जैसे कपडे बदलते हैं वैसे ही शरीर बदलते हैं.
यही सब तो सोच है भाई साब .
लेकिन जो लोग ऐसा सोचते हैं कि एक दिन ये ही शरीर उठ खड़े होंगे वो अंतिम संस्कार की अन्य विधि अपनाते हैं ..........
............. "
नहीं रहे सूरजभान पर आज भी राकेश हम लोगों से लगाव रखता है . पर
अब उधर जाना भी कम होता है ......
प्रातःकालीन सभा अनायास स्थगित .
इति .
सुप्रभात .
सुमन्त पंड़्या
गुलमोहर कैम्प, जयपुर .
27 मई 2015 .
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आज दिन ये संस्मरण ब्लॉग पर प्रकाशित ।
दिल्ली
शनिवार २७ मई २०१७ ।
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जयपुर जाने पर सूरजभान का फ़ोटो भी जुटाऊँगा और यहां ब्लॉग पोस्ट के साथ जोडूंग़ा ।
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