इन बॉक्स में अंट संट
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मैसेंजर और इन बॉक्स का निमित्त ये है कि आप किसी को बंद लिफ़ाफ़े में पत्र भेज सकते हैं , ऐसे अनेक सन्देश मुझे भी प्राप्त होते हैं और पत्र पाकर खुशी होती है . इनमें मेरी प्रिय छात्राओं के सन्देश भी होते हैं जो मैं अपने लिए टेस्टीमोनियल की तरह सहेज कर रखता हूं , अन्यान्य मित्रों के भी सन्देश आते हैं बड़ा अच्छा लगता है . कोई ऐतराज नहीं , लिखा कीजिए अगर आप को जरूरी लगे और खुल्लम खुल्ला लिखें मेरी दीवार पर तो तो क्या ही बात और लोग भी देखें . मेरी तो क्लास के दरवाजे भी सब के लिए खुले होते थे और आज दिन गुलमोहर के दरवाजे भी सब कोई के लिए खुले होते हैं सब का स्वागत . 🌷🌷
तो फिर बात क्या है सुमन्त ?
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बात होने को तो ज़रा सी है पर जाने क्यों कोई कोई जरा सी बात पे मेरा माथा ठनक जाता है और मैं बिना पूरी बात साफ़ किए ऐसी बात कह डालता हूं जो मेरे अपनों को बुरी लगती है मानों उनको कह दी हो , जैसे मैंने कह दिया
“, कुछ लोग ऐसे आ घुसे हैं जो न लीपणे के काम के न पोतने के काम के . “ “, गोबर से भी निकृष्ट ! “
ये बात आप में से किसी भी फेसबुक मित्र के सन्दर्भ में नहीं कही गई थी , जिस सन्दर्भ में कही गई थी वही बताता हूं तो बात साफ हो ही जाएगी .
फ्रैंड रिक्वेस्ट आती रहती है , देखता रहता हूं पर हर बखत उस तरफ ध्यान नहीं दे पाता . एक साब रिक्वेस्ट भेजकर चैट पर आ गए , खैर आए अच्छी बात , लिखना आवे नहीं वो भी जाने दो , उल्टी सीधी रोमन में हिंदी लिखें और मुझे उकसावें पूछ लो , पूछ लो करके . खैर मैंने इस बीच उनका प्रोफाइल खोला कुछ कॉमन फ्रैंड देखकर और शकल सूरत ठीक देखकर मैंने रिक्वेस्ट मान ली .
अब भी खुली बात न करके चैट ही करे जाएं , रात बढ़ रही मैं चाहूं बात बंद हो वो टन टनाए ही जाएं और अन्त में उन्होंने अपनी बुद्धि का समग्र परिचय दे दिया , बोले :
“ आय एम ए सैक्सी मैन . “
---------------------- न जान न पहचान और ये बोल बोला सुनकर ऐसा बुरा लगा मुझे के मैं एक शब्द तलाशने लगा कि क्या कहूं इस व्यक्ति के लिए , फिर मुझे चुन्ना भाई की एक पोस्ट में वो शब्द भी मिल गया और अब मैं इस बात को यों कहता हूं :
“ अरे ये सांड कहां से आ गया ? “
ऐसे इक्का दुक्का छोरे छापरे और भी हैं जो इनबॉक्स का इस्तेमाल गैर जरूरी नॉनसेन्स बातों के लिए करते हैं उनको भी चेतावनी दिए देता हूं कि चपक्या रहो न तो स्क्रीन शॉट लगा दूंगा और शांतिप्रिय जरूर हूँ लेकिन ऐसों को घर पे आ के ठोकूंगा अलग से .
ऐसी बातें थी कि मैंने कहा था ,” न लीपणे के काम के न पोतने के काम के , गोबर से भी निकृष्ट . “
आत्मालाप :
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“ इत्ता गुस्सा , इत्ता हिंसक विचार काहे सुमन्त ? “
वो राजस्थानी सोरठा की अंतिम पंक्ति में कुछ लोगों के स्वभाव के विषय में कहा है न :
“.....पुचकारयां माथै चढ़ै , ठोक्यां आवै काम . “
कुछ लोग ठुकाई , ममाई डिजर्व करते हैं और उनके विशेष सम्मान में लिखी ये आज की पोस्ट .
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सुप्रभात
सुमन्त पंड्या .
@, गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
सोमवार 30 मई 2016 .
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आज दिन ब्लॉग पर प्रकाशित :
जयपुर
गुरुवार १ जून २०१७ ।
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नमस्ते सर..इस तरह के उल ज़लुल तत्व जैसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मिल जाते हैं वैसे ही वर्चूअल वर्ल्ड में मिलते हैं और सोशल मीडिया तो जैसे इनके लिए एक आसान तरीक़ा बन गया है अपनी कुंठित सोच को ज़ाहिर करने का..आप इन सब से परेशान ना हों..बस ऐसे ही लिखते रहिए :)
ReplyDeleteआभार रश्मि । परेशान नहीं होता , क़िस्सा बताया है ख़ाली ।
Deleteक़िस्सा तो ये साल भर से ज़्यादा पुराना है पर है देखने लायक । इसीलिए इस क़िस्से को ब्लॉग पर प्रकाशित किया था ।
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