Friday, 12 May 2017

मन कैसे लगेगा   ? : गुलमोहर डायरी 

मन कैसे लगेगा ?

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आ तो गए जयपुर पर अब यहां मन कैसे लगेगा , सुबह उठकर यही सोच रहा हूं . 

सब लोग और सब स्थान एक साथ तो नहीं मिल सकते .

अभी तो खैर कल रात भाई साब और भाभी जी भी आ गए हैं , अभी विशवास का एकांश आने से चिंकू भी आ जाएगा उससे मन बहल जाएगा . पर ये भी तो चार दिन रुक कर चले जाएंगे . कितने दिन मेरा मन लगाएंगे . सब लोग अपने अपने काम में लग जाएंगे . फिर क्या होगा ? मेरा मन तो सैम ( असीम ) से लगता था उसकी याद आ रही है . कल जब भिवाड़ी से चले तो कितना लाड़ जताया था उसने , अरे उसने तो फोन पर बात भी की थी मानो वापस बुला रहा हो . अभी दो बरस का भी तो नहीं हुआ पर अपनी बात कितने अच्छे से समझा देता है .

अब जयपुर आना था आए तो यहां की जिम्मेदारियां पूरी करें . ऐसे खयालों में डूबे रहने से क्या होगा ?

मन करता है फिर सैम के पास चला जाऊं पर ये भी अभी संभव नहीं .

कुछ काम काज में लग जा सुमन्त तभी काम चलेगा.

क्या ज़माना आ गया सब को दूर दूर कर दिया वरना तो ऐसी मन न लगने की समस्या हुआ ही नहीं करती थी .

आज की पोस्ट मेरे पागलपन का बयान भर है , इस को अभी समीक्षार्थ प्रस्तुत भी नहीं किया है , पोस्ट किए देता हूं और भाई साब की सेवा में उपस्थित होता हूं देखें वो क्या कहते हैं .

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

इति.

सेवामें समीक्षार्थ : Manju Pandya


सुप्रभात  🌅


सुमन्त पंड्या  

गुलमोहर , बापू नगर , जयपुर .

13 मई 2015 .

दो बरस पहले भिवाड़ी से जयपुर आने पर लिखी थी ये पोस्ट । एक ख़ास मनोदशा को इंगित करती हुई बातें हैं इसमें । 

आज इसे ब्लॉग पर प्रकाशित करने का मन किया ।

दिल्ली 

१३ मई २०१७  ।

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