Thursday, 18 May 2017

ई पी में फ़िल्म देखी थी : जयपुर डायरी 

ई पी में फ़िल्म देखी : बात कल शाम की .

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कल शाम ई पी में फ़िल्म देख आए . बच्चों ने बहुत धकियाया था , जीवन संगिनी तो उत्सुक थी ही उन्होंने भाभी जी को राजी कर लिया , मेरी तो बिसात ही क्या थी कि मने करूं . और तो और कल तो भाई साब भी इस अभियान में साथ हो लिए . सुना उन्होंने बत्तीस साल बाद सिनेमा हाल में कोई फ़िल्म देखी बताई . आप पूछेंगे तब कौनसी फ़िल्म देखी थी , वो गांधी नाम की फ़िल्म रही बताई .


अब बात कल देखी फ़िल्म बाबत :

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फ़िल्म थी ' पीकू'. 

फ़िल्म अच्छी थी , मेरी उमर के लोगों को जरूर देखनी चाहिए . हिंदी फिल्मों का सदी का नायक इसका भी नायक है .

समीक्षा भला मैं क्या करूंगा, मैं इस लायक नहीं हूं . श्वेता तिवारी या मिहिर पंड्या की समीक्षा को मान्यता दीजिए . ये अपने ही बच्चे हैं और अब कितने समझदार हो गए हैं .


बात चली है तो पुरानी बातें सिनेमा के बाबत :

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ये तब की बात है कि मैं और जीवन संगिनी मोती महल में सिनेमा देखने गए , उदय और छुटकू को साथ ले गए . फ़िल्म का नाम बेमाने है छोड़िए उसे , बच्चे क्या बोले इस पर गौर कीजिए :


फ़िल्म का प्रदर्शन देखकर दोनों एक साथ आल्हादित स्वर में बोले :


"पापा.....कित्ता बड़ा टी वी ...!"

 तब घर में टी वी तो आ चुका था बच्चे पहली बार किसी सिनेमा हाल में गए थे .


राज मंदिर में सिनेमा :

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जयपुर में राज मंदिर सिनेमा हाल मुम्बई ( तब का बम्बई ) के मराठा मंदिर की तर्ज पर बने और और चालू हुए एक अरसा हो गया था . इस हाल की बड़ी शोहरत थी . विज्ञापन और समाचार में बहुत हल्ला था इस बाबत पर मेरा वहां फ़िल्म देखने जाना नहीं हो पाया था और इस बात की कोई ग्लानि भी नहीं थी पर एक दिन ऐसी ही कुछ बात हो गई कि मुझे जाना ही पड़ा .


बात क्या हुई ?

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छोटी चौपड़ पर एक युवा माली से सब्जी खरीदा करता था और वो मेरा फ्रैंड माली कहलाता था " फ्रैंड मालिन " भी थी एक पर उसकी बात करूंगा तो चर्चा भटक जाएगी . ये दोनों अलग अलग संस्थाएं थी. आज एक बात फ्रैंड माली की कही बताता हूं .

अपनी रेशमी भिन्डी के तारीफ़ में उस दिन फ्रैंड माली बोला :


" भाई साब...आज की भिन्डी इतनी मुलायम है जैसे ' राज मंदिर में गलीचे ."

मेरी जनरल नॉलेज की यहां पोल खुल रही थी और मैं इस वजह से लज्जित हो रहा था कि जब राज मंदिर में सिनेमा देखने ही कभी नहीं गया था तो गलीचों की मिसाल क्या समझता .

घर लौटा , सब्जियों के थैले रखे और खड़े खड़े ही घोषणा कर दी :


" कल मैं राज मंदिर में सिनेमा देखने जाऊंगा, जो भी फ़िल्म देखना चाहे चले मेरे साथ ."

बात ही ऐसी थी , मुझे तो जाना ही था और परिवार जन भी गए मेरे साथ और जो फ़िल्म देखी उसका नाम था :


" दुल्हन वही जो पिया मन भाए ."


आज नेट की कमजोरी के कारण पोस्ट बनने और टकने में थोड़ा विलम्ब हुआ . खैर..


प्रातःकालीन सभा स्थगित ,

इति.


सुप्रभात .

समर्थन : Manju Pandya


सुमन्त पंड्या ।

(Sumant Pandya )

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया, बापू नगर , 

जयपुर .

19 मई 2015 .

#स्मृतियोंकेचलचित्र #जयपुरडायरी


दिल्ली से पुनः संशोधित और प्रसारित चर्चा ।

शुक्रवार १९ मई २०१७ ।   और आज ही ब्लॉग पर भी दर्ज ये क़िस्सा  ।

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